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दिग्गजों को भी मिलती रही है पलामू में शिकस्त

पलामू की सियासी पीच पर कई राजनीतिक धुरंधरों को भी मात खानी पडी है. पलामू सीट (सुरक्षित) पर एकीकृत बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री रामसुंदर दास (अब स्वर्गीय ) भी 1984 में चुनाव लडे थे. पर तब वह कांग्रेस की लहर में कमला कुमारी से चुनाव हार गये थे

रांची. पलामू की सियासी पीच पर कई राजनीतिक धुरंधरों को भी मात खानी पडी है. पलामू सीट (सुरक्षित) पर एकीकृत बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री रामसुंदर दास (अब स्वर्गीय ) भी 1984 में चुनाव लडे थे. पर तब वह कांग्रेस की लहर में कमला कुमारी से चुनाव हार गये थे. इसी तरह बिहार विधानसभा के स्पीकर रहे उदय नारायण चौधरी (स्पीकर बनने से पूर्व) भी 1996- 1998 का लोकसभा चुनाव पलामू संसदीय क्षेत्र से लड़े, लेकिन दोनों चुनाव में उदय नारायण चौधरी को भाजपा के बृजमोहन राम ने हरा दिया था. हालांकि इसके बाद श्री चौधरी बिहार में 2005 से 2015 तक विधानसभा के स्पीकर रहे. उदय नारायण चौधरी की बहन सुधा चौधरी भी पलामू की सक्रिय राजनीति में हैं. वर्ष 2007 में पलामू में लोकसभा उपचुनाव में सुधा चौधरी ने समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ा था. उस चुनाव में सुधा को 9887 मत मिले थे. बाद में वह 2009 में पलामू के छत्तरपुर विधानसभा सीट से जदयू प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीता. झारखंड सरकार में मंत्री भी रहीं.

1984 के बाद कांग्रेस का कोई प्रत्याशी नहीं जीता

1984 में हुए आम चुनाव में कमला कुमारी ने जनता पार्टी के प्रत्याशी सह बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री रामसुंदर दास को करीब 1.85 लाख मतों से हरा कर पलामू संसदीय सीट पर जीत का चौका लगाया था. 1984 के बाद कांग्रेस का कोई भी प्रत्याशी पलामू संसदीय सीट से चुनाव नहीं जीत पाया है. 1989 में जनता दल के उम्मीदवार जोरावर राम (अब स्वर्गीय ) ने चुनाव जीता. 1991 में रामदेव राम ने इस सीट पर पहली दफा भाजपा को जीत दिलायी थी. 1991 में कांग्रेस प्रत्याशी कमला कुमारी थी. लेकिन उन्हें हार का मुंह देखना पडा. 1996 के चुनाव में प्रत्याशी बदल कर कांग्रेस ने पलामू के दिग्गज राजनीतिज्ञ राधाकृष्ण किशोर को मैदान में उतारा पर जीत नही मिली, इसके बाद किशोर ने 2004 और 2009 के जदयू के टिकट पर लड़ा सफलता नहीं मिली.

चर्चा में रहा था नामधारी और सुदेश का राजनीतिक विवाद

एकीकृत बिहार के जमाने से पलामू में राजनीतिक जोर आजमाइश होती रही है. झारखंड गठन के बाद यह और परवान चढा. वर्ष 2007 की लोकसभा उपचुनाव के दौरान पार्टी के निर्णय के विरोध में इंदर सिंह नामधारी ने विधायकी और पार्टी से इस्तीफा दे कर भाजपा की मदद की थी. इसके बाद लोकसभा उपचुनाव के बाद जब डालटनगंज विधानसभा उपचुनाव हुआ, तो आजसू प्रमुख सुदेश महतो ने इस चुनाव को अपनी प्रतिष्ठा के साथ जोड़ा. नामधारी को शिकस्त देने के लिए पूरी टीम के साथ पलामू में कैंप किया. नामधारी के परंपरागत राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी अनिल चौरसिया (अब स्वर्गीय) को आजसू का टिकट दिया था. तब इसे लेकर राज्य की राजनीति गरमा गयी थी. हालांकि इस उपचुनाव में भी नामधारी ने जीत दर्ज की थी.

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