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हेमंत सोरेन नहीं गये ईडी ऑफिस, छह अक्तूबर को झारखंड हाइकोर्ट में सुनवाई

प्रार्थी हेमंत सोरेन ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाइकोर्ट जाने की छूट दिये जाने के बाद 23 सितंबर को झारखंड हाइकोर्ट में क्रिमिनल रिट याचिका दायर की. याचिका में इडी द्वारा जारी समन को कानून के विरुद्ध बताया गया.

रांची : मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की ओर से प्रवर्तन निदेशालय (इडी) के समन और उसके अधिकार को चुनौती देनेवाली क्रिमिनल रिट याचिका पर झारखंड हाइकोर्ट में छह अक्तूबर को सुनवाई होगी. प्रार्थी की ओर से अधिवक्ता पीयूष चित्रेश ने चीफ जस्टिस संजय कुमार मिश्र और जस्टिस आनंद सेन की खंडपीठ में याचिका पर शीघ्र सुनवाई के लिए स्पेशल मेंशन किया गया, जिसे खंडपीठ ने स्वीकार कर लिया. खंडपीठ ने मामले की सुनवाई के लिए छह अक्तूबर की तिथि निर्धारित की. इससे पहले इडी ने पांचवां समन जारी करते हुए चार अक्तूबर को हेमंत सोरेन को रांची कार्यालय में पेश होने को कहा था. पर उनकी ओर से बुधवार को इडी कार्यालय को बताया गया कि झारखंड हाइकोर्ट में एक याचिका दायर की गयी है. याचिका के निष्पादन तक इडी कोई कार्रवाई न करे.

प्रार्थी हेमंत सोरेन ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाइकोर्ट जाने की छूट दिये जाने के बाद 23 सितंबर को झारखंड हाइकोर्ट में क्रिमिनल रिट याचिका दायर की. याचिका में इडी द्वारा जारी समन को कानून के विरुद्ध बताया गया. साथ ही पीएमएलए एक्ट-2002 की धारा-50 व 63 की वैधता को चुनौती दी गयी है. कहा गया है कि उक्त धाराएं संविधान द्वारा दिये गये मौलिक अधिकार का हनन करती हैं. प्रार्थी के संवैधानिक अधिकार का हनन करती हैं. पीएमएलए एक्ट की धारा-50 के तहत इडी को पुलिस अधिकारी जैसा पावर होता है, जो सही नहीं है. इडी पुलिस अधिकारी नहीं हो सकता है.

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इससे पहले मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इडी को पत्र लिख कर हाइकोर्ट का आदेश आने तक आगे की कार्रवाई नहीं करने का आग्रह किया है. साथ ही कोर्ट द्वारा दिये जानेवाले किसी भी फैसले का पालन करने की बात कही है. मुख्यमंत्री की ओर से हाइकोर्ट के वकील श्रेया मिश्रा द्वारा इडी को लिखे गये पत्र में इसका उल्लेख किया गया है. हालांकि, इडी ने फिलहाल अपने अगले कदम पर फैसला नहीं लिया है.

मेदिनीनगर में मेधा डेयरी के प्लांट का उदघाटन करने के बाद बुधवार को सभा में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा : वन उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करेगी राज्य सरकार.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा : इडी के समन में असहयोग करना गिरफ्तारी का आधार नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने ‘धन शोधन निवारण अधिनियम-2002’ की धारा-50 से संबंधित एक मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है. कहा है कि उक्त अधिनियम की धारा-50 के तहत जारी समन के जवाब में केवल असहयोग के लिए प्रवर्तन निदेशालय (इडी) द्वारा किसी व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है. जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने कहा कि उक्त अधिनियम की धारा-50 के तहत जारी किये गये समन के जवाब में एक गवाह का असहयोग उसे धारा-19 के तहत गिरफ्तार करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा.

रियल एस्टेट समूह एम3एम के खिलाफ मनी लाउंड्रिंग मामले में पंकज बंसल और बसंत बंसल की गिरफ्तारी को अवैध करार देते हुए कोर्ट ने उक्त टिप्पणी की. कोर्ट ने कहा कि इडी द्वारा पूछे गये सवालों का जवाब देने में आरोपियों की विफलता जांच अधिकारी के लिए यह मानने के लिए पर्याप्त नहीं होगी कि वे धारा-19 के तहत गिरफ्तार किये जाने के लिए उत्तरदायी हैं. क्योंकि, शासनादेश के अनुसार धारा-19 के तहत किसी को केवल तभी गिरफ्तार किया जा सकता है, जब अधिकारी के पास यह विश्वास करने का कारण हो कि वह व्यक्ति पीएमएलए के तहत अपराधों का दोषी है.

इस पर इडी ने कहा कि आरोपियों द्वारा दिये गये जवाब ‘टालमटोल करनेवाले’ प्रकृति के थे. अदालत ने इडी के इस कारण को स्वीकार करने से इनकार करते हुए कहा : किसी भी स्थिति में पूछताछ के लिए बुलाये गये व्यक्ति से अपराध स्वीकार करने की उम्मीद करना इडी के लिए खुला नहीं है और यह दावा करना कि इस तरह के स्वीकारोक्ति से कम कुछ भी ‘टालनेवाला जवाब’ होगा. ‘संतोष सन ऑफ द्वारका दास बनाम महाराष्ट्र राज्य’ का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि हिरासत में पूछताछ ‘स्वीकारोक्ति’ के उद्देश्य से नहीं है,

क्योंकि आत्म-दोषारोपण के खिलाफ अधिकार संविधान के अनुच्छेद-20 (3) द्वारा प्रदान किया गया है. संतोष के मामले में यह माना गया कि केवल इसलिए कि एक आरोपी ने कबूल नहीं किया, यह नहीं कहा जा सकता कि वह जांच में सहयोग नहीं कर रहा था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इडी को आरोपी को गिरफ्तारी के आधार के बारे में लिखित रूप से सूचित करना होगा.

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