झारखंड हाईकोर्ट ने उरांव जनजातियों की लड़कियों को पैतृक संपत्ति में अधिकार देने के फैसले पर आदिवासी समाज के लोग दो गुटों में बंट गये हैं. फैसले के पक्ष में अपनी बात रखने वाले लोग पक्ष तो रख रहे हैं लेकिन इस फैसले के विरोध में भी सभाएं हो रही है और हाईकोर्ट की डबल बेंच या सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की तैयारी है. इसी कड़ी में आज आदिवासी महासभा ने इस मुद्दे पर विचार विमर्श किया.
पूर्व मंत्री एवं आदिवासी महासभा के संयोजक देव कुमार धान ने कहा, उरांव जनजाति में पैतृक संपत्ति पर बेटी का अधिकार नहीं है. उरांव जनजाति के कस्टमरी लॉ के खिलाफ यह फैसला है. हमारे पूर्वजों ने सोच समझकर एक नीति बनायी है. उस नीति की नींव को हिलाया नहीं जा सकता.
देव कुमार धान ने कहा, कोर्ट के हर फैसले का सम्मान होना चाहिए लेकिन हमें भी अधिकार है कि हम इस फैसले के विरोध में आगे अपील करें. अभी जो फैसला आया है उससे अभी हम चिंतित हैं औऱ हम अपने विशेषज्ञों से राय ले रहे हैं.
हम इस पर बैठकें कर रहे हैं और हम एक तय रास्ते पर पहुंचने की कोशिश करेंगे. फैसले के बाद ही हम तय करेंगे कि हमें आगे क्या करना है, हम अपने सामाजिक ढांचे को बिगड़ने नहीं देंगे. यह सदियों से चला आ रहा है. हमारी परंपरा को बचाना है. उरांव जनजाति का कस्टमरी लॉ है.
शरण उरांव ने कहा, हमें इस फैसले को अपनी सामाजिक और पारंपरिक दृष्टि से देखना है. इस तरह के फैसले का विरोध पहले भी हुआ है. हम वृहद रूप से बैठक करेंगे. हम प्रयास कर रहे हैं कि इस पर आगे क्या किया जाये इस पर विचार कर सकें.
आदिवासी समाज के सभी सामाजिक संगठनों और बुद्धिजीवियों की बैठक नगड़ा टोली स्थित सरना भवन में बुलायी गई थी. इस बैठक में उरांव जनजाति की सभ्यता संस्कृति पर बात की गयी. झारखंड सरकार से भी बैठक में इस पूरे मामले पर हस्तक्षेप की अपील की गयी है.