electricity condition in jharkhand : घर-घर पहुंची बिजली, पर जीरो पावर कट है सपना
झारखंड के घर-घर में पहुंची बिजली लेकिन राज्य के लिए जीरो पावर कट अब भी सपना
झारखंड में 20 वर्षों के दौरान बिजली व्यवस्था के क्षेत्र में कई बड़े बदलाव हुए हैं. संयुक्त बिहार में यहां के करीब 75 फीसदी गांवों में बिजली नहीं थी. शहरी क्षेत्र में अधिकतम आठ से 10 घंटे ही बिजली मिलती थी. लो वोल्टेज और तकनीकी खराबी लगातार बनी रहती थी.
झारखंड अलग राज्य बनने के बाद जितनी भी सरकारें आयीं, सबने बिजली को अपनी प्राथमिकता में रखा. शुरुआत में शहरी इलाकों को 15 से 20 घंटे बिजली मिलती थी, जो अब औसतन 22 घंटे हो गयी है. ग्रामीण इलाकों में भी हालात सुधरे हैं. वहीं, चंद घंटों में ही तकनीकी समस्याएं दुरुस्त की जा रही हैं और खराब ट्रांसफार्मर बदले जा रहे हैं.
इतनी उपलब्धियों के बावजूद झारखंड के लिए जीरो पावर कट अब भी सपना ही है. हालांकि, बिजली वितरण निगम की ओर से रांची, जमशेदपुर, बोकारो और धनबाद समेत अन्य प्रमुख शहरों में अंडरग्राउंड केबलिंग, नये ट्रांसफारमर लगाने और तारों को बदलने का काम चल रहा है. उम्मीद है कि वर्ष 2021 के अंत तक इन चार प्रमुख शहरों में जीरो कट की स्थिति आ सकती है.
बिजली की खपत बढ़ी, पर उत्पादन घटा
वर्ष 2001 में झारखंड आवासीय एवं कॉमर्शियल क्षेत्र में 650 से 750 मेगावाट बिजली की खपत होती थी, जो अब बढ़ कर 2400 मेगावाट हो गयी है. वर्ष 2001 में झारखंड सरकार के अपने पावर प्लांट से करीब 490 मेगावाट बिजली उत्पादन होता था. इसमें टीवीएनएल से 210 मेगावाट, पतरातू थर्मल पावर स्टेशन- 220 मेगावाट और सिकिदिरी हाइडल से 50 से 60 मेगावाट उत्पादन होता था.
शेष 260 मेगावाट बिजली डीवीसी व एनटीपीसी से ली जाती थी. फिलहाल पीटीपीएस को बंद कर इसे एनटीपीसी के हाथों में दे दिया गया है, जहां 4000 मेगावाट का पावर प्लांट बन रहा है. दूसरी ओर टीवीएनएल की दूसरी यूनिट से 380 मेगावाट उत्पादन होता है. यही झारखंड का अपना उत्पादन है. वहीं 1700 से 1900 मेगावाट बिजली बाहर से ली जाती है.
34 कंपनियों से हुआ एमओयू, पर पावर हब नहीं बन सका राज्य
झारखंड में 51 हजार मेगावाट बिजली उत्पादन के लिए करीब 34 कंपनियों के साथ एमओयू हुआ था. लेकिन जमीन, कोयला, पर्यावरण क्लीयरेंस व सरकार की उदासीनता को लेकर यहां पावर प्लांट नहीं लग सके. तिलैया में 3960 मेगावाट और देवघर में 4000 मेगावाट के अल्ट्रा मेगा पावर प्रोजेक्ट पर भी काम नहीं हो सका. हालांकि, गोड्डा में अडानी पावर द्वारा 1600 मेगावाट का पावर प्लांट लगाया जा रहा है. झारखंड में डीवीसी व अन्य कंपनियों द्वारा अभी लगभग 5563 मेगावाट बिजली का उत्पादन हो रहा है, लेकिन इसमें झारखंड की अपनी हिस्सेदारी केवल 360 मेगावाट की ही है.
शत-प्रतिशत गांवों का हुआ विद्युतीकरण, नये ग्रिड भी बनाये गये
झारखंड में वर्ष 2001 में केवल 17 ग्रिड थे. आज इनकी संख्या बढ़कर 43 हो गयी है. इस समय कुल 115 ग्रिड की जरूरत है. शेष ग्रिडों के निर्माण की दिशा में काम चल रहा है. वहीं, सरकार की ओर से झारखंड के शत-प्रतिशत गांवों के विद्युतीकरण का दावा किया जाता है. वर्ष 2001 में केवल आठ हजार गांव विद्युतीकृत थे. इस समय सभी 29376 गांव विद्युतीकृत हो चुके हैं.
उपभोक्ता सेवाओं का सरलीकरण किया गया
बिजली कट की शिकायत के लिए टोल फ्री नंबर जारी किया गया. साथ ही संबंधित क्षेत्र के सब स्टेशन, कनीय अभियंता, सहायक अभियंता, कार्यपालक अभियंता व जीएम को जवाबदेह बनाया गया है. बिजली कनेक्शन लेने व बिल के भुगतान का सरलीकरण किया गया. सेंट्रलाइज्ड मॉनीटरिंग सिस्टम बना. इजी बिजली एेप से विभिन्न सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित की गयी. पर बिजली कंपनी अभी भी बिजली की चोरी की समस्या से जूझ रही है. इस समय टीएंडडी लॉस 28 प्रतिशत है.
चार कंपनियां बनीं, मुख्यमंत्री ही रहे विभाग के प्रभारी मंत्री
वर्ष 2001 से लेकर वर्ष 2014 तक झारखंड राज्य विद्युत बोर्ड के रूप में एक ही कंपनी कार्यरत थी. फिर इसका बंटवारा कर वितरण, संचरण, उत्पादन और होल्डिंग कंपनी का गठन किया गया. ऊर्जा विभाग वह विभाग है, जिसके प्रभारी मंत्री ज्यादातर मुख्यमंत्री ही रहे हैं. अर्जुन मुंडा, मधु कोड़ा से लेकर रघुवर दास और हेमंत सोरेन तक इसके प्रभारी मंत्री रहे हैं.
बिजली व्यवस्था की बेहतरी के लिए हुए काम
– झारखंड राज्य विद्युत बोर्ड का हुआ बंटवारा, चार अलग-अलग कंपनियां बनाकर जिम्मेदार बनाया गया
– बिजली टैरिफ निर्धारण के लिए विद्युत नियामक आयोग का गठन हुआ, टीवीएनएल की क्षमता बढ़ायी गयी
– गढ़वा जैसे जिलों में झारखंड से बिजली आपूर्ति शुरू हुई, शत-प्रतिशत गांवों का विद्युतीकरण किया गया
– ग्रिडों की संख्या बढ़ी, पुराने सब स्टेशन व ग्रिड की क्षमता बढ़ी, आपूर्ति बढ़कर 18 से 20 घंटे तक हो गयी
– बड़े पैमाने पर तार, ट्रांसफार्मर और अन्य उपकरण बदले गये, टीएंडडी लॉस 48% से घटकर 28% पर आया
– 2001 में 100 पावर सबस्टेशन थे, 20 साल में इनकी संख्या 415 हुई यानी 315 नये पावर सबस्टेशन बने
– बिजली आपूर्ति के लिए विभिन्न कंपनियों से करार, मैथन, कोडरमा, आदित्यपुर व रामगढ़ में पावर प्लांट लगे
इन क्षेत्रों में अब सुधार की जरूरत है
– प्रमुख शहरों में जीरो पावर कट बहाल करना और गांवों में 20 से 22 घंटे तक बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करना
– आत्मनिर्भरता के लिए नये पावर प्लांट लगाना और राज्य में जरूरत के मुताबिक 115 ग्रिड का निर्माण पूरा करना
– बिजली के घाटे को कम करना और शिकायतों के त्वरित निबटारे के लिए विभागों की कार्यशैली में सुधार लाना
posted by : sameer oraon