साल 1874 के बाद लोहरदगा में दिखे ये दो दुर्लभ प्रवासी पक्षी, दोनों का आकार और रंग ऐसा कि अंतर करना मुश्किल
झारखंड में इससे पहले वर्ष 2011 में साहिबगंज की उधवा लेक बर्ड सेंचुरी में चार की संख्या में ये लुप्तप्राय पक्षी नजर आये थे. वहीं, 2012 में सरायकेला-खरसावां के रंगामाटी में एक गरुड़ नजर आया था.
अभिषेक रॉय, रांची
प्रवासी पक्षियों का पसंदीदा जगह है झारखंड. यही कारण है कि नवंबर से ही विभिन्न जिलों के जलाशय, पोखर और नदी के आसपास के दलदली इलाकों में बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षियों के झुंड नजर आने लगते हैं. खास बात यह है कि लोहरदगा में 149 वर्ष बाद कछमाछी स्थित नंदी धाम में फिर ”लेस्सर एडजुटेंट स्टॉर्क” हिंदी नाम ”गरुड़” और स्थानीय नाम ”गांडागंदुर” नजर आये हैं. इससे पहले लोहरदगा में वर्ष 1874 में एक गरुड़ दिखा था.
हालांकि, झारखंड में इससे पहले वर्ष 2011 में साहिबगंज की उधवा लेक बर्ड सेंचुरी में चार की संख्या में ये लुप्तप्राय पक्षी नजर आये थे. वहीं, 2012 में सरायकेला-खरसावां के रंगामाटी में एक गरुड़ नजर आया था. वाइल्ड लाइफ बायोलॉजिस्ट संजय खाखा ने बताया कि रविवार को बर्ड वाचिंग के दौरान उन्हें ये पक्षी नंदी धाम स्थित दलदली इलाके के ऊंचे पेड़ों पर बैठे नजर आये. टीम में बर्ड वाचर अविनाश कुमार, अनिता लकड़ा और जया उरांव शामिल थे. बाकी
आइयूसीएन ने 2020 में लुप्तप्राय पक्षी में किया चिह्नित :
इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आइयूसीएन) स्टॉर्क यानी सारस प्रजाति के पक्षी लेस्सर एडजुटेंट स्टॉर्क को 2020 में लुप्तप्राय पक्षी की श्रेणी में चिह्नित कर चुकी है. तेजी से कम होती इन पक्षियों की संख्या को देखते हुए इन्हें विलुप्तप्राय यानी रेड लिस्ट कैटेगरी में शामिल किया गया है. संजय ने बताया कि नजर आये गरुड़ पक्षी वयस्क हैं. इनकी लंबाई करीब 55 इंच है. आम-तौर यह पक्षी ऊंचे पेड़ पर अपना निवास ढूंढते है, ताकि आम लोगों की नजर से दूर रहें.
समान दिखते हैं नर और मादा :
गरुड़ में नर और मादा को फर्क करना मुश्किल है. दोनों का रंग सामान्यत: समान होता है. जबकि, नर का शरीर मादा से भारी आंका गया है. मादा की लंबाई 45 से 50 इंच तक आंकी गयी है.
भोजन : मछली, मेंढक, छिपकली, सांप, घोंघे, बड़े कीड़े-मकौड़े
पहचान :
वयस्क गरुड़ का चेहरा लाल, सिर का रंग भूरा और सफेद, पतली गर्दन का रंग पीला, पंख का रंग ग्रे (सिलैटी रंग) और शरीर का रंग सफेद