रांची, राजीव पांडेय : नकली या अमानक दवाओं की खरीद-बिक्री करनेवाले फर्जी दवा सप्लायर झारखंड में धड़ल्ले से अपना कारोबार कर रहे हैं. कुछ दिन पहले ही केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) ने बाजार में नामी दवा कंपनियों द्वारा तैयार बुखार, शुगर, बीपी, गैस और एलर्जी की दवाओं के क्वालिटी टेस्ट में फेल होने की पुष्टि की है. झारखंड के बाजारों में भी नकली और सब स्टैंडर्ड क्वालिटी की दवाओं की बिक्री हो रही है.
फर्जी दवा सप्लायर अस्पताल तक पहुंचाते हैं नकली दवा
राज्य में फर्जी दवा सप्लायर के काम करने और उसके द्वारा नकली दवाओं के अस्पतालों तक पहुंचाने का मामला सामने भी आ चुका है. तीन माह पहले सुखदेव नगर थाना क्षेत्र स्थित सरकार के शहरी स्वास्थ्य केंद्र में नकली एंटीबायोटिक टैबलेट पकड़ी गयी. जब राज्य औषधि निदेशालय के निर्देश पर औषधि निरीक्षकों ने इसकी जांच की, तो दवा निर्माता, सप्लायर और दोनों के पते फर्जी पाये गये. दवा के नमूनों की जांच की गयी, तो पता चला कि टैबलेट में संबंधित दवा के मॉलीक्यूल ही नहीं हैं. इसके बाद संबंधित सप्लायर और दवा कंपनी के नाम पर थाने में प्राथमिकी दर्ज करायी गयी है.
जांच के लिए पर्याप्त मैन पावर व संसाधन नहीं
फर्जी दवा सप्लायरों का व्यापार झारखंड में सिर्फ इसलिए फल-फूल रहा है, क्योंकि कंपनियों से खुदरा विक्रेताओं तक दवा के पहुंचने की निगरानी की कोई ठोस व्यवस्था नहीं है. राज्य में 42 औषधि निरीक्षकों की जरूरत है, जबकि मौजूदा समय में यहां मात्र 12 औषधि निरीक्षक हैं. एक औषधि निरीक्षक के जिम्मे चार-चार जिले हैं. जाहिर है कि इस स्थिति में दवा की सप्लाई की जांच हर स्तर पर नहीं हो पाती है. सिर्फ शिकायत के आधार पर ही औषधि निरीक्षकाें द्वारा छानबीन की जाती है.
क्यूआर कोड से कर सकते हैं असली और नकली की पहचान
असली दवा की जानकारी के लिए सरकार के निर्देश पर कंपनियों द्वारा क्यूआर कोड जारी किया जा रहा है. बाजार में उपलब्ध करीब 1,500 दवाओं पर क्यूआर कोड जारी है. इससे दवा का पूरा ब्योरा आसानी से पता किया जा सकता है.
सब स्टैंडर्ड दवा का पता लगाने और जब्त करने का निर्देश
राज्य औषधि निदेशालय ने केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) के आदेश पर सभी औषधि निरीक्षकों को सब स्टैंडर्ड दवाओं का पता लगाने और उन्हेें जब्त करने का निर्देश दिया है. आदेश में कहा गया है कि कोलकाता के एक लैब में कई दवाओं की क्वालिटी जांच फेल हुई है, इसलिए उनकी गहनता से जांच की जाये. झारखंड औषधि निदेशालय के संयुक्त निदेशक सुजीत कुमार ने बताया कि ‘ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट-1940’ के तहत सब स्टैंडर्ड दवाओं के निर्माता पर कार्रवाई का प्रावधान है.
मरीजों को ठीक होने में लग रहा लंबा वक्त
बाजार में बिक रही सब स्टैंडर्ड व नकली दवा का इस्तेमाल करने के चलते बीमारियां ठीक होने के बजाय लंबे समय तक खिंच रही हैं. डॉक्टरों का कहना है कि वे दवाएं तो नामी-गिरामी कंपनियों की लिख रहे हैं, फिर भी कई मरीज ठीक नहीं हो पा रहे हैं. इससे मरीजों के साथ-साथ वे भी परेशान हैं. एक हफ्ते की दवा का कोर्स पूरा करने के बावजूद 20 से 25 दिनों बाद भी बीमारी ठीक नहीं हो रही है. ऐसे में मरीजों को राहत दिलाने के लिए दवाएं भी बदलनी पड़ रही हैं. रिम्स में मेडिसिन विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ विद्यापति कहते हैं : अगर दवाओं की क्वालिटी ही खराब होगी, तो बीमारी कैसे ठीक की जा सकती है? बाजार में लाने से पहले ड्रग एंड कंट्रोल विभाग को दवाओं की क्वालिटी की जांच करा लेनी चाहिए. दवा देने के बाद भी मरीजों के स्वस्थ नहीं होने से हमलोग भी हैरान हैं.
नकली दवाओं के बारे में क्या कहते हैं डॉक्टर ?
डॉ निशीथ कुमार, फेफड़ा रोग विशेषज्ञ कहते हैं कि कई मरीज काफी दिनों तक दवा खाने के बाद भी बीमारी ठीक नहीं होने की लगातार शिकायत कर रहे हैं. खराब गुणवत्ता वाली दवाओं से राहत तो नहीं ही मिलेगी. ऐसे में प्रतिष्ठित दवा दुकानों से ही दवा खरीदें. सरकार भी दवाओं की गुणवत्ता की जांच कराये, जिससे नकली दवा बनानेवालों को पकड़ा जा सके.
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