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घुसपैठियों की पहचान कर उन्हें वापस भेजे सरकार : हाइकोर्ट

झारखंड हाइकोर्ट ने साहिबगंज, पाकुड़, दुमका, गोड्डा और जामताड़ा व अन्य इलाके में अवैध प्रवासियों (बांग्लादेशी घुसपैठिये) के प्रवेश के कारण जनसंख्या में हो रहे बदलाव को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की.

वरीय संवाददाता (रांची).

झारखंड हाइकोर्ट ने साहिबगंज, पाकुड़, दुमका, गोड्डा और जामताड़ा व अन्य इलाके में अवैध प्रवासियों (बांग्लादेशी घुसपैठिये) के प्रवेश के कारण जनसंख्या में हो रहे बदलाव को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की. जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद व जस्टिस अरुण कुमार राय की खंडपीठ ने पक्ष सुनने के बाद मौखिक रूप से कहा कि विदेशी घुसपैठ किसी राज्य का नहीं, बल्कि देश का मुद्दा है. विदेशी घुसपैठियों का भारत में प्रवेश हर हाल में रोकना होगा. खंडपीठ ने राज्य सरकार से कहा कि बांग्लादेशी घुसपैठिये झारखंड की जमीन पर रह रहे हैं. राज्य सरकार को घुसपैठियों की पहचान कर उन्हें वापस भेजना होगा. खंडपीठ ने जामताड़ा, पाकुड़, साहिबगंज, गोड्डा, दुमका व देवघर के डीसी को निर्देश दिया कि वे बांग्लादेशी घुसपैठियों को चिह्नित कर उन्हें वापस भेजने की कार्रवाई करें. झारखंड में घुसपैठियों के प्रवेश पर पूर्णत: रोक लगाने की दिशा में भी कदम उठायें. इस संबंध में की गयी कार्रवाई पर स्वयं निगरानी रखें. खंडपीठ ने संबंधित जिलों के डीसी को दो सप्ताह के अंदर शपथ पत्र के माध्यम से बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ की गयी कार्रवाई की जानकारी देने का निर्देश दिया. मामले की अगली सुनवाई 18 जुलाई को होगी. इससे पूर्व प्रार्थी की ओर से अधिवक्ता राजीव कुमार ने पैरवी की. पिछली सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से अधिवक्ता प्रशांत पल्लव ने खंडपीठ को बताया था कि घुसपैठियों की पहचान कर उन्हें राज्य की सीमा से बाहर करने की शक्ति राज्यों को दी गयी है. इस मामले में कार्रवाई के लिए राज्य सरकार सक्षम है. प्रार्थी दानियल दानिश ने जनहित याचिका दायर कर झारखंड में बांग्लादेशियों की घुसपैठ रोकने की मांग की है.

सजायाफ्ता की फांसी को हाइकोर्ट ने किया निरस्त :

झारखंड हाइकोर्ट ने राजमहल की छह वर्षीय बच्ची से दुष्कर्म और हत्या मामले में फांसी के सजायाफ्ता की ओर से दायर क्रिमिनल अपील व सजा कंफर्म को लेकर राज्य सरकार की अपील याचिका पर सुनवाई के बाद फैसला सुनाया है. जस्टिस रंगन मुखोपाध्याय की अध्यक्षतावाली खंडपीठ ने पोक्सो की विशेष अदालत के दोष सिद्धि व फांसी की सजा संबंधी आदेश को निरस्त कर दिया. अपीलकर्ता को रिहा करने का िनर्देश िदया.खंडपीठ ने कहा है कि सिर्फ अंतिम बार आरोपी व पीड़िता (बच्ची) को एक साथ देखा जाना दोष सिद्धि के लिए पर्याप्त नहीं है. अपीलकर्ता के इस अपराध में संलिप्तता को साबित करने के लिए और साक्ष्य जरूरी हैं. तीन-चार लोगों ने आरोपी द्वारा बच्ची को ले जाते हुए देखा था. घटना का समय व पीड़िता का शव मिलने का समय का उल्लेख नहीं है. आरोपी व मृतका के परिवार के बीच साैहार्द्रपूर्ण संबंध थे. आरोपी रोज बच्ची को घुमाने ले जाता था. उसके पास बच्ची की हत्या का कोई उद्देश्य नहीं था. अपीलकर्ता की ओर से अधिवक्ता राजा रवि शेखर िसंह ने पक्षा रखा. प्रार्थी राहत शेख ने निचली अदालत के फांसी की सजा संबंधी आदेश को चुनौती दी थी. राजमहल की पोक्सो की विशेष अदालत ने राहत शेख को एक दिसंबर 2022 को दोषी करार दिया था. 12 दिसंबर को उसे फांसी की सजा सुनायी थी. 12 गवाहों का बयान कलमबद्ध कराया था. चार मार्च 2015 की शाम 5:00 बजे राहत शेख बच्ची को घुमाने ले गया था. जब बच्ची शाम 7:00 बजे तक घर नहीं लाैटी, तो परिजनों ने तलाश शुरू की. इसी दौरान वह मृत मिली.

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