रांची. झारखंड हाइकोर्ट के जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी की अदालत ने दुमका में अतिक्रमण बता कर तोड़े गये मकान को लेकर दायर याचिका पर अपना फैसला सुनाया. अदालत ने राज्य सरकार को प्रार्थी का मकान बनवाने का आदेश दिया. साथ ही अदालत ने प्रार्थी के मकान को अतिक्रमण बता कर तोड़ने पर सरकार को पांच लाख रुपये मुआवजा भुगतान करने का आदेश दिया. जस्टिस द्विवेदी ने अपने फैसले में कहा है कि जब अदालत के आदेश के आलोक में प्रार्थी ने निर्धारित समय सीमा के अंदर अपीलीय प्राधिकार में अपील दायर कर दी थी और इस दौरान पीड़क कार्रवाई नहीं करने का अदालत का आदेश था, इसके बावजूद भी प्रार्थी का मकान क्यों तोड़ दिया गया. मकान तोड़ने के पूर्व झारखंड पब्लिक लैंड इंक्रोचमेंट एक्ट के तहत कोई कार्यवाही भी नहीं चलायी गयी. सिर्फ पत्राचार के आधार पर मकान तोड़ दिया गया, जो विधिसम्मत नहीं है, गलत है. इससे पूर्व सुनवाई के दाैरान प्रार्थी ओम प्रकाश सिंह की ओर से अधिवक्ता राजीव सिन्हा ने पक्ष रखते हुए अदालत को बताया था कि दुमका सदर अंचलाधिकारी ने आठ जून 2016 को उनकी जमीन को अतिक्रमण में बताते हुए दो सप्ताह में हटाने का नोटिस दिया था. फिर अंचलाधिकारी ने एक और आदेश पारित किया, जिसमें प्रार्थी की जमीन को पब्लिक लैंड बता कर अतिक्रमण एक सप्ताह में हटाने का आदेश दिया. इस आदेश को हाइकोर्ट में याचिका दायर कर चुनाैती दी गयी थी. कहा गया कि यह जमीन हुकुमनामा से गिफ्टेड है. प्रार्थी इस जमीन पर मकान बना कर वर्ष 1949 से रह रहे हैं. उसे अतिक्रमण बताते हुए तोड़ने का आदेश देना गलत है. हाइकोर्ट ने प्रार्थी को दो सप्ताह में सक्षम प्राधिकार के पास अपील दाखिल करने और इस दौरान किसी तरह की पीड़क कार्रवाई नहीं करने का आदेश दिया था. उन्होंने निर्धारित समय के अंदर एसडीओ के पास अपील दायर की थी, लेकिन एसडीओ दुमका द्वारा दो सप्ताह की अवधि पूरी होने के बाद बुलडोजर से उनके मकान को तोड़ दिया गया. हालांकि मकान तोड़ने के पूर्व एसडीओ ने अपील को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह अपील अपर समाहर्ता के यहां किया जाना चाहिए था. उल्लेखनीय है कि प्रार्थी ओम प्रकाश सिंह ने याचिका दायर की थी.
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