पहली बार रांची विश्वविद्यालय में पर लैंगिक विविधता के विषय पर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल का आयोजन किया गया. महोतस्व में ऐसी फिल्मों का चयन किया गया जो समाज को लैंगिक विविधता के मुद्दे पर जागरूक करतीं हैं. इस फिल्म फेस्टिवल को ‘समभाव’ नाम दिया गया.
रांची विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग में स्थित महिला अध्ययन केंद्र और मावा ( MAVA- Men against Violence and Abuse) के संयुक्त प्रयासों से अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव का आयोजन किया गया. कार्यक्रम के उद्धाटन समारोह में कुलपति कामिनी कुमार ने कहा, इस तरह के आयोजन से ऊर्जा मिलती है. मुझे पूरा भरोसा है कि इस बेहतरीन आयोजन का लाभ सभी छात्र उठायेंगे. इस मौके पर शहर के प्रसिद्ध फिल्मेकर मेघनाथ, सामाजिक कार्यकर्ता प्रावीर पीटर सहित कई वरिष्ठ लोग मौजूद रहें. . दोनों दिन सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक 6-6 फिल्में दिखायी गयी.
फिल्म के बाद लैंगिक विविधता से जुड़े कई मुद्दों पर छात्रों से चर्चा हुई. फिल्म देखकर उन्होंने जो सीखा वो साझा किया और इस दौरान उनके मन में उठने वाले कई सवालों के जवाब भी दिये. मावा संस्था के फाउंडर और निदेशक हरीश सदानी ने बच्चों के मन में उठ रहे सवालों का जवाब भी तर्क और तथ्यों के साथ दिया. दो दिनों तक चले इस कार्यक्रम में कई संकाय के छात्र पहुंचे. यहां किसी भी विषय के छात्र को समय निकालकर प्रवेश करने और फिल्म देखने की इजाजत थी. इस दौरान यहां एक से बढ़कर एक शानदार फिल्में जिनमें प्रमुख रूप से द ग्रेट इंडियन किचेन, द लिटिल गोडेस, ह्रदय, बोसोत, यहां भी अदालत चलती है, मैदा, भाषा, ब्लैक रोजेज एंड रेड ड्रेसेस, पहिचान, तुलोनी, बिया जैसी शानदार फिल्में शामिल थीं.
झारखंड के प्रसिद्ध फिल्ममेकर मेघनाथ ने कहा, विश्वविद्यालय सीखने की जगह है, यहां इस तरह के आयोजन से और बेहतर तरीके से सीखा जा सकता है. यह एक शानदार प्रयास है. रांची विश्वविद्यालय को इसके लिए शुभकामनाएं देता हूं. मुझे उम्मीद है कि इस तरह का प्रयास आगे भी जारी रहेगा.
महिला अध्ययन केंद्र की समन्वयक डॉ ममता कुमारी ने कहा, यह इस तरह का पहला फिल्म फेस्टिवल है. कई लोग आकर हमारे प्रयास की सराहना कर रहे हैं, लोगों को लगता है कि इस तरह से यहां का माहौल और बदलेगा और छात्र बेहतर तरीकों से सीख पायेंगे, इन गंभीर मुद्दों को समझ पायेंगे. उनकी प्रतिक्रिया से हमें यह पता चल रहा है कि इस तरह आयोजन पहले नहीं हुआ. हमें छात्रों से बेहतरीन प्रतिक्रिया मिल रही है. 300 से ज्यादा लोगों ने हमारे साथ बैठकर फिल्म देखी है. महिला अध्ययन केंद्र पूरे झारखंड में पहला है.
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि 2016 से पहले झारखंड में सेंटर नहीं था. हमारी यहां अब कई जिम्मेदारियां हैं, यहां कई मुद्दे हैं, इन मुद्दों को शैक्षणिक स्तर पर लेकर आना और समझाना आसान नहीं है. यहां की संस्कृति अलग है. हमारी कोशिश है कि हम इसे सरल करें और विद्यार्थियों तक इन मुद्दों को सरल ढंग से समझा सकें. फिल्मों के माध्यम से संचार सबसे आसान होता है. हम नये – नये तरीकों से विद्यार्थियों तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं.
हरीश सदानी ने कहा, हम देशभर के कई शहरों में इस तरह आयोजन करते हैं. कई बेहतरीन फिल्में हमने कई विश्वविद्यालयों में दिखायी है और हमने महसूस किया है कि इसके माध्यम से इन गंभीर मुद्दों को समझना बेहद आसान हो जाता है. ये फिल्म फेस्टिवल यात्रा में है और हम यहां के बाद कहीं और जायेंगे हम लखनऊ की तैयारी में हैं. अभिनेत्री रिचा चड्डा भी हमारे इस प्रयास में आना चाहती हैं.
झारखंड में यह पहली बार है जब इस तरह का प्रयास किया जा रहा है और इसका आयोजन बेहद सफल रहा, जिस तरह छात्रों ने सवाल किया और लोग इन मुद्दों को सिर्फ भारत से नहीं बल्कि आसपास के हमारे पड़ोसी देशों की संस्कृति से भी जोड़कर देख रहे हैं. यही समझ तो हमें विकसित करनी है. 12 शहर, चार ग्रामीण जिले और 2 अंतरराष्ट्रीय शहर जिसमें काठमांडू और ढाका शामिल हैं वहां भी पहुंच रहे हैं. हम इस साल 19 फिल्में दिखा रहे हैं. सिर्फ देश ही नहीं दुनियाभर के कई जाने माने लोग हमारे इस प्रयास की सराहना कर रहे हैं. हमें इससे ही ऊर्जा मिलती है.