झारखंड : ईडी ने छवि रंजन व जमीन दलालों पर केस दर्ज करने का किया अनुरोध, फर्जी दस्तावेज के सहारे बेची थी जमीन
ईडी ने रांची के तत्कालीन डीसी छवि रंजन और जमीन दलालों पर केस दर्ज करने का अनुरोध पीएमएलए कोर्ट से किया है. बताया गया कि फर्जी दस्तावेज के सहारे इस जमीन के मालिकाना हक के लिए दावेदारी की जा रही थी.
Jharkhand News: दलालों ने फर्जी दस्तावेज के सहारे रांची के तत्कालीन उपायुक्त छवि रंजन की मदद से हेहल की 7.16 एकड़ जमीन बेच दी. प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने पीएमएलए की धारा-66(2) के तहत इस जमीन की खरीद-बिक्री की जांच में मिले तथ्यों को राज्य सरकार के साथ साझा किया है. साथ ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में दोषी लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का अनुरोध किया है.
फर्जी दस्तावेज के सहारे बेची जमीन
पीएमएलए की धारा-66(2) के तहत साझा की गयी सूचना में कहा गया कि खाता नंबर-140 की जमीन पर मालिकाना हक पर विवाद चल रहा था. जमीन के मूल दस्तावेज (पेज नंबर-133 और 134, बुक नंबर-1, वॉल्यूम-6, वर्ष 1938) को फाड़ दिया गया था, ताकि असली मालिक के नाम का पता नहीं चले. इसके बाद फर्जी दस्तावेज के सहारे इस जमीन के मालिकाना हक के लिए दावेदारी की जा रही थी.
विनोद सिंह ने स्वीकारा, नहीं है उसकी जमीन
फर्जी दस्तावेज के सहारे मालिक बनकर जमीन बेचनेवाले विनोद सिंह ने भी इस बात को स्वीकार किया है. जांच-पड़ताल के दौरान विनोद सिंह ने यह स्वीकार किया कि यह जमीन उसकी नहीं थी. एक दिन जमीन दलाल उसके पास आया और कहने लगा कि उसके पिता की एक जमीन हेहल अंचल में है. अगर वह चाहे, तो वे लोग इस जमीन को उसे दिलाने में मदद कर सकते हैं. इसके बाद जमीन दलालों ने उससे आधार सहित कुछ अन्य दस्तावेज लिये. वर्ष 2021 में अचानक सुधीर दास नामक दलाल उसके पास आया. उसने रवि सिंह भाटिया व अन्य से जमीन बेचने के लिए एकरारनामा कराया. साथ ही बैंक ऑफ बड़ौदा और पंजाब एंड सिंध बैक में खाता खुलवाया. इसके बाद यह जमीन रवि सिंह भाटिया और श्याम सिंह भाटिया से बेचवा दी.
29.88 करोड़ की जमीन, बिक्री 15.10 करोड़ में दिखायी, भुगतान हुआ सिर्फ 3.66 करोड़
जांच में पाया गया कि सरकारी दर पर जमीन की कीमत 29.88 करोड़ रुपये थी, लेकिन सिर्फ 15.10 करोड़ रुपये में जमीन बिक्री दिखायी गयी. हालांकि, वास्तविक भुगतान सिर्फ 3.66 करोड़ रुपये का ही किया गया. बाकी पैसा विनोद सिंह के खाते से सीएसएन डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड और गणपति स्टील, लाइनेज सेल आदि के खाते में ट्रांसफर कर दिया गया. जांच में पाया गया जमीन के मूल दस्तावेज को फाड़ कर रूप नारायण सिंह को जमीन का फर्जी मालिक बनाया गया. इसी दस्तावेज के आधार पर रूप नारायण के पुत्र विनोद सिंह के माध्यम से जमीन की बिक्री की गयी. इडी ने जमीन से जुड़े अन्य दस्तावेजों की जांच में पाया कि सेल डीड नंबर-255 कडरू मौजा से संबंधित था. वर्ष 1938 के सेल डीड नंबर-255 में जमीन के असली मालिक साधु मुंडा वगैरह थे.
जमाबंदी रद्द होते ही विनोद सिंह के नाम पर हुआ म्यूटेशन
जांच में पाया गया कि मूल दस्तावेज में छेड़छाड़ कर तैयार किये गये फर्जी दस्तावेज के सहारे विनोद सिंह ने जमीन पर अपना दावा किया. अंचल अधिकारी सहित दूसरे राजस्व न्यायालयों ने विनोद सिंह के दावे को खारिज कर दिया. इसके बाद यह मामला तत्कालीन उपायुक्त छवि रंजन की अदालत में आया. उन्होंने सुनियोजित साजिश के तहत पहले से चले आ रही जमाबंदी को रद्द करते हुए विनोद सिंह के नाम पर जमाबंदी कायम करने का आदेश दिया. इस आदेश के बाद विनोद सिंह के नाम पर जमीन का म्यूटेशन हुआ और उसने जमीन रवि सिंह भाटिया व अन्य को बेच दी. जमीन खरीदने के बाद रवि सिंह भाटिया व अन्य के आवेदन पर छवि रंजन ने 150 जवानों को तैनात कर घेराबंदी करवायी. इडी ने इन तथ्यों का उल्लेख करते हुए सरकार को भेजे गये पत्र में सुप्रीम कोर्ट द्वारा ललिता देवी बनाम उत्तर प्रदेश के मामले में दिये गये फैसले के आलोक में प्राथमिकी दर्ज करना का अनुरोध किया है.