रांची: चुनाव आयोग ने भाजपा बनाम हेमंत सोरेन मामले में आदेश की प्रति देने से इनकार कर दिया है. इसके लिए न्यायिक आदेश और संवैधानिक संस्थाओं के बीच हुए पत्राचार को प्रिविलेज कम्युनिकेशन की संज्ञा दी. हालांकि हेमंत सोरेन के अधिवक्ता वैभव तोमर की ओर से आयोग के जवाब को नैसर्गिक न्याय के खिलाफ बताते हुए फिर से आदेश की प्रति देने की मांग की गयी है.
ज्ञात हो कि सीएम हेमंत सोरेन के वकील वैभव तोमर ने एक सितंबर को चुनाव आयोग को पत्र भेजा था. उन्होंने सीएम से जुड़े ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में आयोग द्वारा राजभवन को भेजे गये मंतव्य की कॉपी मांगी थी. वजह है कि राज्यपाल ने अब तक मंतव्य की जानकारी नहीं दी है.
चुनाव आयोग ने वैभव तोमर को भेजे गये अपने जवाब में कहा है कि राज्यपाल द्वारा संविधान के अनुच्छेद 192(2) के आलोक में राय मांगी गयी थी. दो संवैधानिक संस्थाओं (राज्यपाल और चुनाव आयोग) के बीच हुआ पत्राचार प्रिविलेज कम्युनिकेशन है. आयोग द्वारा इस मामले में अपनी राय की प्रति उपलब्ध कराना संवैधानिक प्रावधानों के भी प्रतिकूल है.
पत्र में डीडी थाइसी बनाम चुनाव आयोग के मामले में तोमर द्वारा दिये गये उदाहरण को भी आयोग ने अस्वीकार कर दिया है. इस सिलसिले में आयोग द्वारा यह कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 103(2) और 192(2) के तहत दी गयी राय को सार्वजनिक करने से छूट है.
आयोग द्वारा प्रतिलिपि देने से इनकार करने के बाद सीएम हेमंत सोरेन की ओर से अधिवक्ता वैभव तोमर ने आयोग को फिर पत्र लिखकर इसे नैसर्गिक न्याय के खिलाफ बताया है. अधिवक्ता ने पत्र में कहा है कि आयोग ने सिविल कोर्ट की शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए इस मामले में सुनवाई की. चुनाव आयोग द्वारा की गयी सुनवाई एक न्यायिक प्रक्रिया है, इसलिए यह जरूरी है कि चुनाव आयोग फैसले की जानकारी दे.
उन्होंने लिखा है कि जांच का निष्कर्ष उनके क्लाइंट को न देना असंवैधानिक है. उनके क्लाइंट को कॉपी नहीं दी गयी है, पर प्रेस को लीक कर दी गयी है. इससे राज्य में राजनीतिक अस्थिरता का वातावरण बन गया है. मौके का फायदा उठाते हुए भाजपा द्वारा हॉर्स ट्रेडिंग को बढ़ावा दिया जा रहा है और एक चुनी हुई लोकतांत्रिक सरकार को अस्थिर करने की कोशिश हो रही है. अत: पुन: आयोग से आग्रह है कि फैसले की प्रतिलिपि दी जाये.
हेमंत ने अधिवक्ता के माध्यम से दी चुनौती, फिर से मांगी आदेश की प्रति
कहा : जवाब न देना नैसर्गिक न्याय के खिलाफ और असंवैधानिक है