रांची : कोरोना वायरस के संक्रमण के मद्देनजर राज्य सरकार द्वारा जारी गाइड लाइन की वजह से इस साल मोरहाबादी में रावण दहन नहीं होगा. आजादी के 72 वर्षों के इतिहास में यह पहली बार होगा, जब निर्बाध चली आ रही परंपरा का निर्वहन नहीं किया जा सकेगा.
हालांकि, इससे निराश होने की बजाय लोगों को खुश होना चाहिए कि हम रावण दहन कार्यक्रम का आयोजन न करके ‘कोरोना दहन’ कर रहे हैं. यानी जब सामूहिक पूजा, मेला आदि का आयोजन होगा ही नहीं, तो कोरोना फैलेगा ही नहीं.
राजधानी में रावण दहन की शुरुआत के पंजाबी हिंदू बिरादरी ने ही की थी. बिरादरी की ओर से ही मोरहाबादी मैदान में हर साल रावण दहन किया जाता है. बिरादरी के प्रवक्ता अरुण चावला ने बताया कि कोविड-19 के कारण राज्य सरकार के निर्देशों के मद्देनजर बिरादरी ने विगत दिनों रावण दहन का आयोजित नहीं करने का निर्णय लिया था.
देश के विभाजन के समय पाकिस्तान से विस्थापित होकर पंजाबियों के कई परिवार रांची में आकर बस गये थे. खिजुरिया तालाब गोसनर कॉलेज के समीप स्थित शिविर में रह रहे लगभग एक दर्जन परिवारों ने विजयदशमी के दिन रावण दहन कर पहला दशहरा मनाया था.
स्वर्गीय लाला खिलंदा राम भाटिया, स्वर्गीय राम टहल मिनोचा, स्वर्गीय शादीराम भाटिया, स्वर्गीय मनोहर लाल, स्वर्गीय कृष्णलाल नागपाल, स्वर्गीय अमीरचंद सतीजा और स्वर्गीय अशोक नागपाल ने इसमें प्रमुख भूमिका निभायी थी.
स्व अमीरचंद सतीजा ने बनाया था रावण का पहला पुतला : श्री चावला ने बताया कि रांची में रावण का पहला पुतला स्व अमीरचंद सतीजा ने अपने हाथों से बनाया था. तब के डिग्री कॉलेज (बाद में रांची कॉलेज मेन रोड डाकघर के सामने) के प्रांगण में 12 फीट के रावण का निर्माण किया गया.
दशहरे के दिन गाजे-बाजे व पंजाबी ढोल-नगाड़े के साथ लगभग 400 लोगों की उपस्थिति में पहला रावण दहन किया गया. पंजाब के अन्य शहरों की तरह ही रांची में भी रावण का मुखौटा पहले गधे का होता था, परंतु बाद में उनका मुखौटा मानव मुख का बनने लगा.
हर साल बढ़ती हुई भीड़ व रावण के पुतलों की बड़ी होती लंबाई के मद्देनजर रावण दहन कार्यक्रम डिग्री कॉलेज, खजुरिया तालाब के पास शरणार्थी शिविर, डोरंडा के राम मंदिर, बारी पार्क व राजभवन के सामने नक्षत्र वन में होने लगा.
अरुण चावला के अनुसार, वर्ष 1960 से मोरहाबादी में ही रावण दहन किया जा रहा है. रांची में रावण दहन के लंबे इतिहास में इस कार्यक्रम के चेयरमैन पंजाबियों के अलावा मारवाड़ी समाज सहित अन्य समाज के लोग भी चेयरमैन बने.
कई वर्षों से रावण, मेघनाद व कुंभकर्ण के पुतलों का नर्मिाण गया के मोहम्मद मुसलिम व उनकी टीम द्वारा किया जा रहा है. स्वर्गीय रामलाल चावला द्वारा चडरी स्थित भुतहा तालाब के समीप रामलीला व अलबर्ट एक्का चौक के समीप भरत मिलाप का भी आयोजन करवाया जाता था. बाद में विभन्नि कारणों की वजह से इन्हें बंद कर दिया गया. झारखंड राज्य के गठन के बाद से मुख्यमंत्री रावण दहन कार्यक्रम के मुख्य अतिथि होते रहे हैं.
posted by : sameer oraon