विश्वत सेन
रांची : आम नागरिक जानते हैं कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई कर रहा है और वह इन्हीं मामलों में राजनेताओं से लेकर तमाम पावरफुल लोगों पर निशाना साध रहा है. वहीं, राजनेता और ईडी की जांच की जद में आने वाले लोग बिन पानी की मछली की तरह पनाह मांगते हैं, बौखलाहट में सरकार पर आरोप मढ़ते हैं. मगर यह पूरी तरह सच नहीं है. न शासकवर्ग और न राजनेता आम नागरिक को ईडी की कार्रवाई की सच्चाई बता रहे हैं और न खुद प्रवर्तन निदेशालय. एक आम नागरिक के तौर पर www.prabhatkhabar.in ने यह जानने का प्रयास किया और इस संदर्भ में झारखंड हाईकोर्ट के अधिवक्ता आलोक आनंद से बात की, तब पता चला कि साहब, मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट या पीएमएलए कोई भारत सरकार की देन ही नहीं है. इसके विपरीत भारत सरकार ने 20वीं सदी में ही संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएनए) से वादा कर चुकी थी कि वह आतंकवाद को बढ़ावा देने में टेरर फंडिंग पर लगाम लगाने के लिए या अवैध तरीके से अर्जित संपत्ति को समानांतर अर्थव्यवस्था में डालकर वैध या सफेद बनाने की प्रक्रिया को रोकने के लिए एक ठोस और कारगर कानून बनाएगी. संयुक्त राष्ट्र से किए गए वादे के अनुसार, भारत सरकार ने वर्ष 2002 में पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में धनशोधन निवारण अधिनियम लेकर आई. उसे संसद के दोनों सदनों से पास करवाने के बाद प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट यानी पीएमएलए बनाया गया और इस कानून के अनुपालन के लिए प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) का गठन किया गया. उस समय ईडी को मनी लॉन्ड्रिंग के खिलाफ जांच, कार्रवाई, तलाशी/छापेमारी, कुर्की-जब्ती और गिरफ्तारी के लिए पुलिस और केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) का मुंह ताकना पड़ता था. भारत सरकार ने वक्त की मांग को देखते हुए मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट में 2005, 2007 और 2019 में संशोधन किए. 2019 के संशोधन के बाद ईडी के अधिकार में कितनी वृद्धि हुई, इसे जानने के लिए पढ़िए झारखंड हाईकोर्ट के अधिवक्ता आलोक आनंद के साक्षात्कार की तीसरी कड़ी…
आलोक आनंद : मनी लॉन्ड्रिंग के किसी भी मामले में ईडी के जांच अधिकारी बिना किसी मौजूद सबूत या तथ्य के कार्रवाई शुरू नहीं करते. उनके पास जब सारे तथ्य मौजूद होते हैं, तभी वह व्यक्ति विशेष को पूछताछ के लिए समन भेजते हैं कि आपके खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग (अवैध तरीके से अर्जित धन को वैध बनाने) का मामला आया हुआ है, उसमें आपका क्या कहना है. आप आइए और आप अपना पक्ष रखिए. प्रवर्तन निदेशालय किसी व्यक्ति विशेष, राजनेता या व्यवसायी को बिना सबूत के समन नहीं भेजता.
आलोक आनंद : साधारणतया पहले क्या होता था कि जैसे ही कोई आपराधिक मामला सामने आता था, आम तौर पर सीआरपीसी की धारा 164 के तहत एफआईआर दर्ज कर लिया जाता था. इसे हमलोग फर्स्ट इन्फॉर्मेशन रिपोर्ट कहते हैं. प्रवर्तन निदेशालय में वह नहीं है.
आलोक आनंद : 2019 से पहले मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट में क्या होता था कि जैसे ही पुलिस या सीबीआई के द्वारा धनशोधन को लेकर कोई एफआईआर दर्ज की जाती थी, तब ईडी को ईसीआईआर रिकॉर्ड करने का अधिकार मिलता था. अब ईसीआईआर क्या है? तो इन्फॉर्समेंट केस इन्फॉर्मेशन रिपोर्ट को ईसीआईआर कहा जाता है.
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पुराने कानून में ईसीआईआर रिकॉर्ड करने के बाद ईडी को धनशोधन के मामले में पूछताछ करने का अधिकार मिल तो जाता था, मगर उसके पास कार्रवाई, तलाशी, कुर्की, गिरफ्तारी और अदालत में चार्जशीट दाखिल करने का अधिकार नहीं था. ईडी द्वारा ईसीआईआर रिकॉर्ड करने के 24 घंटे के अंदर पुलिस या सीबीआई कोर्ट में चार्जशीट दाखिल करती थी या फिर किसी की गिरफ्तारी के 24 घंटे के अंदर उसे संबंधित मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना पड़ता था, लेकिन 2019 में मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के संशोधन में इन सभी बाध्यताओं को खत्म करके ईडी को वे सारे अधिकार दे दिए गए, जो अब तक पुलिस या सीबीआई के पास थे. 2019 के संशोधन से पहले सीआरपीसी की धारा-70 के तहत कार्रवाई, जांच, तलाशी, छापेमारी, कुर्की-जब्ती और गिरफ्तारी पर जो रोक लगी थी, उसे कानून में संशोधन करके सामाप्त कर दिया गया.
नोट : मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट पर झारखंड हाईकोर्ट कोर्ट के अधिवक्ता आलोक आनंद के साक्षात्कार की चौथी कड़ी जल्द…