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Jharkhand News: कर्ज में डूबे HEC के अधिकतर कर्मचारी, कोई बेच रहा लिट्टी-चोखा तो कोई चला रहा ऑटो

एचइसी के इंजीनियर गणेश दत्त तो आर्थिक तंगी की वजह से मानसिक रूप से बीमार हो चुके हैं. तंगी के कारण उन्होंने पत्नी-बच्चों को ससुराल में छोड़ दिया है. ये वही लोग हैं, जो कभी खुद को एचइसी का कर्मचारी बताते हुए गर्व महसूस करते थे

By Prabhat Khabar News Desk | January 18, 2023 7:16 AM

एचइसी के कर्मचारी उदय शंकर आलू-प्याज बेच कर, राजेंद्र शर्मा लिट्टी-चोखा बेच कर और राजकुमार सिंह ऑटो चला अपने-अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं. वहीं, एचइसी के डिप्टी मैनेजर सुभाष चंद्रा परिवार की जरूरतें पूरी करने के लिए पत्नी के जेवर बेच चुके हैं. आइआइटी मद्रास से इंजीनियरिंग करनेवाले एचइसी के इंजीनियर गौरव सिंह घर का पूरा सामान बेच कर परिवार को गांव भेज चुके हैं.

इंजीनियर गणेश दत्त तो आर्थिक तंगी की वजह से मानसिक रूप से बीमार हो चुके हैं. तंगी के कारण उन्होंने पत्नी-बच्चों को ससुराल में छोड़ दिया है. ये वही लोग हैं, जो कभी खुद को एचइसी का कर्मचारी बताते हुए गर्व महसूस करते थे. वहीं, आज ये लोग अपने आप को एचइसी का कर्मचारी कहने से भी कतराते हैं.

एचइसी को ‘मातृ उद्योग’ कहा जाता है. इस कंपनी में बनायी गयी मशीनों व उपकरणों से देश के कई बड़ी स्टील कंपनियां, राष्ट्रीय सुरक्षा के संस्थान, रेलवे और कल-कारखाने चल रहे हैं. लेकिन, अफसोस कि स्वतंत्र भारत की अपनी तरह की इकलौती कंपनी आज दम तोड़ रही है. अधिकारियों को 14 और कर्मचारियों को नौ माह से वेतन नहीं मिला है.

तंगी का आलम यह है कि ज्यादातर कर्मचारी कर्ज में डूबे हुए हैं. राशन और सब्जी दुकानदारों ने उधार देना बंद कर दिया है. परिवार का पेट पालने के लिए यहां के सैकड़ों अधिकारी, कर्मचारी सड़क पर सब्जी और चादर-गमछा बेच रहे हैं. कोई टेंपो चला रहा है, तो कोई कैब. कोई मोमो का ठेला लगा रहा है, तो गार्ड बन गया है या फिर छोटा-मोटा व्यवसाय कर रहा है.

जोमैटो में पार्ट टाइम जॉब कर रहे अविनाश

एचएमबीपी-043 में कार्यरत अविनाश पांडेय ने बताया कि पांच लोगों का परिवार है. वेतन बकाया होने से एचइसी में डयूटी समाप्त होने के बाद जोमैटो में पार्ट टाइम जॉब कर रहे हैं. भाई का नामांकन एमबीए कोर्स के लिए कराया है. उसे अब पढ़ाई छोड़नी पड़ेगी. बैंक से कर्ज लेकर कुछ दिन चला. अब वहां से भी फोन आ रहा है.

ई-रिक्शा चला रहे हरिहर बड़ाइक

एफएफपी के 02 शॉप में मोल्डिंग का कार्य करने वाले हरिहर बड़ाइक पार्ट टाइम ई-रिक्शा चला कर परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं. हरिहर बताते हैं कि छह सदस्यों का परिवार है. पत्नी का इलाज पैसे के अभाव में नहीं करा पा रहे हैं. अब नौबत यह आ गयी है कि बेटे को एक जगह रोटी बनाने के काम में लगाना पड़ा है.

किराये पर ऑटो चला रहे राहुल कुमार

एचएमबीपी के एसएफडब्ल्यू में कार्यरत राहुल कुमार बताते हैं कि परिवार को भूखे तो नहीं रहने दे सकते हैं. इसलिए पार्ट टाइम किराया पर ऑटो चला रहे हैं. बैंक से ऋण लिया है, उसका भी भुगतान नहीं कर पा रहे हैं. अब गांव की जमीन बेचने की नौबत आ गयी है. खाने-पीने में कटौती करने के बाद भी मुश्किल से परिवार चल रहा है.

वायरिंग का काम कर रहे विवेकानंद

एचएमबीपी में कार्यरत विवेकानंद कहते हैं कि सीएनसी ऑपरेटर के पद पर कार्यरत हैं. जो भी काम पार्ट टाइम में मिल जाता है, वह करते हैं. कभी वायरिंग, तो कभी फर्निचर शॉप में भी कार्य करते हैं. छह लोगों के परिवार चलाना मुश्किल हो गया है. अगले सत्र में बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाने की सोच रहे हैं.

मोमो की दुकान चला रहे मनोज झा

एचएमबीपी में कार्यरत मनाज झा ने परिवार चलाने के लिए 1.25 लाख रुपये लोन लिया. उम्मीद थी कि वेतन मिलेगा, तो लोन चुका देंगे. बैंक से लोन रिकवरी का फोन आ रहा है. कोरोना के वक्त लोन लिया था, वह भी नहीं चुका पाये हैं. फिलहाल मोमो-बर्गर का ठेला लगा कर परिवार पाल रहे हैं.

2800 कर्मी कार्यरत हैं एचइसी में, इनमें 1600 सप्लाई और 1200 स्थायी कर्मी शामिल

14 माह से वेतन नहीं मिला है अधिकारियों को, कर्मियों का नौ माह का वेतन बकाया

10 करोड़ खर्च होता है हर माह एचइसी के अधिकारियों और कर्मियों के वेतन मद में

1100 करोड़ रुपये से अधिक है एचइसी की देनदारी, कार्यादेश मात्र 1350 करोड़ का

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