कोराना का समय हर लोगों के लिए किसी बुरे सपने जैसा था. रोजाना की जिंदगी थम सी गयी थी. देश और प्रदेश के विकास पर तो मानों ब्रेक लग गया था. इस दौरान सबसे ज्यादा अगर किसी को परेशानी हुई थी तो वो है प्रवासी मजदूर. काम बंद हो जाने के कारण लोगों को पैदल ही घर आना पड़ा. जिसे देखते हुए राज्य सरकार ने उनके लिए स्पेशल ट्रेन चलवाई. वहीं अति दूरगामी इलाकों में फंसे लोगों के लिए झारखंड सरकार ने हवाई जहाज की व्यवस्था करायी.
लेकिन प्रदेश के मजदूरों के लिए यहां आने के बाद भी मुश्किलें कम नहीं हुई. क्योंकि, काम नहीं होने के कारण उनके समक्ष रोजी रोटी की समस्या उत्पन्न हो गयी. जिसके बाद राज्य सरकार ने उनके लिए रोजगार देने की कवायद शुरू कर दी. सरकार की कौशल विकास मिशन और झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी जैसे संस्थानों ने कुशल मजदूरों की पहचान कर उनकी स्किल मैपिंग शुरू कर दी.
इस सूची में श्रमिकों का नाम, पता, स्किल (दक्षता) और कार्य का अनुभव का ब्योरा दर्ज किया गया. झारखंड सरकार की आंकड़े के मुताबिक 2.09 लाख से अधिक कुशल मजदूरों की सूची तैयार हुई थी. जबकि 92 हजार से अधिक लोग अकुशल श्रमिक थे. जिसके बाद उद्योग विभाग ने उनकी सूची विभिन्न उद्योगों और औद्योगिक संगठनों को भेजा. इस सूची में प्लंबर, इलेक्ट्रिशियन, कारपेंटर, कंप्यूटर ऑपरेटर समेत हर ट्रेड के कुशल श्रामिक शामिल थे.
लॉकडाउन के दौरान ही लोगों ने जब झारखंड सरकार ने सर्वेक्षण कराया तो 80 हजार से अधिक परिवार स्वयं सहायता समूह का हिस्सा नहीं है. जबकि अलग अलग परिवहन माध्यमों से 7 लाख लोगों को प्रदेश लाया गया था. इस दौरान ये भी पता लगाया गया कि प्रवासी श्रामिकों के परिवार किन किन सरकारी योजनाओं का लाभ मिल रहा है. इसी दौरान मालूम हुआ कि पात्रता के बावजूद वे कम से कम 7 योजनाओं का सरकारी लाभ नहीं ले पा रहे हैं.
झारखंड में बहुत से लोगों के पास जॉब कार्ड नहीं था. उस वक्त की तत्कालीन ग्रामीण विकास विभाग की सचिव की मानें तो बड़े पैमाने पर लोगों के जॉब कार्ड बनाये गये. लेकिन जब सर्वेक्षण किया गया तो 52,71 फीसदी यानी 1,59,191 लोगों के पास जॉब कार्ड नहीं हैं. इसके बाद सरकार ने कोशिश की हर लोगों का जॉब कार्ड बन जाये. और उनको घर के पास में ही रोजगार मिल सके.
‘मिशन सक्षम’ ने झारखंड आये कुल प्रवासी श्रमिकों में से 3,01,987 लोगों से बातचीत के आधार पर एक डाटाबेस तैयार किया था. जिसके बाद पता चला कि इन 3,01,987 प्रवासी श्रमिकों में से 75.04 फीसदी यानी 2,26,603 लोग मनरेगा योजना के तहत काम करने के लिए तैयार हैं. ये लोग अन्य राज्यों में दिहाड़ी मजदूरी करके अपना जीवन यापन करते थे. बाद में सर्वेक्षण से ये भी पता चला कि बहुत से लोग स्किल्ड लेबर हैं. जिसके बाद सरकार ने विभिन्न कंपनियों में उनकी क्षमता के अनुसार काम दिलाया. जिन लोगों को काम नहीं दिलाया जा सका उन लोगों को राज्य में संचालित विभिन्न उद्योगों से जोड़ा गया.