Ground Report: प्रभात खबर के साथ देखें मुड़मा जतरा, 40 पड़हा के पाहनों ने की मां शक्ति की आराधना

Ground Report: दुनिया भर में फैले आदिवासी समुदाय इन 40 पड़हा के अंतर्गत ही आते हैं. हर पड़हा में कई गांव समाहित होते हैं. मान्यता है कि दुनिया के किसी भी कोने में रहने वाला आदिवासी समुदाय का व्यक्ति इस दिन मां शक्ति की आराधना के लिए मुड़मा में एकत्रित होते हैं.

By Mithilesh Jha | October 12, 2022 6:29 PM

झारखंड की राजधानी रांची से 30-35 किलोमीटर दूर स्थित मांडर में ऐतिहासिक मुड़मा जतरा मेला (Murma Jatra Mela) में लोगों की भीड़ उमड़ रही है. सदियों से इस मेला का आयोजन होता आया है. 40 पड़हा के पाहनों द्वारा पूरे विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना की गयी. इसके बाद जनजातीय मामलों के केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने मेला का उद्घाटन किया.

40 पड़हा के पाहनों ने की शक्ति खूंटा की पूजा

केंद्रीय राजी पड़हा सरना प्रार्थना सभा (Kendriya Raji Parha Sarna Prarthana Sabha) की अगुवाई में जतरा शक्ति खूंटा (Jatra Shakti Khunta) की 40 पड़हा के पाहनों ने पूजा की. इसके बाद दीप प्रज्ज्वलित कर जतरा की शुरुआत की गयी. श्रद्धालुओं ने माथे पर जौ और गेंदा फूल से सुसज्जित कलश लेकर मां शक्ति की परिक्रमा की. इसके बाद हाथ में जल लेकर शक्ति खूंटा की पूजा-अर्चना की गयी. फिर प्रार्थना हुई.

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इस दौरान मांदर और नगाड़ा की धुन पर लोग थिरक रहे थे. दुनिया भर में फैले आदिवासी समुदाय इन 40 पड़हा के अंतर्गत ही आते हैं. हर पड़हा में कई गांव समाहित होते हैं. मान्यता है कि दुनिया के किसी भी कोने में रहने वाला आदिवासी समुदाय का व्यक्ति इस दिन मां शक्ति की आराधना के लिए मुड़मा में एकत्रित होते हैं. इस महाजुटान के दिन ही ऐतिहासिक मेला का आयोजन होता है.

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मुड़मा से पूर्व में मुंडा और पश्चिम में रहता है उरांव समाज

रांची जिला के मांडर विधानसभा क्षेत्र से विधायक शिल्पी नेहा तिर्की ने ‘प्रभात खबर’ से बातचीत में कहा कि यह आदिवासी समुदाय के लिए गौरव का दिन है. हम सब यहां आज के दिन एकजुट होते हैं. राजी पड़हा सरना समिति के महासचिव किस्पोट्टा ने बताया कि मुड़मा में भाषा का विभाजन होता है. मुड़मा से पश्चिम की तरफ उरांव समाज रहता है. वहां मुंडा समाज के लोग भी उरांव भाषा ही बोलते हैं. मुड़मा से पूर्व दिशा की तरफ मुंडा समाज रहता है. वहां रहने वाले उरांव समाज के लोग भी मुंडारी ही बोलते हैं.

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प्रकृति की गोद में विकसित संस्कृति का दीदार करना हो, तो मुड़मा जतरा मेला से बढ़िया जगह नहीं मिल सकती. प्रकृति की उपासना करने वाले और प्रकृति के अनुरूप जीने वाले आदिवासी समुदाय की जीवन शैली का अनुभव इस मेला में आप कर सकते हैं. पारंपरिक वेश-भूषा में युवक-युवतियों को देख सकते हैं. आखेट के लिए पीठ पर तलवार लिये घूम रहे आदिवासी भी मेला में आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं.

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कलाकृतियां और पकवान मन मोह लेंगे

मेला में आप कई तरह की कलाकृतियां भी देख सकते हैं. यहां आपको हर दिन इस्तेमाल होने वाले बांस के औजार, बांस के खिलौने, पत्थर के प्याले, साल पत्ता और बांस से बना बिना हैंडल वाला छाता. बच्चे इस मेले में कई तरह के खिलौनों के साथ चरखा और झूला का आनंद ले रहे हैं. बालूशाही, बर्फी और गाजा जैसे कई पकवान देखकर आपके मुंह में पानी आ जायेगा.

रिपोर्ट- पियूष गौतम

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