News of sand shortage : बालू की किल्लत से घर बनाने में छूट रहे पसीने, निर्माण की बढ़ रही लागत
झारखंड में सात साल से बालू घाटों की बंदोबस्ती नहीं हो पा रही है, नतीजतन बालू की समस्या विकराल रूप ले चुकी है. इन सात सालों में किल्लत के बीच बालू की कीमत चार गुना बढ़ गयी है. सक्षम लोग तो जैसे-तैसे ब्लैक में बालू खरीद ले रहे हैं, पर आम आदमी को घर बनाने में बालू का जुगाड़ करने में पसीने छूट रहे हैं.
रांची. झारखंड में सात साल से बालू घाटों की बंदोबस्ती नहीं हो पा रही है, नतीजतन बालू की समस्या विकराल रूप ले चुकी है. इन सात सालों में किल्लत के बीच बालू की कीमत चार गुना बढ़ गयी है. सक्षम लोग तो जैसे-तैसे ब्लैक में बालू खरीद ले रहे हैं, पर आम आदमी को घर बनाने में बालू का जुगाड़ करने में पसीने छूट रहे हैं. बालू की किल्लत और महंगाई की वजह से सरकारी आवास योजनाओं की लागत भी बढ़ गयी है. बालू के दाम घटने के इंतजार में कई लोगों ने तो निर्माण कार्य टाल दिये हैं. बालू की किल्लत और महंगाई की मार मजदूरों पर भी पड़ रही है. निर्माण कार्य टाले जाने से मजदूरों को प्रतिदिन काम नहीं मिल पा रहा. वे काम के जुगाड़ में भटक रहे हैं.
एक हाइवा बालू की कीमत 44 हजार रुपये तक
रांची में फिलहाल बालू ब्लैक में मिल रहा है, जिसकी कीमत सुनकर सांसें फूल जा रही हैं. 80-90 सीएफटी वाले एक टर्बो बालू की कीमत 5500-6000 रुपये तक है. वहीं, 600-700 सीएफटी वाले एक हाइवा बालू की कीमत 32-35 हजार रुपये तक है. जबकि, 900 सीएफटी वाले एक हाइवा बालू की कीमत 42 से 44 हजार रुपये तक है. यह भी उल्लेखनीय है कि राज्य भर में 444 बालू घाट हैं, जिनमें से केवल 20 की ही बंदोबस्ती हुई है. यानी केवल इन्हीं 20 घाटों से वैध तरीके से बालू का उठाव हो रहा है. इधर, रांची जिले में 19 बालू घाट हैं, लेकिन इनमें से एक भी घाट चालू नहीं है. दूसरी ओर 40 बालू घाटों का आवेदन प्रदूषण नियंत्रण पर्षद के पास कंसेट टू इस्टैबलिश(सीटीइ) और कंसेट टू ऑपरेट(सीटीओ) के इंतजार में है. इनमें रांची का भी एक बालू घाट है. इसके अलावा जामताड़ा, पलामू, दुमका, पूर्वी सिंहभूम, गढ़वा, गोड्डा, हजारीबाग, गुमला, खूंटी, कोडरमा, लातेहार, सरायकेला, चतरा और देवघर के कई बालू घाट अब तक चालू नहीं हो सके हैं.
पीएम और अबुआ आवास के लाभुक परेशान
बालू की किल्लत और महंगाई के कारण अबुआ आवास योजना और पीएम आवास योजना (ग्रामीण) की लागत भी बढ़ गयी है. योजना के लाभुकों को “1.20 लाख मिलते हैं. एक मकान बनाने में छह से सात टर्बो (करीब “40 हजार) बालू लग रहा है. बालू पर पैसे खर्च करने के बाद मात्र 80 हजार ही आवास निर्माण के लिए बच रहे हैं. वहीं, अबुआ आवास योजना के लिए दो लाख रुपये मिलते हैं. बालू पर पैसे खर्च करने के बाद आवास निर्माण के लिए “1.60 लाख ही बच रहे हैं. उधर, किसानों को मनरेगा का सिंचाई कूप बनवाने के लिए भी महंगी दर पर बालू खरीदना पड़ रहा है.
निर्माण लागत 15-20 प्रतिशत तक बढ़ी
बालू के साथ अन्य सामग्रियों की कीमतें भी बढ़ी हैं, जिसका असर निजी घरों के निर्माण और रियल इस्टेट इंडस्ट्री पर दिख रहा है. मौजूदा समय में सीमेंट 330-350 रुपये तक प्रति बैग मिल रहा है. जबकि, छह माह पहले इसकी कीमत 280-300 रुपये प्रति बैग तक थी. वहीं, गिट्टी 6,800 रुपये (110 सीएफटी) और एक नंबर ईंट 22,000 रुपये (2,500 पीस) मिल रहा है. डीइ ग्रुप के निदेशक अमित अग्रवाल बताते हैं कि निर्माण सामग्रियों की कीमत बढ़ने से प्रोजेक्ट कॉस्ट में भी 15% से 20% तक की बढ़ोतरी हो गयी है. पहले सिविल वर्क 1800-2,000 रुपये स्क्वायर फीट में हो जाता था, जो अब 2070 से 2400 रुपये स्क्वायर फीट तक पहुंच गया है. इस कारण प्रोजेक्ट में छह माह तक की देर होने लगी है.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है