रांची, लता रानी : आज यानी रविवार छह 6 अगस्त को भारत में फ्रेंडशिप डे मनाया जायेगा. भारत के अलावा बांग्लादेश, मलेशिया और ऑस्ट्रेलिया में भी दोस्ती दिवस इसी दिन मनाया जायेगा. दोस्ती यानी फ्रेंडशिप दो लोगों के बीच सबसे अहम और अनमोल रिश्ता है. इसी पर दुनिया भी टिकी है. एक अच्छा दोस्त मुसीबत के पलों में सबसे बड़ा हिम्मत देनेवाला होता है. इस दिन को हर वर्ग के लोग धूमधाम से मनाते हैं. 30 जुलाई 1958 में अंतरराष्ट्रीय फ्रेंडशिप डे मनाने का प्रस्ताव पराग्वे में पेश किया गया था. 2011 में संयुक्त राष्ट्र ने 30 जुलाई को अंतरराष्ट्रीय फ्रेंडशिप डे मनाने की घोषणा की. वैसे अमेरिका, भारत और बांग्लादेश जैसे कई देश फ्रेंडशिप डे अगस्त के पहले रविवार को मनाते हैं.
ऐसे हुई फ्रेंडशिप डे की शुरुआत
फ्रेंडशिप डे की शुरुआत को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं. बताया जाता है कि 1935 में अमेरिका सरकार ने अगस्त के पहले रविवार के दिन एक व्यक्ति को मार दिया था. इस खबर से आहत होकर उसके दोस्त ने खुदकुशी कर ली. दोस्ती की ऐसी मिसाल सामने आने के बाद अमेरिकी सरकार ने ही अगस्त के पहले रविवार को फ्रेंडशिप डे रूप में मनाने की घोषणा की. जीवन में दोस्ती की अहमियत समझाने के लिए इस दिवस की शुरुआत की गयी. जिससे लोग अपने जीवन में इसका पालन करें और एक-दूसरे को खुश रखने में सहयोग करते रहें.
दोस्ती का रिश्ता सबसे खूबसूरत
दोस्ती का रिश्ता जिंदगी का सबसे खूबसूरत होता है, क्योंकि इस रिश्ते को हम स्वयं स्वीकार करते हैं. दोस्तों से हम अपनी दिल की सारी बातें नि:संकोच साझा करते हैं. अपने मन की बात करते हैं. ये दोस्त ही तो होते हैं, जो हमें अच्छे बुरे की सीख देते हैं. दोस्ती अक्सर इम्तिहान भी लेती है. फेंडशिप डे पर हम आज ऐसे ही कुछ दोस्तों की कहानी साझा कर रहे हैं.
कोरोना काल में दोस्त गिरिजा ने अर्चना का दिया साथ
किशोरगंज निवासी गिरिजा कोमल केंद्रीय माल एवं सेवाकर रांची विभाग में कार्यरत हैं. उनकी सखी अर्चना कुमारी चुटिया में अपने दो बच्चों के साथ सास-ससुर संग रहती हैं. उनके पति काम के सिलसिले में बाहर रहते हैं. अर्चना व गिरिजा, दोनों स्कूल फ्रेंड हैं. गिरिजा अपनी सखी अर्चना के हर दुख-सुख में साथ रहती हैं. कोरोना काल में अर्चना गंभीर रूप से संक्रमित हो गयी थीं. अर्चना के बच्चे भी संक्रमित हो गये. अर्चना कहती हैं कि वह कोरोना के पहले दौर में ही बिलकुल अकेली पड़ गयी थीं. कोई देखने वाला नहीं था. डर लग रहा था कि वह कैसे खुद को और अपने परिवार को बचा पायेंगी. लेकिन तब उनकी दोस्त गिरिजा ने उनका साथ दिया और उन्हें बचाया. वह दवा देने से लेकर खाना-पीने तक की व्यवस्था लंबे समय तक करती रहीं. अर्चना ने गिरिजा को मना भी किया कि वह अपना जीवन खतरे में नहीं डालें. लेकिन उस वक्त गिरिजा एक ग्रुप बनाकर उनके अलावा अन्य संक्रमित लोगों की सेवा कर रही थी. गिरिजा उनके हर सुख की साथी हैं. अर्चना कहती हैं कि वह अपनी दोस्त गिरिजा के बिना नहीं रह सकती हैं. गिरिजा ने उन्हें जीवन दान दिया है. वह और उनका पूरा परिवार उनका आभारी है.
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हर मुसीबत में दोस्त ने दिया साथ
बरियातू निवासी सुजाता सिंह और अर्चना त्रिवेदी, दोनों ही स्कूल फ्रेंड हैं. दानापुर केंद्रीय विद्यालय से दोनों ने पढ़ाई की. स्कूल के बाद दोनों बिछड़ गयीं. फिर 2012 में दोनों की मुलाकात मोरहाबादी में लगे मेले में हुई. सुजाता कहती हैं कि वह तमाम परेशानियों का सामना कर रही थीं, तभी उनकी दोस्त अर्चना मिली. उस समय ऐसा लगा कि उन्हें जिंदगी मिल गयी. रांची में अर्चना का होना उनके लिए खूबसूरत तोहफा से कम नहीं था. इसी दौरान उनके पति की तबीयत खराब हुई और वह अस्पताल में भर्ती रहे. वह कई बड़ी परेशानियों से गुजर रही थीं. बच्चे भी बाहर रह रहे थे, तब वह बिलकुल अकेली महसूस कर रही थीं. ऐसे मौके पर अर्चना ने उन दोनों की मदद की. अर्चना सुजाता की मदद करने में दिन-रात लगी रहीं. वह रोज अस्पताल आकर उन लोगों के लिए खाना बनाती थी. आज सुजाता का पूरा परिवार अर्चना व उसके परिजनों के सहयोग के कारण ही स्वस्थ है. उन्हें रांची में बिलकुल अकेला नहीं महसूस होता है. अर्चना के लिए भी उनका परिवार हमेशा खड़ा रहता है. ईश्वर इस दोस्ती को हमेशा सलामत रखे.
मिसाल है लॉरेटो छात्राओं का ग्रुप
लॉरेटो स्कूल से 2007 में पासआउट छात्राओं का ग्रुप दोस्ती की मिसाल है. सात युवतियों का यह फ्रेंड ग्रुप आज भी बरकरार है. सभी आज भी अपने परिवार के सदस्य की तरह ही मिलती-जुलती हैं और सुख-दुख बांटती हैं. ग्रुप की सांभवी प्रियदर्शी अब बेंगलुरु में कार्यरत हैं. वहीं रक्षा मुंबई में हैं. किरण हैदराबाद और सुष्मिता कोलकाता में कार्यरत हैं. वहीं दृष्टि अहमदाबाद में हैं, तो जया डेंटिस्ट हैं. यवानिका डिजिटल मार्केटिंग का काम देख रही हैं. सब अलग-अलग राज्यों में होने के बाद भी हर साल एक-दूसरे से मिलती हैं. सभी बड़े संस्थानों में कार्यरत हैं. कई दोस्तों की शादी भी हो गयी है. कोरोना काल के बाद रक्षा की माता का देहांत हो गया. उस समय रक्षा मुंबई में थीं और गर्भ से थी. अपनी माता के अंतिम संस्कार में नहीं पहुंच पायी. लेकिन सांभवी और किरण रांची में ही थीं और उन्होंने रक्षा की माता के अंतिम संस्कार में भूमिका निभायी.