राजीव पांडेय, रांची : कोरोना काल में लोग करीब 70 दिनों तक घर में लॉक रहे. सड़कों पर वाहनें नहीं चलीं. बाजारों में सन्नाटा पसर रहा. लेकिन सबसे बड़ा फायदा हमारी सेहत को हुआ. पर्यावरण स्वच्छ व शद्ध होने से फेफड़े की समस्या से लोगों को निजात मिली. खासकर अस्थमा व फेफड़े से जुड़ी बीमारी की परेशानी कम हो गयी. नियमित एलर्जी की समस्या वाले मरीजों की दवा आधी हो गयी. छाती रोग विशेषज्ञ डॉ ब्रजेश मिश्रा ने बताया कि एलर्जी व अस्थमा वाले 50 से 55 फीसदी मरीजों को राहत मिली है.
मरीज खुद फोन कर बताते हैं कि लॉकडाउन में दवा तो नहीं मिली लेकिन समस्या भी ज्यादा नहीं हुई. ऐसे में दवा नियमित रूप से लें या नहीं. छाती रोग विशेषज्ञों की मानें तो अस्थमा, सीओपीडी व फेफड़े की समस्या श्वास नलिकाओं को प्रभावित करनेवाली बीमारी है. श्वास नलिकाएं फेफड़े से हवा को अंदर-बाहर करती हैं. एलर्जी व अस्थमा में इन नलिकाओं की भीतरी दीवार में सूजन आ जाती है. आमतौर पर यह धूल व धुएं के संपर्क में आने या मौसम के बदलाव के कारण होता है.
प्रदूषण कम होने से वर्तमान समय में समस्या कम हो गयी है. अस्थमा व फेफड़ा की बीमारी के लक्षण- बलगम वाली खांसी या सूखी खांसी- सांस का फूलना-सांस की नलियों में सूजन व सिकुड़न- सांस लेते या बोलते समय घरघराहट- सीने में जकड़नकोटअस्थमा, सीओपीडी व फेफड़े की बीमारी प्रदूषित धुएं व प्रदूषण से होता है.
लॉकडाउन के कारण वायुप्रदूषण में कमी आयी है.अस्थमा को लेकर नियमित परामर्श लेने वाले मरीजों की समस्या कम हुई है. सामान्य एलर्जी वाले मरीजों ने तो दवा लेना कम कर दिया है. या बिल्कुल छोड़ दिया है.डॉ निशीथ कुमार, छाती रोग विशेषज्ञ
वायु प्रदूषण से एलर्जी की समस्या आम बात है. प्रदूषण का स्तर कम होने से एलर्जी की समस्या कम हुई है. ऐसे में पर्यावरण व स्वास्थ्य दोनों की रक्षा के लिए वाहनों की संख्या कम करने पर सोचने की जरूरत है. डॉ ब्रजेश मिश्रा, छाती रोग विशेषज्ञ, रिम्स