झारखंड में परिवार नियोजन मामले में महिलाएं आगे, पुरुषों के हैं हजार बहाने

परिवार नियोजन के लिए राज्य में इस साल जो लक्ष्य तैयार है, उसमें महिला बंध्याकरण को 96 फीसदी रखा गया है. वहीं पुरुष नसबंदी का लक्ष्य मात्र छह फीसदी

By Prabhat Khabar News Desk | December 13, 2020 7:20 AM
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jharkhand news, ranchi news, family planning in jharkhand, family planning status in jharkhand रांची : राज्य सरकार का आंकड़ा परिवार नियोजन में महिलाओं के बोझिल कंधों को दिखाने के लिए काफी है. परिवार नियोजन के लिए राज्य में इस साल जो लक्ष्य तैयार किया गया है, उसमें महिला बंध्याकरण को 96 फीसदी रखा गया है. वहीं पुरुष नसबंदी का लक्ष्य मात्र छह फीसदी है. पहले भी यही आंकड़ा रहा है. स्वास्थ्य विभाग से मिले आंकड़ों के अनुसार महिला बंध्याकरण का लक्ष्य इस साल 50,000 रखा गया है. वहीं पुरुष नसबंदी का लक्ष्य मात्र 3,000 का है.

कोरोना काल में परिवार नियोजन अभियान की गति धीमी है, लेकिन महिलाएं लक्ष्य को पूरा करने में पुरुषों से आगे हैं. जानकारी के अनुसार, महिला बंध्याकरण के 50,000 के लक्ष्य में 3,100 पूरा हो पाया है. वहीं पुरुष नसबंदी की संख्या अभी तक 300 है. यानी लक्ष्य के मुकाबले भी 10% पुरुषों ने ही नसबंदी में रुचि दिखायी.

पुरुष बनाते हैं हजार बहाने : परिवार नियोजन में पुरुष हमेशा महिलाओं को यह कहकर आगे बढ़ाते हैं कि नसबंदी कराने के बाद उनको कमजोरी हो जायेगी.

उनके काम-काज पर प्रभाव पड़ेगा. परिवार के मुखिया होने के कारण घर की आर्थिक स्थिति बिगड़ जायेगी. कमजोरी होने से उनका पारिवारिक जीवन भी प्रभावित हो जायेगा. वहीं महिला रोग विशेषज्ञों का कहना है कि पुरुष नसबंदी महिला बंध्याकरण से काफी सरल है. पुरुष नसबंदी में ऑपरेशन नहीं करना पड़ता है, सिर्फ एक गांठ लगायी जाती है. वहीं महिला बंध्याकरण में महिलाओं के पेट को काटना पड़ता है, तब जाकर आॅपरेशन होता है.

पुरुष नसबंदी को लेकर भ्रम ज्यादा, सच्चाई कुछ और

नसबंदी कराने से पुरुषों को शारीरिक रूप से कोई समस्या या कमजोरी नहीं आती है.

सिर्फ स्पर्म को निकलने से रोक दिया जाता है

लोकल एनेस्थीसिया देकर पुरुष नसबंदी की जाती है

एक हफ्ता भारी चीज नहीं उठाने या ज्यादा काम नहीं करने की सलाह

पुरुषों में यौन रोग की समस्या भी कम होती है.

क्या कहते हैं एक्सपर्ट

हमारा समाज आज भी पुरुष प्रधान है, जिससे सारी जिम्मेदारी महिलाओं की होती है. पुरुष नसबंदी में कोई चीरा नहीं लगता है. अस्पताल में ज्यादा समय तक नहीं रुकना पड़ता है. महिला बंध्याकरण में पेट में चीरा लगाना पड़ता है. अस्पताल में रुकना पड़ता है. सरकार को भी अभियान पूरा करना होता है, इसलिए महिला बंध्याकरण का लक्ष्य ज्यादा रखना पड़ता है. जागरूकता के माध्यम से ही हम भ्रम को दूर कर सकते हैं.

डॉ समरीना कमाल, स्त्री रोग विशेषज्ञ

क्या कहते हैं अधिकारी

पुरुष नसबंदी को लेकर आगे नहीं आते हैं, इसलिए लक्ष्य महिलाओं पर आकर टिक जाता है. जागरूकता से ही हम पुरुषों की भागीदारी को बढ़ा सकते हैं. पुरुषों को जागरूक करने के लिए सरकार लगातार कार्यक्रम आयोजित कर रही है. सिविल सर्जन को ज्यादा से ज्यादा पुरुष नसबंदी को बढ़ावा देने का निर्देश जारी किया गया है. स्वास्थ्य विभाग भी प्रचार-प्रसार पर जोर दे रहा है.

नितिन मदन कुलकर्णी, स्वास्थ्य सचिव

posted by : sameer oraon

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