Chara Ghotala Case Jharkhand रांची: पशुपालन घोटाले की प्रारंभिक जांच के दौरान लोक लेखा समिति के अध्यक्ष ने बिहार के तत्कालीन वित्त सचिव वीएस दुबे को पत्र लिख कर उनके खिलाफ विधानसभा की अवमानना की कार्यवाही शुरू करने की धमकी दी थी. साथ ही यह भी जानना चाहा कि वह किस अधिकार से पशुपालन विभाग के खर्चों की जांच करा रहे हैं. वीएस दुबे ने सीबीआइ के विशेष न्यायाधीश की अदालत में दर्ज कराये गये अपने बयान में इन तथ्यों को उल्लेख किया है.
उन्होंने बयान में कहा है कि विभिन्न विभागों के मासिक खर्च से संबंधित रिपोर्ट महालेखाकार द्वारा भेजी जाती है. 19 जनवरी 1996 को उन्हें एक रिपोर्ट मिली. उन्होंने एस विजय राघवन और शंकर प्रसाद के साथ इसकी समीक्षा की. इसमें यह पाया कि पशुपालन विभाग ने 1995 तक सिर्फ 72 करोड़ रुपये के बजट के मुकाबले 117 करोड़ रुपये खर्च कर दिये थे.
इस खर्च को देख कर उन्हें घबराहट हुई. उन्होंने उसी दिन सभी उपायुक्तों, जिलाधिकारियों को फैक्स संदेश भेज कर नवंबर और दिसंबर महीने में हुए खर्च की जानकारी मांगी. 20-21 तारीख को छुट्टी थी. 22 जनवरी को उन्होंने सभी जिले के अधिकारियों को फोन कर नवंबर-दिसंबर में हुए खर्च का ब्योरा मांगा. साथ ही अपर वित्त सचिव मान सिंह को ट्रेन से रांची भेज कर महालेखाकार कार्यालय से इसका ब्योरा इकट्ठा करने और डोरंडा व रांची ट्रेजरी का टेस्ट चेक कर रिपोर्ट देने का निर्देश दिया.
23 जनवरी को रांची पहुंचने के बाद उन्होंने जांच शुरू की. जांच में तत्कालीन वाणिज्यकर के संयुक्त आयुक्त शिवेंदु को भी इसमें शामिल करने का निर्देश दिया. रांची के तत्कालीन उपायुक्त राजीव कुमार को फोन कर खर्च का ब्योरा मांगा. उन्होंने शाम को फोन पर पशुपालन विभाग द्वारा नवंबर-दिसंबर तक 30 करोड़ रुपये खर्च कर दिये जाने की जानकारी दी.
यह सूचना अलार्मिंग थी. महालेखाकार कार्यालय में दस्तावेज की जांच में लगे अधिकारियों ने 24 जनवरी 1996 को यह सूचना दी कि खर्च सिर्फ रांची में ही नहीं हुआ है. चाईबासा, जमशेदपुर, गुमला सहित अन्य जिलों में भी इसी तरह अधिक खर्च हुआ है. खर्च कैसे हुआ. यह पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि पशुपालन अधिकारियों द्वारा जो बिल जमा किया गया है, वह फर्जी प्रतीत होता है.
अलग-अलग अलॉटमेंटट लेटर में मनमाने तरीके से राशि का उल्लेख किया गया है. उस समय जिला पशुपालन पदाधिकारी को 15000 रुपये स्वीकृत करने का अधिकार था. इसलिए अधिकांश बिलों में 14990 रुपये का उल्लेख किया गया है. क्षेत्रीय निदेशक को 50 हजार स्वीकृत करने का अधिकार था. इसलिए ऐसे बिलों में 49,990 रुपये का उल्लेख किया गया है.
इस सूचना के बाद उन्होंने पशुपालन विभाग में अवैध निकासी की जानकारी राज्य सरकार को दी. साथ ही वेतन के अलावा अन्य मदों से निकासी पर रोक लगाने का सुझाव दिया. पशु चारा वित्त विभाग की अनुमति के बाद ही खरीदने की पाबंदी लगा दी. इसके बाद महालेखाकार कार्यालय में जांच कर रहे अधिकारी को वाउचर जब्त कर मुख्यालय लाने का निर्देश दिया. वह वाउचर लेकर 25 जनवरी को पटना पहुंचे. स्क्रूटनी में वाउचरों को फर्जी पाया गया. उसी दिन सभी उपायुक्तों को अपने-अपने ट्रेजरी की जांच करने का आदेश दिया. रांची और चाईबासा के उपायुक्तों को फोन कर जांच करने का निर्देश दिया.
27 जनवरी को दिन के 12 बजे चाईबासा के तत्कालीन उपायुक्त अमित खरे ने फोन कर बताया कि बहुत गड़बड़ी है. उन्होंने टीम बना कर ट्रेजरी और पशुपालन कार्यालयों की जांच करायी थी. अमित खरे ने यह सूचना भी दी कि पशुपालन कार्यालय की जांच के दौरान एक चपरासी बैग लेकर भाग रहा था. उसे पकड़ा गया. उसके बैग में 30 लाख रुपये थे.
अलमारी खोलने पर उसमें सोना-चांदी के सिक्के मिले. भूसे के बोरे में नोट भर कर रखे जाने की जानकारी मिली. अमित खरे ने यह सूचना दी कि एक मारुति वैन में कुछ लोग बहुत सारे रुपये लेकर रांची की तरफ भाग रहे हैं. इसके बाद रांची के उपायुक्त को फोन किया. उन्होंने रांची में पशुपालन विभाग के कार्यालयों की जांच शुरू करायी. नेपाल हाउस स्थित पशुपालन विभाग के कार्यालय के अलमारी में जेवरात मिलने की सूचना मिली.
इसके बाद पशुपालन विभाग के कार्यालयों को सील कर दिया गया. 27 जनवरी 1996 को अपर वित्त सचिव ने प्रारंभिक जांच में मिले तथ्यों से संबंधित एक रिपोर्ट दी. इसके बाद उन्होंने एक नोट बना कर सरकार को दिया. साथ ही आपराधिक मुकदमा दर्ज करा कर जांच कराने का सुझाव दिया.
Posted By : Sameer Oraon