रांची/ दुमका. संताल परगना में भले ही 18 विधानसभा सीटें हैं और इसी प्रमंडल की बरहेट सीट से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन चुनाव लड़ रहे हों, लेकिन दुमका सीट संताल परगना की हॉट सीट में शुमार रहती है. यहां से चुनाव में हार-जीत के परिणाम ने कई बार प्रदेश के राजनीतिक समीकरण को बदलने का काम किया है. जब-जब इस सीट पर राजनीतिक बदलाव दिखा है, तब-तब सत्ता में पहुंच कर यहां के विधायक अहम दायित्व निभाते रहे हैं. 1977 में जब जनता पार्टी के प्रत्याशी के रूप में पहली बार महादेव मरांडी जीते थे, तब उन्हें तत्कालीन कर्पूरी ठाकुर के मुख्यमंत्रित्वकाल में सूचना एवं प्रसारण मंत्री का दायित्व मिला था. उसके बाद से 1980 से 2000 तक प्रो स्टीफन मरांडी झामुमो प्रत्याशी के रूप में विधायक चुने जाते रहे. 2005 में झामुमो ने उनका टिकट काट दिया, तो प्रो स्टीफन मरांडी निर्दलीय चुनाव लड़े. उनके सामने झामुमो के प्रत्याशी के तौर पर हेमंत सोरेन थे. यह चुनाव हेमंत सोरेन हार गये थे और झामुमो की यहां पहली बार हार हुई.
जीत के बाद स्टीफन बने डिप्टी सीएम
प्रो स्टीफन मरांडी ने जीत दर्ज की, तो उनकी किस्मत और भी चमक गयी. मधु कोड़ा सरकार में वह केवल कैबिनेट में शामिल नहीं हुए, बल्कि डिप्टी सीएम भी बनाये गये. लेकिन अगले चुनाव तक में दुमका विधानसभा क्षेत्र की जनता ने मूड बदल लिया और कांग्रेस से प्रत्याशी बन चुके प्रो स्टीफन को तीसरे स्थान पर पहुंचा दिया. इस बार जनता ने हेमंत पर भरोसा किया. हेमंत सोरेन विधायक बने, तो भाजपा-झामुमो की मिलीजुली सरकार में हेमंत सोरेन का कद डिप्टी सीएम का तय किया गया. थोड़े दिन यह सरकार चली, फिर राजनीति ने करवट ली, तो हेमंत सोरेन ही सीएम बन गये. लगभग 14 माह दुमका के विधायक ने मुख्यमंत्री के रूप में सत्ता संभाली. फिर 2014 में चुनाव हुआ, तो जनता ने मूड बदला और मुख्यमंत्री के रूप में हेमंत सोरेन अपनी ही सीट दुमका से चुनाव हार गये. यहां से पहली बार विधानसभा में भाजपा की इंट्री हुई. डॉ लुईस मरांडी विधायक चुनी गयीं, तो मुख्यमंत्री को पटखनी देने की वजह से रघुवर दास की सरकार में उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया.
2019 में हेमंत सोरेन को मिली जीत, बने सीएम
2019 में जनता ने फिर मूड बदला और भाजपा को यहां से पराजित कर झामुमो प्रत्याशी के रूप में हेमंत सोरेन को जीत दिलायी. इस बार मुख्यमंत्री के रूप में हेमंत सोरेन ने फिर शपथ ली. दोनों सीट यानी दुमका के साथ बरहेट में जीत दर्ज करने की वजह से हेमंत सोरेन ने दुमका सीट को छोड़ दिया. झामुमो ने अपनी इस सीट पर राजनीतिक विरासत को संभालने के लिए बसंत सोरेन को उपचुनाव लड़वाया. बसंत सोरेन भी चुनाव जीतने में कामयाब रहे. इस बीच इडी द्वारा गिरफ्तार किये जाने की वजह से हेमंत सोरेन ने इस्तीफा दिया, तो चंपाई सरकार में बसंत सोरेन ने तीन महत्वपूर्ण विभाग जल संसाधन, पथ एवं भवन निर्माण विभाग के मंत्री के रूप में दायित्व संभाला. हालांकि हेमंत सोरेन जब जेल से बाहर आये, तो बदले राजनीतिक माहौल में बसंत सोरेन का मंत्रालय छीन गया. इस बार बसंत सोरेन फिर चुनावी दंगल में हैं. इस बार उनके सामने भाजपा के प्रत्याशी के रूप में सुनील सोरेन खड़े हैं. डॉ लुईस मरांडी, जिन्हें बसंत ने पिछले चुनाव में परास्त किया था, इस बार उनके साथ झामुमो में हैं और उनका साथ उन्हें मिल रहा है.
इस बार भाजपा ने सुनील सोरेन पर लगाया है दांव
इस बार भाजपा ने सुनील सोरेन पर दांव लगाया है. सुनील सोरेन जामा विधानसभा क्षेत्र में 2005 में बसंत के बड़े भाई स्व दुर्गा सोरेन को तथा 2019 में पिता शिबू सोरेन को संसदीय चुनाव में परास्त कर चुके हैं. हालांकि सुनील सोरेन को संसदीय चुनाव में सात टर्म से शिकारीपाड़ा से विधायक रहे झामुमो के नलिन सोरेन से परास्त होना पड़ा था. दुमका में 20 नवंबर को मतदान होना है. बसंत-सुनील के अलावा छह उम्मीदवार राजनीतिक दलों से और सात उम्मीदवार निर्दलीय ताल ठोक रहे हैं. जनता इस बार किसके सर ताज बांधती है, यह देखना दिलचस्प होगा.
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