Exclusive: अंडर-14 और 18 के बाद नहीं है कोई स्पोर्ट्स सेंटर, भटक रहे झारखंड के होनहार, कैसे निकलेंगे चैंपियन?

Exclusive: झारखंड के खिलाड़ियों में क्षमता और प्रतिभा की कमी नहीं है, लेकिन यहां के खिलाड़ियों की प्रतिभा पर एक उम्र के बाद ब्रेक लग जाता है और वह उम्र है 18 वर्ष. इसके बाद खिलाड़ी कहां जायेंगे, किस सेंटर में ट्रेनिंग लेंगे, उन्हें खुद ही पता नहीं चलता है.

By Prabhat Khabar News Desk | July 25, 2021 10:05 AM
  • कुछ खिलाड़ी दूसरे राज्यों में कर रहे पलायन

  • 20 वर्षों में 2000 से अधिक खिलाड़ी हो गये बेकार

  • सिर्फ हॉकी व तीरंदाजी का सेंटर फॉर एक्सीलेंस ही खुल पाया

Exclusive: दिवाकर सिंह, रांची : झारखंड के खिलाड़ियों में क्षमता और प्रतिभा की कमी नहीं है, लेकिन यहां के खिलाड़ियों की प्रतिभा पर एक उम्र के बाद ब्रेक लग जाता है और वह उम्र है 18 वर्ष. इसके बाद खिलाड़ी कहां जायेंगे, किस सेंटर में ट्रेनिंग लेंगे, उन्हें खुद ही पता नहीं चलता है. राज्य में सिर्फ दो खेल हॉकी और तीरंदाजी का ही सेंटर ऑफ एक्सीलेंस हैं. अन्य खेलों के लिए सेंटर ऑफ एक्सीलेंस का विकास ही नहीं हो पाया है.

वहीं, खिलाड़ी 20 वर्षों से आस लगाये बैठे हैं कि हर खेल का सेंटर फॉर एक्सीलेंस खुलेगा और वह आगे के ट्रेनिंग प्रोग्राम में शामिल हो पायेंगे. ऐसे में कई खिलाड़ी खेल को छोड़ देते हैं, तो कुछ दूसरे राज्यों में अपना आशियाना तलाशते हैं. पिछले 20 वर्षों में लगभग 2000 से अधिक खिलाड़ी बेकार हो गये हैं.

नहीं है अंडर-18 के बाद कोई खेल सेंटर: झारखंड में खिलाड़ियों के प्रशिक्षण के लिए झारखंड सरकार की ओर से डे बोर्डिंग और आवासीय सेंटर का संचालन किया जाता है. इसमें कुल 89 डे बोर्डिंग और 36 आवासीय सेंटर हैं. जहां एथलेटिक्स, फुटबॉल, कुश्ती और तीरंदाजी के खिलाड़ियों को ट्रेनिंग दी जाती है. हर सेंटर में 12 से 14 वर्ष में खिलाड़ियों को चुना जाता है.

इन सेंटरों में लगभग 3125 खिलाड़ियों को ट्रेनिंग मिलती है और 18 वर्ष तक प्रशिक्षण दिया जाता है. यहां से बाहर जाने के बाद खिलाड़ियों को आगे के प्रशिक्षण के लिए कोई सेंटर नहीं मिलता है. परिस्थितिवश खिलाड़ी या तो अपने घर चले जाते हैं या फिर आर्मी या किसी और सर्विस की बहाली में शामिल होकर रोजगार की तलाश में लग जाते हैं. इन सेंटरों के आधे से अधिक खिलाड़ी खेल छोड़ भी देते हैं.

ये खिलाड़ी हुए हैं निराश: सेंटर फॉर एक्सीलेंस नहीं होने से कुछ खिलाड़ियों को निराशा हाथ लगती है. इसमें पहला नाम आता है फ्लोरेंस बारला का. ये जेएसएसपीएस की कैडेट थी. लेकिन वहां से निकलने के बाद और सेंटर फॉर एक्सीलेंस नहीं होने से यह खिलाड़ी मायूस हैं और बेहतर प्रशिक्षण के इंतजार में हैं. वहीं दूसरा नाम आता है रितेश आनंद का.

यह खिलाड़ी सीनियर नेशनल में गोल्ड मेडल जीत चुके हैं, लेकिन इसके बाद कोई सेंटर नहीं होने से यह दूसरे राज्य में नौकरी कर रहे हैं. इसी तरह प्रियंका केरकेट्टा और सपना कुमारी भी अंडर 19 के बाद सेंटर नहीं होने से और नौकरी नहीं मिलने के कारण निराश हैं. ऐसे और भी कई नाम खिलाड़ियों के हैं, जो अब गुमनाम हो गये हैं.

20 वर्षों में झारखंड में खेल के विकास के रूप में केवल हॉकी और तीरंदाजी का ही सेंटर फॉर एक्सीलेंस खुल पाया है. यहां 25 वर्ष की उम्र तक खिलाड़ियों को प्रशिक्षण का मौका मिल पाता है. लेकिन इसमें भी सभी खिलाड़ियों का चयन नहीं हो पाता है. एक सेंटर में 25 से 30 खिलाड़ियों को ही मौका मिल पाता है. वहीं जेएसएसपीएस में भी अंडर 17 तक के खिलाड़ियों को प्रशिक्षण दिया जाता है.

क्या कहता है संघ: सेंटर फॉर एक्सीलेंस नहीं होने का खामियाजा यहां के उभरते हुए खिलाड़ियों को भुगतना पड़ता है. एक उम्र सीमा के बाद इन खिलाड़ियों को कोई मदद नहीं मिलती है और इनके हाथ खाली हो जाते हैं. इसलिए सेंटर फॉर एक्सीलेंस की सख्त जरूरत है, तभी हमारे खिलाड़ी भी आगे बढ़ पायेंगे.

डॉ मधुकांत पाठक, प्रेसिडेंट, झारखंड एथलेटिक्स संघ

हॉकी का सेंटर फॉर एक्सीलेंस खुलने से यहां के खिलाड़ियों को बेहतर प्रशिक्षण का मौका मिल रहा है. वहीं कुश्ती का भी एक्सीलेंस सेंटर खोलने की तैयारी हो रही है. सरकार को अन्य खेलों का भी सेंटर फॉर एक्सीलेंस खोलने की जरूरत है, जिससे खिलाड़ियों के आगे का रास्ता बन सके.

भोलानाथ सिंह, प्रेसिडेंट, हॉकी झारखंड

Posted by: Pritish Sahay

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