Jharkhand News: फुटबॉल मैच में रेफरी की भूमिका बेहद अहम होती है. दोनों टीमों की गतिविधियों को देखना और सही निर्णय लेना रेफरी का काम होता है. इस भूमिका में ज्यादातर पुरुषों का ही वर्चस्व है, लेकिन अब महिलाएं भी कम नहीं हैं. महिला रेफरी फुटबाॅल ग्राउंड में जोश और जुनून से दौड़ लगा रही हैं. इसमें रांची की बेटियां भी किसी से पीछे नहीं हैं. रांची जिला में पांच महिला रेफरी हैं. इसमें कृपा, अनुजा टूटी, पूजा महली, सावित्री और सुमन लकड़ा शामिल हैं.
सुब्रतो कप में रेफरी रह चुकी हैं अनुजा
फुटबॉल के प्रतिष्ठित टूर्नामेंट सुब्रतो कप में रेफरी की भूमिका निभा चुकीं अनुजा टूटी इसे एक चैलेंज के रूप में लेती हैं. मैच में नियम के अनुसार अपना निर्णय सुनाती हैं. 2012 से फुटबॉल खेल रहीं अनुजा ने स्टेट लेवल की प्रतियोगिता में खेलकर अपनी पहचान बनायी. 2016 में अपने सीनियर को रेफरी की भूमिका में देखकर प्रेरित हुईं. फिर अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल रेफरी ओम प्रकाश ठाकुर की देखरेख में खुद को तैयार किया. अब तक जिलास्तरीय 100 मैचों में रेफरी की भूमिका निभा चुकी हैं.
मैच पूरा कराना बड़ी जिम्मेदारी
रांची की सुमन लकड़ा अभी झारखंड पुलिस में कार्यरत हैं. सुमन ने 2013 में फुटबाॅल खेलना शुरू किया और राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में अपनी प्रतिभा दिखायी. 2014 में रेफरी का सफर शुरू हुआ. प्रशिक्षण हासिल किया़ करीब 40 मैच में रेफरी की भूमिका निभा चुकी हैं. कहती हैं कि मैच कराना सबसे बड़ी जिम्मेदारी है. सात वर्षों से रेफरी की परीक्षा नहीं हुई है, जिस कारण आगे बढ़ने का अवसर नहीं मिल रहा.
खेलते समय लगा कि रेफरी की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण : सावित्री
रांची की रहनेवाली सावित्री कुमारी ने रेफरी में करियर की शुरुआत 2018 से की. उन्होंने सातवीं क्लास से फुटबॉल खेलना शुरू किया. राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में प्रतिभा का दम दिखा चुकी हैं. सावित्री कुमारी कहती हैं कि मैच खेलते और देखते समय लगा कि रेफरी की भूमिका सबसे अहम होती है, इसलिए इस तरफ करियर बनाने का रूख किया.
झारखंड में फुटबॉल रेफरी बोर्ड नहीं कर रहा काम
झारखंड में कृपा को छोड़कर कोई भी महिला रेफरी राज्य स्तर की नहीं हैं. क्योंकि झारखंड के रेफरी बोर्ड पर पाबंदी लगा दी गयी है. कारण है कि झारखंड फुटबॉल एसोसिएशन की आपसी लड़ाई़ इस कारण पिछले सात साल से रेफरी की परीक्षा नहीं हुई है. रेफरी के करियर की शुरुआत स्टेज फाइव से होती है. स्टेज थ्री पर पहुंचने के बाद कोई रेफरी सीनियर बनता है़ स्टेज टू और स्टेज वन तक पहुंचने के बाद कोई राष्ट्रीय स्तर का रेफरी बनता है. मालूम हो कि देश की पहली अंतरराष्ट्रीय महिला रेफरी उवेना फर्नांडीस हैं.
50 से अधिक मैचों में रेफरी की भूमिका निभा चुकी हैं कृपा
रातू की रहनेवाली कृपा जब लड़कों के फुटबॉल मैच में रेफरी की भूमिका में दौड़ लगाती हैं, तो देखनेवाले दंग रह जाते हैं. महिलाओं में सबसे सीनियर रेफरी कृपा अब तक 50 से अधिक मैच में निर्णायक की भूमिका निभा चुकी हैं. इससे पहले वह झारखंड की ओर से सीनियर नेशनल फुटबॉल प्रतियोगिता भी खेल चुकी हैं. कृपा कहती हैं कि एक बार कोलकाता गयी थी. वहां गोवा की एक महिला रेफरी को देखकर प्रेरणा मिली़ फिर 2013 से इसकी तैयारी शुरू कर दी. कोर्स भी किया. वह कहती हैं कि लड़कियों के लीग मैच नहीं होने के कारण अक्सर लड़कों के मैच में रेफरी की भूमिका निभानी पड़ती है.
जब मौका मिलता है पहुंच जाते हैं रेफरी बनकर
स्कूल के समय से फुटबॉल खेलने वाली रांची की पूजा महली राज्य स्तरीय फुटबॉल प्रतियोगिता में रेफरी की भूमिका निभा चुकी हैं. 2014 से इन्होंने फुटबॉल खेलने के साथ रेफरी का प्रशिक्षण लिया और स्टेज थ्री की परीक्षा पास की. जिसके बाद इन्हें राज्य स्तरीय फुटबॉल प्रतियोगिता में रेफरी की भूमिका निभाने का मौका मिला. इनका कहना है कि रेफरी का काम करने में मजा आता है. हालांकि अभी मैच के आयोजन कम होते हैं इसलिए हमें रेफरी बनने का मौका कम ही मिल पाता है. अब कोशिश है कि जल्द से जल्द परीक्षा हो और हम आगे बढ़ सके.
Posted By: Samir Ranjan.