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Father Kamil Bulcke: भारतीय संस्कृति और हिंदी से जीवन भर प्यार करने वाले फादर कामिल बुल्के बेल्जियम के ईसाई मिशनरी थे. देश में आज भी भाषा के झगड़े हो रहे हैं, लेकिन विदेश से भारत आए फादर कामिल बुल्के ने हिंदी में वो काम किया, जो किसी हिंदी के विद्वान ने भी नहीं किया. उन्होंने ‘अंग्रेजी हिंदी शब्दकोश’ ही नहीं बनाया बल्कि विश्वविद्यालयों में हिंदी में शोध कार्य शुरू करवाए. फादर कामिल बुल्के को भारतीय संस्कृति और भाषाओं से गहरा लगाव था. भारतीय रहन-सहन, भाषा, बौद्धिक संपन्नता के वे कायल थे.
फादर कामिल बुल्के ने रांची को बनाया अपनी कर्मभूमि
फादर कामिल बुल्के ने झारखंड को अपनी कर्मभूमि बनाया था. फादर कामिल बुल्के का झारखंड से गहरा संबंध था. भारत में उनका ज्यादातर समय झारखंड के रांची में बीता. यहीं उन्होंने हिंदी भाषा, साहित्य, और भारतीय संस्कृति पर अपने महत्वपूर्ण कार्य किए. बेल्जियम से आने के बाद पहले गुमला और फिर बाद में रांची आ गए.
रांची विश्वविद्यालय में बने प्रोफेसर
रांची, जो अब झारखंड की राजधानी है, में उन्होंने सेंट जेवियर्स कॉलेज में अपनी सेवाएं दीं. यहीं पर हिंदी और भारतीय संस्कृति के प्रति उनका रुझान बढ़ा. रांची में रहते हुए ही उन्होंने हिंदी भाषा और साहित्य की शिक्षा प्राप्त की. इलाहाबाद विश्वविद्यालय से फादर कामिल बुल्के ने हिंदी में एमए की उपाधि ली. बाद में वह रांची विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर बने. उनका शिक्षण बहुत लोकप्रिय था. छात्र और शिक्षक दोनों उनका सम्मान करते थे.
कैसे विकसित हुआ हिंदी भाषा से प्रेम
फादर कामिल बुल्के का जन्म बेल्जियम में 1 सितंबर 1909 को बेल्जियम के रैम्सकापेल में हुआ. उन्होंने गणित और इंजीनियरिंग की पढ़ाई की. बाद में, उन्होंने जेसुइट समाज में शामिल होकर ईसाई धर्म का अध्ययन किया. 1935 में वह भारत आए. यहां की सभ्यता-संस्कृति और हिंदी से उनको ऐसा प्रेम हुआ कि फिर वह यहीं के होकर रह गए. फादर बुल्के ने हिंदी साहित्य में महान योगदान दिया. हिंदी के प्रति उनका समर्पण अतुलनीय था. उन्होंने हिंदी को बहुत सरल और व्यवस्थित ढंग से सीखा और इसी भाषा में रचनाएं कीं.
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बुल्के ने की ‘अंग्रेजी-हिंदी शब्दकोश’ की रचना
फादर कामिल बुल्के ने ‘अंग्रेजी-हिंदी शब्दकोश’ की रचना की. यह शब्दकोष आज भी हिंदी सीखने और अनुवाद करने वालों के लिए सबसे बड़ा मददगार है. उन्होंने तुलसीदास के ‘रामचरितमानस’ का गहन अध्ययन किया. ‘रामकथा : उत्पत्ति और विकास’ नामक प्रसिद्ध ग्रंथ की रचना की, जिसमें रामकथा के विभिन्न रूपों के बारे में विस्तार से बताया गया है.
भारत सरकार ने पद्म भूषण से किया सम्मानित
फादर बुल्के सादगी भरा जीवन जीते थे. अध्ययन और सेवा के लिए समर्पित थे. उनका भारतीय संस्कृति, साहित्य और भाषा के प्रति गहरा प्रेम और सम्मान था. फादर बुल्के को हिंदी और भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार में उनकी सेवाओं के लिए वर्ष 1974 में भारत सरकार ने ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया.
17 अगस्त 1982 को हुआ फादर कामिल बुल्के का निधन
फादर कामिल बुल्के का 17 अगस्त 1982 को निधन हो गया. उनका योगदान अमर है. फादर कामिल बुल्के मानव मात्र की सेवा और आध्यात्मिकता के भाव का ऐसा प्रतीक हैं, जिन्हें हम श्रद्धा से याद करते हैं. फादर कामिल बुल्के का जीवन भारतीय संस्कृति और हिंदी भाषा के प्रति उनके समर्पण का प्रतीक है. विदेशी होते हुए भी उन्होंने हिंदी के विकास में योगदान दिया.
फादर कामिल बुल्के की कर्मभूमि क्या थी?
यूरोपीय देश बेल्जियम में जन्मे फादर कामिल बुल्के एक शिक्षक थे. भारत के गुमला में करीब 2 साल तक शिक्षक के रूप में काम करने के बाद वे रांची आ गए. बाद में रांची ही उनकी कर्मभूमि बन गई. रांची आज झारखंड की राजधानी है.
फादर कामिल बुल्के कितने वर्षों तक जीवित रहे?
1 सितंबर 1909 को बेल्जियम के रैम्सकापेल में जन्मे फादर कामिल बुल्के ने अपना जीवन रांची में बिताया. करीब 73 साल की उम्र में 17 अगस्त 1982 को उनका निधन हो गया.
कामिल बुल्के का निधन कहां हुआ?
हिंदी और रामचरित मानस का गहन अध्ययन करने वाले फादर कामिल बुल्के की गैंगरीन की वजह से नई दिल्ली में मौत हो गई.
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