मकर सक्रांति का त्योहार पूरे देश में 15 जनवरी को धूम धाम से मनाया जायेगा, श्राद्धलुओं के मन में इस त्योहार को लेकर कई कई मान्यताएं हैं. झारखंड में भी इस साल मकर संक्राति पर श्रद्धालुओं की खासी भीड़ उमड़ेगी. हर जगह पर इस त्योहार को मनाने का तरीका अलग अलग है. इस साल भी कहीं पर मेले का आयोजन हो रहा है तो कहीं पर मंदिरों में दीप जलेगी. ऐसे में आज हम आपको बतायेंगे कि किस जगह पर कैसे इस त्योहार को मनाया जा रहा है. सबसे पहले हम बात करेंगे देवघर की जहां पर सिदपुर में तीन दिवसीय गर्म जल मेले का आयोजन किया जा रहा है.
मेले में बच्चों के मनोरंजन के लिए कई सामान आ चुके हैं, जिसे मेला परिसर में लगाया जा रहा है. इसमें टॉय ट्रेन, हिंडोला व खिलौने की दुकान शामिल है. वहीं लोहे व लकड़ी से बने सामानों की दुकानें भी लग रही है. वहीं मिठाई व अन्य खाद्य पदार्थ की भी कई दुकानें दो दिन पूर्व से ही लगनी शुरू हो गई है.
रामगढ़ जिला के भुरकुंडा में नलकारी व दामोदर नदी तट, सौंदा दोमुहान पर मेला लगेगा. प्रत्येक वर्ष यह मेला 14 जनवरी को आयोजित होता है. इसमें रामगढ़ ही नहीं, दूसरे जिले से भी लोग पहुंचते हैं. श्रद्धालु यहां नदी के संगम पर स्नान के बाद प्राचीन राम-जानकी मंदिर में पूजा कर अपने दिन की शुरुआत करते हैं.
बोकारो के श्री अयप्पा मंदिर सेक्टर 05 में मकर संक्रांति पर्व 15 जनवरी को विधि-विधान पूर्वक श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया जाएगा. 1100 दीप जलाकर सुख-समृद्धि की कामना की जायेगी. मंदिर को फूलों और बिजली की झालरों से सजाया गया है. मकर संक्रांति पूजा आयोजन अय्यप्पा सेवा संघम की ओर से किया जाएगा. इसको लेकर मंदिर परिसर में आकर्षक लाइटिंग से सजावट की गई है. मकर संक्रांति के लिए मंदिर को आकर्षक ढंग से सजाया गया है.
हजारीबाग जिले के बड़कागांव प्रखंड के लॉकरा स्थित गंघुनिया, सोनपुरा के पंचवाहनी मंदिर, बादम के पंचवाहनी मंदिर, नापो कला पंचायत के मुरली पहाड़ में मेले का आयोजन होता है. पंचवानी मंदिर के बगल में जल कुंड एवं लॉकरा के गंधुनिया के जल कुंड में नहाने वाले लोगों की भीड़ उमड़ती है. बताया जाता है कि इन कुंडों में नहाने से चर्म रोग खत्म हो जाता है. यही कारण है कि इन कुण्डों में स्नान करने वालों की भीड़ सालोंभर लगी रहती है. मेले के दिन स्नान करने वालों की भीड़ बढ़ जाती है.
बड़कागाांव में बच्चों के ऊंचे कद के लिए मकर संक्रांति के दिन सबसे पहले स्नान कराया जाता है. उसके बाद तिल की आग के ऊपर से पार कराया जाता है. इसके बाद पूजा-अर्चना करवाकर उन्हें तिलकुट, गुड़, चूड़ा, दही खिलाया जाता है. अगर इतने में भी बच्चे 5 वर्ष या 10 वर्ष तक लंबे नहीं होते हैं, तो उनके कान में कनौसी पहना दिया जाता है. इसी दिन लड़कियों के कान छिदवाये जाते हैं. बच्चे पतंग उड़ाकर भी मकर संक्रांति मनाते हैं.