‘बंगाल के अभिशाप’ को झारखंड के गौरव आनंद ने बनाया वरदान, ऐसे कर रहे पर्यावरण संरक्षण व महिला सशक्तिकरण

विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस (World Nature Conservation Day) पर आज हम आपको एक ऐसे शख्स की कहानी बताने जा रहे हैं, जिसने पश्चिम ‘बंगाल के अभिशाप’ को वरदान बना दिया. जमशेदपुर के गौरव आनंद प्रकृति संरक्षण और महिला सशक्तिकरण एक साथ कर रहे हैं. उनका उद्देश्य लाखों महिलाओं को रोजगार से जोड़ना है.

By Mithilesh Jha | July 27, 2023 8:44 PM

प्रकृति ने हमें जो कुछ भी दिया है, उसमें कुछ भी बेकार नहीं है. उसमें हानिकारक तत्व हो सकते हैं, लेकिन वह पूरी तरह बेकार या हानिकारक ही नहीं है. इंसान चाहे, तो उसके गुणों की पहचान करके उसे अभिशाप से वरदान में तब्दील कर सकता है. मूल रूप से बिहार के पूर्णिया के रहने वाले और झारखंड में डेढ़ दशक से भी ज्यादा समय तक नौकरी करने वाले एक इंजीनियर ने ऐसा करके दिखा दिया है. उन्होंने न केवल पानी में पलने वाले जीव-जंतुओं को नुकसान पहुंचाने वाली जलकुंभी का वैकल्पिक इस्तेमाल शुरू कर दिया है, बल्कि 450 महिलाओं को रोजगार से भी जोड़ दिया है. इस शख्स का नाम है- गौरव आनंद.

जमशेदपुर के गौरव आनंद ने किया अभिनव प्रयोग

जमशेदपुर में रहने वाले गौरव आनंद जलकुंभी से रेशे निकालते हैं और कपड़े बनाने में उसका इस्तेमाल कर रहे हैं. उन्होंने प्रभात खबर (prabhatkhabar.com) को बताया कि जीवन के लिए जल बहुत जरूरी है. नदी-तालाबों में कई तरह के जीव-जंतु पलते हैं. उनके लिए जलकुंभी नुकसानदेह हैं. मैंने अपने गांव के लोगों को इसके बारे में बताया. उन्होंने मेरी बात तो सुनी, लेकिन इस संबंध में कुछ भी करने के लिए तैयार नहीं हुए. फिर मैंने भी उन्हें ज्यादा समझाना उचित नहीं समझा. मैंने तय किया कि इस जलकुंभी का सकारात्मक इस्तेमाल करूंगा.

जलकुंभी के तने से रेशे निकालकर उससे फ्यूजन साड़ी अपनी तरह का दुनिया का अनूठा प्रोडक्ट है. फ्यूजन साड़ी बनाने की एक अलग प्रक्रिया है. तालाबों से निकालकर लाये गये जलकुंभी के तने को पहले एक सप्ताह तक सुखाया जाता है. इसका ऊपरी हिस्सा बहुत कोमल यानी मुलायम होता है. इसका इस्तेमाल हम कागज बनाने में करते हैं. जलकुंभी के तने के गूदे का इस्तेमाल हम फाइबर बनाने के लिए करते हैं. इस प्रक्रिया में हॉट वाटर ट्रीटमेंट की जरूरत पड़ती है, ताकि इसमें मौजूद सारे कीड़े और बैक्टीरिया खत्म हो जायें. इसके बाद इससे सूत बनाते हैं और फिर उसको कॉटन में मिक्स करके उससे साड़ी बनायी जाती है. एक साड़ी बनाने में तीन से चार दिन लग जाते हैं.
गौरव आनंद

बंगाल में सबसे ज्यादा वाटर बॉडीज

उन्होंने कहा कि मुझे मालूम था कि पश्चिम बंगाल के तालाबों में बड़ी मात्रा में जलकुंभी पायी जाती है. देश में सबसे ज्यादा वाटर बॉडीज भी बंगाल में ही हैं. गौरव बताते हैं कि देश भर में जितने वाटर बॉडीज हैं, करीब-करीब उतने वाटर बॉडीज सिर्फ बंगाल में हैं. इसलिए हमने पश्चिम बंगाल में ही अपने काम पर फोकस करने का निर्णय लिया. वहां जलकुंभी भी आसानी से मिल जाती है और कुशल बुनकर भी मिल जाते हैं. इसलिए अभी हम वहीं पर फोकस कर रहे हैं. अपने राज्य झारखंड में नदियों की सफाई का भी काम गौरव करते हैं. लेकिन, इस दिशा में अभी झारखंड में काम शुरू नहीं कर पाये हैं. आने वाले दिनों में मौका मिला, तो वह झारखंड में भी ऐसी पहल करेंगे.

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जलकुंभी से साड़ियां भी बना रहे

गौरव आनंद ने बताया कि अब तो हमलोग जलकुंभी से साड़ियां भी बनाने लगे हैं. लेकिन, यह आइडिया बाद में दिमाग में आया. पहले हमने जलकुंभी से कई छोटी-छोटी चीजें बनायीं थीं. इसमें लैंपशेड्स, पेपर, नोटबुक और मैट्स शामिल हैं. बाद में हमें पता चला कि जलकुंभी में रेशे भी हैं. तब हमने सोचा कि साड़ी बनाने में भी इसका उपयोग कर सकते हैं. एक मित्र ने इसमें मेरी मदद की और ऐसा करने में हम सफल हो पाये. अभी हम साड़ी बनाने के लिए सूत में 25 फीसदी जलकुंभी का रेशा मिलाते हैं. एक साड़ी बनाने के लिए हमें 25 किलो जलकुंभी के तने (डंठल) की जरूरत पड़ती है. उन्होंने कहा कि हमारा यह प्रयोग अभी शुरुआती चरण में है, लेकिन इसके परिणाम उत्साहवर्द्धक हैं. आने वाले दिनों में हम कुछ और प्रयोग करने की सोच रहे हैं.

पश्चिम बंगाल की 450 ग्रामीण महिलाएं गौरव आनंद के इस अभिनव प्रयोग की वजह से रोजगार से जुड़ गयीं हैं. यहां के बुनकरों को भी काम मिल गया है. ये लोग अपना पेशा बदलने के बारे में सोच रहे थे. तभी गौरव आनंद के नये प्रयोग ने उन्हें नयी रोशनी दिखायी. आज ये लोग अपने ही गांव में ठीक-ठाक कमाई कर लेते हैं. परिवार के साथ अपने गांव में खुश हैं.

टाटा स्टील में 16 साल तक की नौकरी

जमशेदपुर में वर्षों तक टाटा स्टील में उच्च पद पर काम करने के बाद गौरव आनंद ने अपना जीवन पर्यावरण संरक्षण को समर्पित करने का निर्णय लिया. वाटर बॉडीज यानी नदी, तालाबों को स्वच्छ करने के अभियान में जुट गये. गौरव आनंद जब अपने गांव गये, तो देखा कि तालाब में जलकुंभी भरी है. उन्होंने लोगों को जलकुंभी से तालाब को होने वाले नुकसान के बारे में बताया. लोगों ने उनकी बात सुनी, लेकिन उसके समाधान के लिए किसी ने कोई पहल नहीं की. इससे गौरव को थोड़ी निराशा हुई, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी.

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नमामि गंगे अभियान का हिस्सा रहे गौरव आनंद

गौरव आनंद ने प्रभात खबर के साथ एक्सक्लूसिव बातचीत में बताया कि नमामि गंगे प्रोजेक्ट के तहत गंगा को स्वच्छ करने का अभियान नरेंद्र मोदी की सरकार ने शुरू किया. इस अभियान में शामिल कई संगठनों में टाटा स्टील भी एक था. टाटा स्टील की टीम में गौरव को भी शामिल किया गया था. इस टीम का नेतृत्व एवरेस्ट की चोटी पर सबसे पहले चढ़ाई करने वाली भारतीय महिला बछेंद्री पाल कर रहीं थीं. इस टीम ने जलमार्ग से हरिद्वार से पटना तक का सफर किया. इसी दौरान गौरव आनंद के मन में आया कि नौकरी बहुत कर ली. अब पर्यावरण के लिए कुछ करना चाहिए. देश के लिए कुछ करना चाहिए. देश के लोगों के लिए कुछ करना चाहिए.

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…और गौरव आनंद ने टाटा स्टील की नौकरी छोड़ दी

गौरव आनंद ने नौकरी छोड़ने का फैसला कर लिया. टाटा की जमी-जमायी नौकरी छोड़कर गौरव आनंद पर्यावरण संरक्षण के अपने अभियान में जुट गये. गौरव ने बताया कि चूंकि उन्होंने पर्यावरण विज्ञान में इंजीनियरिंग की थी, उन्हें जलकुंभी से वाटर बॉडीज और उसमें पलने वाले जीव-जंतुओं को होने वाले नुकसान और उनके अस्तित्व पर खतरे के बारे में मालूम था. उन्हें यह भी मालूम था कि इसे पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सकता, लेकिन उससे होने वाले नुकसान को कम जरूर किया जा सकता है. नदी-तालाबों में पलने वाले जीव-जंतुओं को बचाया जा सकता है. यही सोचकर गौरव आनंद ने नदी-तालाबों से जलकुंभी की सफाई का अभियान शुरू किया. आज भी वह हर हफ्ते स्वर्णरेखा नदी में सुबह-सुबह सफाई अभियान के लिए जाते हैं.

दुनिया में अपनी तरह का पहला अनूठा प्रोडक्ट

गौरव आनंद बताते हैं कि जलकुंभी के तने से रेशा निकालकर उससे बनने वाली फ्यूजन साड़ी अपनी तरह का दुनिया का अनूठा प्रोडक्ट है. उन्होंने फ्यूजन साड़ी बनाने की प्रक्रिया भी बतायी. उन्होंने बताया कि जलकुंभी के तने को पहले एक सप्ताह तक सुखाया जाता है. इसके कोमल ऊपरी हिस्से का इस्तेमाल कागज बनाने में करते हैं. इसके गूदे का इस्तेमाल हम फाइबर बनाने के लिए करते हैं. इस प्रक्रिया में हॉट वाटर ट्रीटमेंट की जरूरत पड़ती है, ताकि इसमें मौजूद सारे कीड़े और बैक्टीरिया खत्म हो जायें. इसके बाद इससे सूत बनाते हैं और फिर उससे साड़ी बनायी जाती है. एक साड़ी बनाने में तीन से चार दिन लग जाते हैं.

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सिर्फ जलकुंभी से बनी साड़ी नहीं होगी उतनी मजबूत

गौरव बताते हैं कि सिर्फ जलकुंभी के रेशे से भी साड़ी बनायी जा सकती है, लेकिन उसकी मजबूती उतनी ज्यादा नहीं रहेगी, जितनी अभी है. साड़ी की मजबूती के लिए ही हम इसमें कॉटन के सूत का इस्तेमाल करते हैं. उन्होंने बताया कि अभी उनकी एक साड़ी की कीमत 1200 रुपये के आसपास है. अगर जलकुंभी के ज्यादा रेशे मिला देंगे, तो इसके लिए हमें बहुत ज्यादा जलकुंभी के तने की जरूरत पड़ेगी. इसकी वजह से हमारी कॉस्टिंग यानी साड़ी की कीमत बढ़ जायेगी. वर्तमान में साड़ी की कीमत दो हजार रुपये से साढ़े तीन हजार रुपये के बीच है. मिडिल क्लास फैमिली इसे खरीद सकती है.

लाखों महिलाओं को रोजगार देना है गौरव का लक्ष्य

आज पश्चिम बंगाल की 450 ग्रामीण महिलाएं गौरव आनंद के इस अभिनव प्रयोग की वजह से रोजगार से जुड़ गयीं हैं. यहां के बुनकरों को भी काम मिल गया है. ये लोग अपना पेशा बदलने के बारे में सोच रहे थे. तभी गौरव आनंद के नये प्रयोग ने उन्हें नयी रोशनी दिखायी. आज ये लोग अपने ही गांव में ठीक-ठाक कमाई कर लेते हैं. परिवार के साथ अपने गांव में खुश हैं. बता दें कि 450 महिलाएं जलकुंभी का तना लाने का काम करतीं हैं और उससे दिन में तीन-चार घंटे काम करके हर महीने 5,000 रुपये तक कमा लेती हैं. गौरव का इरादा 450 महिलाओं की संख्या को बढ़ाकर लाखों में ले जाने का है. उन्हें यकीन है कि एक दिन वे ऐसा कर पायेंगे.

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रामा देवी ने बतायी अपनी कहानी

रामा देवी एक विधवा है. उसकी उम्र 47 साल है. पहले तंबाकू की फैक्ट्री में काम करती थी. इसकी वजह से उसे बराबर चर्मरोग हो जाता था. जो कमाती थी, उसका अधिकांश हिस्सा इलाज में खर्च हो जाता था. आज वह तीन से चार घंटे काम करती है और आराम से 5,000 रुपये प्रति माह कमा लेती है. चर्म रोग से भी परेशान नहीं करता है. अपना भरण-पोषण अच्छे से हो जाता है. इसके लिए उसे तालाबों से जलकुंभी का तना लाकर उसे सुखाना होता है.

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