रांची : कोरोना के संक्रमण ने दुर्गा पूजा के दौरान करीब 50 लाख लोगों का रोजगार छीन लिया. करोड़ों रुपये का कारोबार प्रभावित हुआ. आंकड़ा सिर्फ झारखंड के कोल्हान प्रमंडल का है. कोल्हान के तीन जिले पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम और सरायकेला-खरसावां में दुर्गा पूजा के दौरान पंडाल के निर्माण और उसकी साज-सज्जा पर 50 करोड़ रुपये से अधिक खर्च होते थे. इससे झारखंड के अलग-अलग जिलों के अलावा पश्चिम बंगाल के लोगों को बड़े पैमाने पर रोजगार मिलता था.
प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से करीब 50 लाख लोग इससे लाभान्वित होते थे. लेकिन, इस बार कोरोना की मार ने पंडाल बनाने से लेकर बिजली की साज-सज्जा करने वाले और मेला में ठेला-खोमचा लगाने वालों की रोजी-रोटी पर आफत आ गयी है. कोरोना काल में जारी लॉकडाउन की वजह से पहले ही संकटों से जूझ रहे इन कारीगरों को दुर्गा पूजा से काफी उम्मीदें थीं, लेकिन सरकारी गाइडलाइन की वजह से एक बार फिर उन्हें मायूसी हाथ लगी है.
कोल्हान के इन तीन जिलों में सैकड़ों भव्य पूजा पंडाल बनते थे. सिर्फ पंडाल के निर्माण से ही हजारों लोगों को रोजगार मिल जाता था. पश्चिम बंगाल से सटे इन जिलों में प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से करीब 50 लाख लोगों का रोजगार तो प्रभावित हुआ ही है, स्थानीय कारोबारियों की भी दुकानदारी त्योहारों के दौरान ठप रही. पश्चिम बंगाल के कारीगरों के लिए कोल्हान एक बड़ा बाजार है. दुर्गा पूजा, लक्ष्मी पूजा और काली पूजा के दौरान पश्चिमी मेदिनीपुर के हजारों कारीगरों को इन जिलों में बड़ा काम मिलता था.
Also Read: नवरात्रि के सातवें दिन झारखंड के शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो के समर्थकों के लिए चेन्नई से आयी अच्छी खबरइससे इनकी अच्छी-खासी कमाई हो जाती थी. लेकिन, कोरोना ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया और ये कामगार और कलाकार इस साल बेरोजगार रह गये. इसलिए ये लोग इस बार बेहद निराश हैं. अब इनकी चिंता यह है कि साल भर घर में चूल्हा कैसे जलेगा. एक अनुमान के मुताबिक, सिर्फ सरायकेला-खरसावां जिला में ही 100 से अधिक जगहों पर सार्वजनिक पूजा का आयोजन होता रहा है. सभी जगहों पर पंडाल के आकार के हिसाब से छोटे-बड़े मेले का भी आयोजन होता रहा है.
इस साल सिर्फ परंपरा निभाने के लिए पूजा का आयोजन हुआ. पंडाल के आकार को भी सीमित कर दिया गया. यहां तक कि मां दुर्गा की प्रतिमा की अधिकतम ऊंचाई भी प्रशासन ने तय कर दी. मेला पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी गयी. इसलिए पूजा पंडालों के आसपास लगने वाले मेले में ठेले-खोमचे, सजावटी सामान समेत विभिन्न आकर्षक कलाकृतियों की बिक्री करके कमाई करने वाले लोगों का रोजगार पूरी तरह से चौपट हो गया.
Also Read: फूलों की खेती कर पीएम मोदी के ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान का सिपाही बन रहे झारखंड के युवायहां बताना प्रासंगिक होगा कि बड़े पैमाने पर और भव्य पूजा का आयोजन करने वाली समितियां दो-तीन महीने पहले से ही पूजा की तैयारियों में जुट जाती थीं. ऐसे में प्रतिमा बनाने वाले शिल्पकार से लेकर पंडाल का निर्माण और उसकी साज-सज्जा करने वाले कारीगरों की अच्छी-खासी कमाई हो जाती थी. लेकिन इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ. पूजा के आयोजकों ने कहा है कि सरकार ने गाइडलाइन जारी करने में काफी देर कर दी. पूजा से सिर्फ 10 दिन पहले गाइडलाइन जारी किया गया, जिससे उन्हें आयोजन की रूपरेखा तैयार करने में काफी परेशानी हुई.
Posted By : Mithilesh Jha