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फिशिंग बोले तो सुकून

शौकिया मछली पकड़ना भी नशे की तरह है. इसके शौकीनों की एक से एक कहानियां हैं.

मनोज सिंह.

शौकिया मछली पकड़ना भी नशे की तरह है. इसके शौकीनों की एक से एक कहानियां हैं. ऐसे लोग कमाई के लिए मछली नहीं पकड़ते हैं, लेकिन मछली पकड़ने के लिए अपना पूरा दिन लगा देते हैं. कभी-कभी तो देर रात तक जलाशयों के किनारे बैठे रहते हैं. राज्य में कई ऐसे लोग हैं, जो शौक से मछली पकड़ते हैं. इनको एंग्लर्स कहा जाता है. जमशेदपुर में इनका एक क्लब भी है, जो काफी सक्रिय भी है. इससे 250 से अधिक लोग अभी जुड़े हुए हैं. रांची में भी फिशिंग के कई शौकीन हैं, जिनका अपना-अपना ग्रुप है. कई संपन्न लोग भी इससे जुड़े हैं. एक मछली पकड़ने के लिए वह घंटों नदी या तालाबों के किनारे समय गुजार देते हैं. कई लोग तो अपनी पहचान छिपाकर इस शौक को पूरा करते हैं.

एक फिशिंग रॉड की कीमत 50 हजार रुपये तक

इस शौक को पूरा करने के लिए काफी पूंजी की भी जरूरत होती है. एक फिशिंग रॉड की कीमत कम से कम 2500 रुपये के आसपास होती है. वहीं 50 हजार रुपये के भी फिशिंग रॉड बाजार में उपलब्ध हैं. फिशिंग का शौक रखनेवाले व्यक्ति को रॉड के साथ-साथ अन्य कई तरह के सामान की जरूरत होती है. इसमें मछली फंसाने का चारा भी है. बाजार में मछली फंसाने का कई तरह का चारा भी उपलब्ध है. इसमें कई चारा रासायनिक हैं. मछली पकड़ने के लिए स्थानीय लोग हड़िया चावल से तैयार चारा का भी इस्तेमाल करते हैं. हड़िया चावल को मिट्टी के साथ मिलाकर गोला तैयार किया जाता है. इसको पानी में डालकर मछली पकड़ने की कोशिश होती है. इसके अतिरिक्त आटा, आम के पत्ते वाली चिट्टी, केंचुआ (चेड़ा) का इस्तेमाल भी मछली पकड़ने के लिए होता है.

डोरंडा तालाब में थी मछली मारने की सुविधा

कुछ वर्ष पहले राज्य सरकार के मत्स्य विभाग ने डोरंडा तालाब में फिशिंग का प्रावधान किया था. यहां लोग 30 रुपये का टिकट कटाकर मछली मार सकते थे. पकड़ी गयी मछली को बाद में वजन के हिसाब से सरकारी दर पर भुगतान करना पड़ता था. हालांकि विवाद के कारण इसे बंद कर दिया गया. मत्स्य विभाग के निदेशक डॉ एचएन द्विवेदी कहते हैं कि यह एक शौक है, जिसे कभी गलत नहीं माना गया है.

दूसरे जिलों में जाकर करते हैं फिशिंग

रांची में मछली मारने के कई ऐसे शौकीन लोग हैं जो सप्ताह या 15 दिनों में एक दिन दूसरे जिलों में जाकर फिशिंग करते हैं. उनका कहना है कि डैम या तालाब में फिशिंग का पैसा नहीं लगता है. वहां से मछली मारकर लाते हैं. उसे अपने खाने के अतिरिक्त दूसरों को बांट देते हैं. कई बार खाली हाथ भी लौटना पड़ता है.

जमशेदपुर में है 75 वर्ष पुराना फिशिंग क्लब

टाटा में जमशेदपुर एंग्लर्स क्लब है. यह क्लब 1947 से काम कर रहा है. जेआरडी इससे जुड़े थे. उनके जन्मदिन पर जमशेदपुर में फिशिंग प्रतियोगिता होती है. क्लब में अभी 200 से अधिक जुड़े हुए हैं. इसके अतिरिक्त नवंबर में भी क्लब एक प्रतियोगिता आयोजित करती है. इसमें देश के कोने-कोने के एंग्लर्स हिस्सा लेते हैं. अब क्लब के अध्यक्ष दलमा के काठजोड़ में एक घोषाल पोखर बना रहे हैं. यहां शौकीन लोग फिशिंग कर सकते हैं. जमशेदपुर फिशिंग क्लब के अध्यक्ष सुकुमार घोषाल कहते हैं कि यह जबरदस्त नशा है. कई बार परेशानी भी होती है. यह कमाई का मामला भी नहीं है. लेकिन, फिशिंग के चक्कर में कई लोग विदेश भी चले जाते हैं. जमशेदपुर में होनेवाले फिशिंग प्रतियोगिता में कई बार बांग्लादेश के लोग भी आते थे.

अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता भी होती है

बास एंग्लर्स स्पोर्ट्समैन सोसाइटी (बास) एक मछली पकड़ने वाला संगठन है. इसके पांच लाख से अधिक सदस्य हैं. यह मुख्य रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका में बास मछुआरों के लिए तैयार किया गया है. इसके सदस्य दुनिया भर में स्थित हैं. बास द्वारा संचालित स्पोर्ट फिशिंग टूर्नामेंट ट्रेल्स और विश्व चैंपियनशिप इवेंट काफी प्रचलित है. इस संस्था की स्थापना 1967 में हुई थी.

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