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EXCLUSIVE: दुर्गा पूजा के कलश की ‘जयंती’ को न करें बर्बाद, असाध्य रोगों की है अचूक दवा

विशेषज्ञों ने बताया कि जयंती के रस या पावडर का सेवन कब और कैसे करना चाहिए. इसका उपयोग कैसे करें, इसके बारे में हम बात करेंगे, लेकिन पहले आपको बताते हैं कि जयंती है क्या और इसके कौन-कौन से गुण हैं. किन लोगों के लिए यह लाभकारी है.

नवरात्र के पहले दिन कलश स्थापना के साथ कलश ने नीचे बालू या मिट्टी में जौ डालने की परंपरा है. मां दुर्गा की आराधना के नौ दिन में इससे जो पौधा निकलता है, उसे जयंती कहते हैं. इसे शिखा में बांधते हैं. कुछ लोग कान पर रखते हैं. यह बेहद शुभ माना जाता है. क्या आप जानते हैं कि नवरात्र में विसर्जन के दिन जिस जयंती को लोग शिखा में बांधते या कान पर रखते हैं, उसके औषधीय गुण भी हैं. जी हां, यह औषधीय गुणों की खान है. यदि 10-15 दिन तक इसके कच्चे रस का सेवन किया जाए, तो सेवन करने वाले को कैंसर नहीं होगा. इससे लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है. यहां तक कि यह रक्तशोधन (ब्लड को फिल्टर) भी करता है. इस संबंध में प्रभात खबर ने झारखंड के आयुर्वेद के दो डॉक्टर्स यानी वैद्यों और पूजा का अनुष्ठान करने वाले पंडित से जब इस बारे में पूछा, तो उन्होंने ‘जयंती’ के चमत्कारी गुणों के बारे में बताया. उन्होंने यह भी बताया कि जयंती के रस या पावडर का सेवन कब और कैसे करना चाहिए. इसका उपयोग कैसे करें, इसके बारे में हम बात करेंगे, लेकिन पहले आपको बताते हैं कि जयंती है क्या और इसके कौन-कौन से गुण हैं. किन लोगों के लिए यह लाभकारी है. इसका सेवन कब करना चाहिए.

जयंती क्या है?

दुर्गा पूजा के पहले दिन कलश स्थापना के साथ मिट्टी या बालू में जव (जौ) छीटा जाता है. पूजा के नौ दिन के दौरान यह अंकुरित होकर पौधे में तब्दील हो जाता है. दरअसल बालू या मिट्टी में मिलाकर पहले जमीन पर एक तरह से वेदी बनती है. उसके बीच में गड्ढा करके उस पर कलश रखा जाता है. सनातन धर्म में तांबा या पीतल का कलश रखने का विधान है, लेकिन मिट्टी का कलश भी रखते हैं. पूजा के नौ दिन रोज इसमें गंगा जल, पंचामृत, सर्वौषधि, महौषधि का जल डाला जाता है. मां दुर्गा की पूजा-अर्चना होती है. पंडित रामदेव पांडेय बताते हैं कि आदिशक्ति की पूजा होती है, जिसने ब्रह्मांड का निर्माण किया है. नवरात्र में नौ दिनों तक नवदुर्गा शक्ति की आराधना होती है. पंचदेव, जो प्रकृति के पांच तत्वों के प्रतीक हैं, उनकी भी आराधना की जाती है. पूजा के दौरान दुर्गा सप्तशती के पाठ से जो ध्वनि निकलती है वह घंटा की ध्वनि के साथ मिलकर इस जौ (बार्ली) के नव अंकुरित पौधों में प्रवाहित होती है.

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पंडित पांडेय के मुताबिक, इसमें इतनी ऊर्जा होती है कि दशमी के दिन दाहिने कान पर रखने से ही यजमान का कल्याण होता है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इसके सेवन से शरीर में कितनी ऊर्जा आएगी. पंडित रामदेव पांडेय कहते हैं कि इसमें बहुत से विटामिन और खनिज तत्व पाए जाते हैं. यही वजह है कि हमारे पूर्वज इसको सालों भर संजोकर रखते थे. इसका चूर्ण बनाकर इसका सेवन करते थे. लेकिन, अब हम अज्ञानतावश इसको नदी में बहा देते हैं. यह उचित नहीं है. इसको संरक्षित करें.

कैंसर से बचाता है जयंती का स्वरस : वैद्य खुलेश्वर महतो

गोमिया प्रखंड के जाने-माने वैद्य खुलेश्वर महतो कहते हैं कि जयंती के स्वरस से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है. रक्तशोधक का काम करता है. साथ ही यह कैंसर से भी बचाता है. उन्होंने बताया कि अगर कोई व्यक्ति 15 से 20 दिन 15-20 मिलीलीटर प्रतिदिन इसके रस का सेवन कर ले, तो उसे कैंसर नहीं होगा. उन्होंने बताया कि इसका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं है. इसलिए कोई भी व्यक्ति इसका सेवन कर सकता है. उन्होंने कहा कि ताजा स्वरस से ज्यादा फायदा होता है. इसलिए हर दिन इसका रस निकालकर पीना चाहिए.

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असाध्य रोगों में है लाभकारी : डॉ पीएन पांडेय

वहीं, रांची के डॉ पीएन पांडेय कहते हैं कि जयंती के स्वरस या इसके पावर का सेवन असाध्य रोगों में लाभकारी है. वह कहते हैं कि स्वरस का सेवन प्रतिदिन 20 मिलीलीटर और अगर इसे सुखाकर पावडर बना लेते हैं, तो एक चम्मच सुबह-शाम खाली पेट लेने से अत्यंत फायदा होगा. डॉ पांडेय के मुताबिक, इसे ग्रीन ब्लड भी कह सकते हैं. यह एंटी ऑक्सीडेंट से भरपूर है. इसमें प्रचुर मात्रा में विटामिन बी1, विटामिन बी2, विटामिन बी5 पाया जाता है. इतना ही नहीं, इसके रस के सेवन से आयरन की कमी दूर होती है. अनिद्रा, एसिडिटी, अपच, गैस, पेट फूलना, जोड़ों के दर्द, आमवात, गठिया, त्वचा के रोग, धातु रोग दूर होते हैं. स्त्री और पुरुष दोनों के लिए यह समान रूप से लाभकारी है.

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डॉ पांडेय ने बताया कि बालों का झड़ना, मधुमेह, मोटापा, थायरॉयड के मरीजों के लिए तो लाभदायक है ही, त्वचा की झुर्रियों को कम करने में भी यह मददगार है. ये एंटी एजिंग भी है. यानी बुढ़ापे को आपसे दूर रखता है. आंखों की रोशनी अगर कम हो रही हो, तो इसका सेवन लगातार करने से लाभ होगा. इसके रस को पानी में मिलाकर कुल्ला करने से पायरिया (दांत का एक रोग) और मुंह के छालों में भी फायदा होता है. कुल मिलाकर यह जयंती अमृत तुल्य है.

कैसे करें सेवन

जैसा कि पहले ही बता दिया गया है कि इसका इस्तेमाल स्वरस और पावडर दोनों रूपों में कर सकते हैं.

स्वरस

  • जयंती को साफ पानी में धो लें, ताकि उसमें लगी मिट्टी और बालू साफ हो जाएं. इसके बाद इसे अच्छे से कूच लें और उसका रस निचोड़ लें. 15-20 मिलीग्राम रस एक दिन में लेना चाहिए. दो चम्मच का सेवन करेंगे, तो आपको इसका भरपूर फायदा मिलेगा.

पावडर

  • अगर आप हर दिन इसका स्वरस निकालने में असमर्थ हैं, तो इसको सुखाकर इसका पावडर बना लें. हर दिन सुबह-शाम खाली पेट एक-एक चम्मच इसका सेवन करें. अभूतपूर्व लाभ होगा.

कैसी मिट्टी में उगाएं जयंती

दुर्गा पूजा के दौरान तो पवित्र मिट्टी और बालू में जयंती उगाते हैं. अगर औषधि के रूप में इसका इस्तेमाल करना हो, कई गमले में जौ के बीज छीट दें. इसके लिए किसी भी मिट्टी का इस्तेमाल न करें. जमीन के नीचे कम से कम तीन फीट नीचे की मिट्टी लें. वैद्य खुलेश्वर महतो कहते हैं कि आजकल खेतों में तरह-तरह के खाद डाले जाते हैं. औषधि के रूप में जयंती का इस्तेमाल करना है, तो तीन फीट नीचे की मिट्टी लें. उसे गमले में रख दें. उसमें जौ के बीज छीटें. कुछ ही दिनों में उसमें पौधे निकल आएंगे. बारी-बारी से उसे उखाड़कर, धोकर फिर कूचकर रस निकालें और उसका सेवन करें. अगर जमीन के ऊपर की मिट्टी में पौधा उगाएंगे, तो मिट्टी में मौजूद तरह-तरह के रसायन की वजह से ज्यादा फायदा नहीं होगा.

Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.

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