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झारखंड में वन पट्टा वितरण की स्थिति खराब, एक लाख आवेदन में 30 हजार रिजेक्ट, 60 हजार का निष्पादन

झारखंड में अब तक दो लाख एकड़ से अधिक वन भूमि का पट्टा ही लोगों को दिया गया है. इनमें निजी तौर पर कुल 1.53 लाख एकड़ भूमि का पट्टा दिया गया है. जबकि, सामुदायिक स्तर पर 1.03 लाख एकड़ भूमि का पट्टा दिया गया है

रांची, मनोज सिंह :

सरकार वन भूमि में रहनेवालों को वन पट्टा देती है. लेकिन, कई राज्यों के मुकाबले झारखंड में वन पट्टा वितरण की स्थिति ठीक नहीं है. झारखंड में वन पट्टा के लिए आवेदन देनेवाले वनवासियों में ज्यादातर के आवेदन रिजेक्ट हो जा रहे हैं. राज्य में 30 नवंबर 2022 तक कुल एक लाख सात हजार आवेदन निजी वन पट्टा के लिए आये थे. इसमें 60 हजार आवेदन निष्पादित किये गये. जबकि करीब 30 हजार आवेदन रिजेक्ट हो गये. निजी के अतिरिक्त सामुदायिक वन पट्टा के लिए कुल 3724 आवेदन कल्याण विभाग को प्राप्त हुए हैं. इनमें से कुल 2104 को वन पट्टा दिया गया.

राज्य में अब तक दो लाख एकड़ से अधिक वन भूमि का पट्टा ही लोगों को दिया गया है. इनमें निजी तौर पर कुल 1.53 लाख एकड़ भूमि का पट्टा दिया गया है. जबकि, सामुदायिक स्तर पर 1.03 लाख एकड़ भूमि का पट्टा दिया गया है. उधर, पूरे देश में सबसे अधिक वन पट्टा ओड़िशा ने बांटा है. यहां 4.54 लाख निजी लोगों को वन पट्टा दिया गया है. वहीं, छत्तीसगढ़ में करीब 4.46 लाख निजी लोगों को वन पट्टा दिया गया है.

2006 में आया था अधिनियम :

लंबे समय से वन में रहनेवालों को अधिकार और मान्यता देने के लिए वन अधिकारी अधिनियम (एफआरए) वर्ष 2006 में लागू किया गया. इसके खराब कार्यान्वयन से समुदाय को अपने वन संसाधनों के संरक्षण और प्रबंधन का अधिकार प्राप्त करने में मदद नहीं मिली है. 2020 में प्रकाशित अशोका ट्रस्ट फॉर रिसर्च इन इकोलॉजी एंड एनवायरनमेंट (एटीआरइइ) की रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड में न्यूनतम सीएफआर क्षमता लगभग 21,175 वर्ग किमी या 52.32 लाख एकड़ की है.

आदिवासी मामलों के मंत्रालय (जो एफआरए कार्यान्वयन के लिए नोडल मंत्रालय है) के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, झारखंड में वन अधिकारों के तहत केवल 2.57 लाख एकड़ (कुल संभावित वन क्षेत्र का 5% से कम) को मान्यता दी गयी है.

ग्रामसभा को तय करना है वन पट्टा :

ग्रामसभा को वन पट्टा के लिए लाभुकों की अनुशंसा करना है. अनुशंसा पत्र जिला प्रशासनवाली कमेटी को अनुमोदित करना होता है. ग्रामसभा की बैठक में जिले के अधिकारियों को भी बुलाया जाता है.

दिखने लगे प्रवासी पक्षी व जानवर :

गुमला जिले के बसिया ब्लॉक के अरेया पंचायत के एक आदिवासी गांव कुर्देगा के जंगलों में अब प्रवासी पक्षी और जानवर दिखते हैं. ग्रामीणों को वर्ष 2019 में सीएफआर प्राप्त हुआ. एक स्थानीय एनजीओ ग्रामसभा के सहयोग से इसकी सुरक्षा, बहाली व संरक्षण योजना तैयार करने में मदद मिली. क्षेत्र के कार्यकर्ताओं की सुविधा के साथ, ग्रामसभा ने वार्ड और वॉच का गठन किया. अपने जंगल की रक्षा के लिए मानदंड बनाया. ग्रामसभा ने प्रस्ताव पारित किया. घोषणा की कि किसी को भी हथियार, कुल्हाड़ी के साथ जंगल में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जायेगी.

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