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HEC की स्थिति हुई खराब, 19 महीने से कर्मियों को नहीं मिला वेतन, बच्चों को दूध पिलाने के लिए बेचने पड़ रहे गहने

एचइसी में मार्च 2023 से ही उत्पादन लगभग ठप है. डेढ़ साल से ज्यादा हो गये, कर्मचारियों को वेतन नहीं मिला है. जिस भी कर्मचारी से इस मुद्दे पर सवाल करो, वही फफक पड़ता है.

देश का पहला और एक मात्र ‘मातृ उद्योग’ एचइसी अपनी बदहाली पर रो रहा है. खराब वित्तीय स्थिति के कारण कंपनी के कर्मियों को 19 महीने से वेतन नहीं मिला है. कभी खुद को गर्व के साथ एचइसी का कर्मचारी बतानेवाले आज मुफलिसी और तंगी में गुजरा कर रहे हैं. हालत यह है कि घर का खर्च चलाने के लिए किसी ने पुरखों की जमीन बेच दी, तो किसी ने बच्चों की पढ़ाई के लिए गहने गिरवी रख दिये. कई लोग तो अपने बच्चों को दूध पिलाने के लिए और परिवार का पेट पालने के लिए अपने गहने तक बेच दे रहे हैं. जिनके बच्चों की उम्र शादी लायक है, वे अंदर ही अंदर घुट रहे हैं.

एचइसी में मार्च 2023 से ही उत्पादन लगभग ठप है. डेढ़ साल से ज्यादा हो गये, कर्मचारियों को वेतन नहीं मिला है. जिस भी कर्मचारी से इस मुद्दे पर सवाल करो, वही फफक पड़ता है. कहता है : न बच्चों को पढ़ा सकते हैं, न बीमार होने पर इलाज करा सकते हैं. कर्ज का बोझ इतना हो गया है कि अब कोई कर्ज देने को भी तैयार नहीं है. इसके बावजूद कर्मचारी वेतन की आस में रोजाना प्लांट में आते हैं. इधर, सांसद, विधायक और श्रमिक नेता भी लंबे समय से कोरे आश्वासन के भरोसे कर्मियों को ढांढ़स बंधाते आ रहे हैं. एचइसी में दो वर्षों से सीएमडी सहित अन्य निदेशक प्रभार में हैं. भेल के सीएमडी व जीएम को एचइसी का सीएमडी व निदेशक का प्रभार दिया गया है.

गोल्ड लोन लेकर जमा की दो बच्चों के स्कूल की फीस

एचएमबीपी-02 शॉप के अजीत पाल कहते हैं : सीपीएफ से 1.5 लाख का लोन लिया था. वह भी चुका नहीं पाया. प्रबंधन ने बच्चों की स्कूल फीस भरने की बात कही थी, पर वह भी नहीं हुआ. गोल्ड लोन लेकर दोनों बच्चे की फीस भरी है.

अब तो पूरे परिवार को गांव भेजने की नौबत आ गयी है

1987 से एचएमबीपी में कार्यरत दिलीप कुमार कहते हैं : कर्ज में डूबा हुआ हूं. गांव में सात कट्ठा जमीन बेच दी. पत्नी की बालियां बेच कर पोती के दूध के पैसे चुकाये. शादी-ब्याह में किसी भी रिश्तेदार के यहां नहीं जाते. पूरे परिवार को गांव भेजने की नौबत आ गयी है.

परिवार का पेट पालने के लिए ड्यूटी के बाद बेच रहे सब्जी

वीरेंद्र कुमार रवि वर्ष 1990 से क्रेन ऑपरेटर के पद पर हैं. कहते हैं : सात लोगों का परिवार है. शुरुआत में पीएफ और महिला समिति से लोन लेकर परिवार चलाया. जब पैसे खत्म हुए, तब से ड्यूटी के बाद पूरा परिवार सब्जी बेच कर जीवन यापन कर रहा है.

पत्नी की सोने की चेन बेच कर खरीद रहे हैं राशन

मनोज कुमार सिंह वर्ष 2002 से एचएमबीपी में कार्यरत हैं. दो बेटियां हैं, एक इंटर व दूसरी ग्रेजुएशन में. पहले ही पीएफ से लोन ले रखा है. सभी रास्ते बंद हो चुके हैं. अब पत्नी की सोने की चेन बेच कर राशन खरीदना पड़ रहा है.

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