झारखंड सरकार इतना खर्च करेगी तभी मिलेगी लोड शेडिंग से निजात
झारखंड में बिजली की मांग लगातार बढ़ती जा रही है. पर, इसके मुकाबले पर्याप्त बिजली नहीं मिल पाती है. इस कारण राज्य में खासकर गर्मी के मौसम में उपभोक्ताओं को लोडशेडिंग की मार झेलनी पड़ती है
रांची : झारखंड में उपभोक्ता बिजली की लगातार हो रही कटौती से परेशान है. लेकिन पर्याप्त बिजली नहीं मिल पाने के कारण इसकी मांग लगातार बढ़ती ही जा रही है. इसकी पूर्ति करने के लिए लोडशेडिंग करनी पड़ती है, इसके बावजूद लोगों को सुचारू रूप से बिजली नहीं मिल पाती है. एक अनुमान के अनुसार जेबीवीएनएल प्रतिमाह 550 करोड़ रुपये की बिजली खरीदता है. यहां पर कार्यरत अधिकारियों की माने तो 200 करोड़ रुपये की अतिरिक्त बिजली की जरूरत प्रतिमाह पड़ती है.
यानी प्रतिदिन 6.66 करोड़ रुपये अतिरिक्त बिजली खरीदने में खर्च किया जाये, तो पूरे राज्य को पर्याप्त बिजली मिलेगी और उपभोक्ताओं को लोडशेडिंग से निजात मिल सकती है. झारखंड में प्रतिदिन 2200-2300 मेगावाट बिजली की जरूरत पड़ती है. गर्मी के मौसम में किसी-किसी दिन यह मांग बढ़ कर 2500 मेगावाट तक पहुंच जाती है. दिन के समय राज्य में लगभग 2176 मेगावाट बिजली उपलब्ध हो पाती है.
यानी दिन में 25 से 125 मेगावाट बिजली की कमी बनी रहती है. सौर ऊर्जा से राज्य को 376 मेगावाट बिजली मिलती है. लेकिन, शाम के समय सोलर एनर्जी की बिजली बंद हो जाती है. इस कारण पीक आवर में समस्या आती है. पीक आवर शाम पांच से रात 10 बजे तक राज्य में 400 मेगावाट बिजली की कमी हो जाती है.
इस कारण लोडशेडिंग होने लगती है. पावर एक्सचेंज से अतिरिक्त बिजली खरीदने पर इसकी दर 12 रुपये प्रति यूनिट तक हो जाती है. जानकार बताते हैं कि बिजली की मांग और आपूर्ति के गैप को पूरा करने के लिए जेबीवीएनएल को प्रतिमाह लगभग 750 करोड़ रुपये की बिजली खरीदनी होगी. वहीं, एनटीपीसी के नॉर्थ कर्णपुरा पावर प्लांट चालू होने पर 660 मेगावाट अतिरिक्त बिजली जेबीवीएनएल को कम दरों पर मिलने लगेगी.
हर माह 180 करोड़ का घाटा
जेबीवीएनएल को हर माह 180 करोड़ रुपये का घाटा हो रहा है. क्योंकि, निगम जितनी बिजली खरीदता है, उसके एवज में वसूली कम है. वितरण निगम अभी हर माह 550 करोड़ रुपये की बिजली खरीदता है, जबकि 350 से 470 करोड़ रुपये तक ही राजस्व वसूली हो पाती है. इसमें सरकार द्वारा प्रति माह दी जाने वाली 150 करोड़ रुपये की सब्सिडी भी शामिल है. वहीं, निगम का वेतन व मेंटेनेंस मद में प्रतिमाह 100 करोड़ रुपये खर्च होता है. यानी कुल 650 करोड़ रुपये खर्च कर निगम अधिकतम 470 करोड़ रुपये की वसूली कर पाता है. यानी वितरण निगम को प्रत्येक माह 180 करोड़ रुपये तक का घाटा होता है.
50 लाख उपभोक्ता, पर बिलिंग सिर्फ 70 प्रतिशत
झारखंड में बिजली के 50 लाख उपभोक्ता हैं, पर इनमें से 70 प्रतिशत उपभोक्ताओं को ही बिल भेजा जाता है और राजस्व वसूली की जाती है. वहीं, बिजली के 56 प्रतिशत ग्रामीण उपभोक्ताओं की ही बिलिंग होती है. 44 प्रतिशत उपभोक्ताओं की बिलिंग अस्थायी या औसत होती है. शत-प्रतिशत उपभोक्ताओं से बिल की वसूली नहीं हो पाती. इस कारण निगम का टीएंडडी लॉस 30 प्रतिशत तक है.
तीन वर्षों से टैरिफ का निर्धारण नहीं
जेबीवीएनएल के टैरिफ में पिछले तीन वर्षों से बढ़ोतरी नहीं हो रही है. 2019-20 में कोरोना के कारण टैरिफ में बढ़ोतरी नहीं हो सकी. वहीं, 20-21 और 21-22 में आयोग में अध्यक्ष व सदस्य के नहीं रहने से टैरिफ का निर्धारण नहीं हो सका है. टैरिफ का निर्धारण झारखंड राज्य विद्युत नियामक करता है. वर्ष 22-23 के टैरिफ का प्रस्ताव दिया गया है, पर आयोग में सदस्यों की नियुक्ति के 23 दिन बाद भी शपथ नहीं हो सकी है. इस कारण आयोग सक्रिय नहीं हो पाया है.
चार्ट
बिजली खरीद पर कुल खर्च : 550 करोड़ रुपये प्रति माह
वेतन व मेंटेनेंस पर खर्च : 100 करोड़ प्रति माह
राज्य में कुल उपभोक्ता : 50 लाख
राजस्व वसूली : 470 करोड़ प्रति माह
कुल घाटा : 180 करोड़ रुपये प्रति माह
झारखंड को बिजली की जरूरत : 2200-2300 मेगावाट
कहां से मिलती है कितनी बिजली
टीवीएनएल : 360 मेगावाट (वर्तमान में 170 मेगावाट)
इनलैंड पावर : 55 मेगावाट (वर्तमान में जीरो)
आधुनिक पावर : 180 मेगावाट (वर्तमान में 90 मेगावाट)
एनटीपीसी : 450 मेगावाट (वर्तमान में 300 मेगावाट)
एनएचपीसी : 60 मेगावाट
पीटीसी ताला : 117 मेगावाट (वर्तमान में 37 मेगावाट)
पीटीसी चुक्का : 29 मेगावाट
डीवीसी : 540 मेगावाट कमांड एरिया के लिए
डीवीसी : 130 मेगावाट कमांड एरिया से बाहर
सोलर पावर : 350 मेगावाट (राजस्थान से)
विंड एनर्जी : 150 मेगावाट
सोलर पावर : 26 मेगावाट (राज्य से)
Posted By: Sameer Oraon