वर्ष 2020 में नये वित्त वर्ष का आरंभ देशव्यापी लॉकडाउन में हुआ था और कोरोना वायरस के संक्रमण एवं उसकी रोकथाम के उपायों के कारण अर्थव्यवस्था में बड़ी गिरावट आयी थी. उभरती आर्थिकी को अब फिर महामारी की दूसरी लहर से खतरा पैदा हो गया है. प्रतिदिन बढ़ते आंकड़े इंगित कर रहे हैं कि स्थिति के सामान्य होने में कुछ समय लग सकता है. हालांकि अभी बड़े पैमाने पर लॉकडाउन या कड़ी पाबादियों की संभावना नहीं है, लेकिन स्थानीय स्तर पर और अधिक प्रभावित क्षेत्रों में आंशिक बंदी से भी आर्थिक गतिविधियों पर नकारात्मक असर पड़ सकता है.
जानकारों ने भरोसा दिलाया है कि आर्थिकी के जो क्षेत्र नुकसान उठा सकते हैं, सकल घरेलू उत्पादन में उनका हिस्सा छह प्रतिशत से कम है, लेकिन कुछ विशेषज्ञों की यह राय भी महत्वपूर्ण है कि संकुचन से बाहर निकल रही अर्थव्यवस्था यह भी कोई मामूली झटका नहीं है. हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि अभी जो आशाएं या आशंकाएं जतायी जा रही हैं, वे उनका आधार वर्तमान स्थिति है. अर्थव्यवस्था के विस्तार में भरोसे की उम्मीद टीकाकरण अभियान की वजह से भी है, लेकिन आबादी के बड़े हिस्से को टीके की खुराक मिलने में कई महीने लग सकते हैं और महामारी की दूसरी लहर तेजी से अपना दायरा बढ़ा रही है.
अनुमानों की मानें, तो इस साल के अंत तक लगभग आधी आबादी को टीके लग सकते हैं. यह टीकों की समुचित उपलब्धता और अभियान की गति पर निर्भर करेगा. इस संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह आह्वान महत्वपूर्ण है कि जिस आयुवर्ग को टीका मुहैया कराया जा रहा है, उन्हें इसकी खुराक जल्दी ले लेनी चाहिए. इस अभियान के बढ़ने से पाबंदियों में भी उत्तरोत्तर छूट मिलती जायेगी, जिससे आर्थिक वृद्धि तेज होगी.
अमेरिका समेत कुछ देशों में भी संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही से वैश्विक अर्थव्यवस्था में भी तेजी आयेगी, जिसका फायदा हमारी आर्थिकी को भी होगा. बढ़ते निवेश और निर्यात से इसके संतोषजनक संकेत भी मिल रहे हैं. बीते सप्ताह रुपये की कीमत में गिरावट से आयात व ब्याज के भुगतान पर दबाव बढ़ा है, लेकिन भारत समेत अंतरराष्ट्रीय शेयर बाजारों में उत्साह बना हुआ है.
भले ही नये वित्त वर्ष की पहली तिमाही में वृद्धि की दर आशा के अनुरूप न रहे, पर उसके बाद व्यापक सुधार अपेक्षित है. कोरोना संक्रमण बढ़ने का एक बड़ा कारण यह है कि बहुत सारे लोग बचाव के उपायों पर ठीक से अमल नहीं कर रहे हैं. मास्क पहनने, भीड़ न करने और साबुन-सैनिटाइजर के इस्तेमाल में लापरवाही खतरनाक साबित हो रही है. बीते साल की आर्थिक गिरावट का खामियाजा हम सभी को भुगतना पड़ा है. यदि हम सचमुच चाहते हैं कि वृद्धि दर दो अंकों में हो और हमारा देश फिर से सबसे तीव्र गति से बढ़नेवाली अर्थव्यवस्था बने, तो संक्रमण रोकने में हमें भी समुचित योगदान करना होगा.
Posted By : Sameer Oraon