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विकसित भारत के लिए विदेश नीति

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ पर भारत को विकसित देश बनाने का आह्वान करते हुए उम्मीद जतायी कि 2047 तक भारत एक विकसित देश बन जायेगा. यह आह्वान महत्वपूर्ण भी है और चुनौतीपूर्ण भी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ पर भारत को विकसित देश बनाने का आह्वान करते हुए उम्मीद जतायी कि 2047 तक भारत एक विकसित देश बन जायेगा. यह आह्वान महत्वपूर्ण भी है और चुनौतीपूर्ण भी. सबसे अहम सवाल विकास का है. महामारी ने कई देशों की कमर तोड़ दी है. दुनिया के कई देश आर्थिक संकट के दौर में है. आर्थिक विशेषज्ञ भारत की भी चिंता कर रहे थे, लेकिन भारत मजबूती के साथ संकटों से निकलता गया.

आर्थिक वृद्धि की गति भी बढ़ रही है. लेकिन मंजिल बहुत दूर है. हम लगभग तीन ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के नजदीक हैं, पर चीन से तुलनात्मक फासला पांच गुना है. महामारी के बीच प्रधानमंत्री मोदी ने आत्मनिर्भर भारत का संकल्प रखा. इसकी आलोचना भी खूब हुई. ‘मेक इन इंडिया’ पर ‘मेड इन चाइना’ की धाक थी. राजनीतिक बयान और आर्थिक प्रगति में अंतर है, लेकिन दो वर्षों में यह दिखने लगा कि भारत का आत्मनिर्भर संकल्प मजबूत बनता गया. विश्व राजनीति में हो रहे ध्रुवीकरण भारत के पक्ष में दिखने लगे.

एक संकल्प अखंड भारत का भी है. इस सोच में कई पेंच हैं और इससे कई गलतफहमियां भी जुड़ी हुई हैं. अनेक विश्लेषक मानते है कि अखंड भारत की सोच एक आक्रामक चिंतन है, जिसमें पड़ोसी देशों की जमीन हड़पने की बात है, पर ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. भारत की पंचशील की बुनियादी विदेश नीति में कोई बदलाव नहीं आया है. बात केवल भारत के अंदरूनी क्षेत्रों को एकबद्ध करने की है, जिसमें पाक अधिकृत कश्मीर भी आता है. एकता में अनेकता को समझते हुए केवल विविधता की विवेचना भर नहीं, बल्कि एकरूपता की पहचान को भी स्थापित करने की जरूरत है.

भारत को विकसित बनाने के लिए विदेश नीति कैसी होगी, क्या अखंड भारत और विकसित भारत की योजना सफल हो पायेगी, क्या चीन और पाकिस्तान के बीच सेतु टूट पायेगा, क्या चीन भारत को सहज और स्वाभाविक रूप से रूपांतरित होने देगा- ये सारे प्रश्न अहम हैं. बीते आठ वर्षों में बिग डाटा के साथ भारत की तस्वीर बदलने लगी है. विभिन्न सरकारी योजनाओं के साथ आधार के पंजीकरण ने न केवल नियमितता को बहाल किया, बल्कि भ्रष्टाचार को भी समेटने का सफल प्रयास किया.

भारत का आर्थिक प्रयास 2014 से पहले मैक्रो आर्थिक इकाई पर होता था, यानी विकेंद्रीकरण की बात केवल किताबों तक रह जाती थी. वह तरीका बदल गया. माइक्रो सोच सरकार की मुख्य धारा बन गयी. जगह और समूह को केंद्र में रखकर योजनाएं बनने लगीं और उनका अनुपालन होने लगा. आर्थिक योजनाओं की मलाई अक्सर इलीट वर्ग समेट लेता था. इस वर्ग का निर्माण भी बहुत हद तक भाषा के तर्ज पर होता था. अंग्रेजी पढ़ने-लिखने वाले फायदे में रहते थे. लेकिन पिछले आठ साल में यह पद्धति बदल गयी. हाशिये के लोग आगे आने लगे और मध्य वर्ग का विस्तार हुआ. महिला, अनुसूचित जाति और भूमिहीन किसान जैसे वंचित तबके बुनियादी आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन से मजबूत हुए हैं.

आज दुनिया भारत को एक महत्वपूर्ण शक्ति के रूप में देखने लगी है. चीन की विस्तारवादी नीति दुनिया के सामने है. श्रीलंका, पाकिस्तान, मलेशिया, ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीकी देश चीन का दंश को झेल रहे है. भारत और चीन के बीच संघर्ष की स्थिति बनी हुई है. चीन ने कुछ वर्षों से वैश्विक व्यवस्था को अपने तरीके से संचालित करने की साजिश रची है, उससे दुनिया सहमी हुई है. रूस-यूक्रेन जंग के बीच भारत महाशक्तियों के केंद्र में है. भारतीय कूटनीति के लिए यह अग्निपरीक्षा का समय है.

इसका अर्थ यह है कि भारत का निर्णय विश्व राजनीति के लिए निर्णायक होगा. भारत किसी भी तरह से शीत युद्ध की स्थिति पैदा नहीं होने देना चाहता. सबसे अहम चुनौती चीन-पाकिस्तान गठबंधन को तोड़ने और कमजोर करने की है. विश्व व्यवस्था भी पाकिस्तान और चीन से तंग है. भारत के लिए चीन से संघर्ष मुनासिब नहीं होगा, लेकिन पाकिस्तान की धार को कुंद करने में भारत सफल होता है, तो चीन की दक्षिण एशिया में पैठ कमजोर हो जायेगी.

इसकी अग्नि परीक्षा पाक अधिकृत कश्मीर को भारत में विलय की स्थिति में होगी. चीन-पाकिस्तान गठजोड़ भारत विरोध पर टिका हुआ है. पाकिस्तान की भौगोलिक स्थिति के कारण उसकी पूछ है और यही भारत के लिए मुसीबत भी है. पाकिस्तान के कारण भारत का संपर्क अफगानिस्तान और मध्य एशिया से टूट गया है. पाक अधिकृत कश्मीर के भारत में विलय के बाद यह रुकावट खत्म हो जायेगी.

भारत की वर्तमान विदेश नीति में एक दृष्टि भी है और सामरिक समझ भी. मजबूत राजनीतिक व्यवस्था के जरिये भारत के लिए मंजिल तक पहुंचना असंभव नहीं होगा. लेकिन परिवर्तन की धार अंदरूनी सोच और कर्मठता से स्पंदित होगी, जिसकी चर्चा प्रधानमंत्री मोदी ने पांच प्रणों के माध्यम से की है. पच्चीस वर्षों की यात्रा आसान नहीं होगी. चीन कौरवों की तरह एशिया में पांच गांव भी देने के लिए राजी नहीं है, यानी उसकी सोच यह है कि एशिया केंद्रित विश्व व्यवस्था में भारत की भूमिका नगण्य हो. भारतीय सामरिक समीकरण की सबसे बड़ी सफलता यही होगी कि चीन के साथ बिना लड़े हम अपनी जगह बनाने में सफल हो जाएं. आगामी वर्षों में विदेश नीति की पटकथा कुछ ऐसी ही होनी चाहिए.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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