झारखंड राजनीति की प्रयोगभूमि की तरह रही है. हेमंत सोरेन ने शिबू सोरेन से झामुमो की विरासत संभाली और प्रदेश में राजनीति के माहिर खिलाड़ी बन कर उभरे. शिबू सोरेन झामुमो के अध्यक्ष रहे, वहीं हेमंत सोरेन कार्यकारी अध्यक्ष बने और पार्टी का मोर्चा संभाला. 2019 के विधानसभा चुनाव में हेमंत के नेतृत्व ने कमाल किया और तब के यूपीए गठबंधन को पूर्ण बहुमत दिलायी. 30 सीट लाकर झामुमो का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया. लेकिन भ्रष्टाचार में हेमंत सोरेन की सरकार घिरती चली गयी. 31 जनवरी 2024 को इस सरकार के अध्याय का अंत हो गया.
आनंद मोहन, रांची :
झारखंड अलग राज्य के आंदोलन के खाद-पानी से फलने-फूलनेवाली पार्टी झामुमो प्रदेश की सियासत की एक धुरी है. झारखंड की राजनीति में शिबू सोरेन गुरुजी व दिशोम गुरु के रूप में स्थापित हुए. झारखंड से लेकर दिल्ली तक की राजनीतिक गणित को उलट-फेर करनेवाली राजनीतिक ताकत बने. झारखंड की राजनीति के हर अध्याय का किरदार झामुमो रहा है. शिबू सोरेन ने झारखंड की राजनीति को अपने हिसाब से हांका और जोड़-तोड़ कर तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री बने. वर्ष 2005 में 11 दिन के लिए मुख्यमंत्री बननेवाले शिबू सोरेन की राजनीतिक विरासत उनके बेटे हेमंत सोरेन के हाथों आयी, तो झामुमो के नेतृत्व में गठबंधन की बहुमत वाली सरकार बनी. झामुमो के अध्यक्ष शिबू सोरेन रहे, लेकिन हेमंत सोरेन को कार्यकारी अध्यक्ष बना कर पार्टी ने साफ कर दिया कि अब हेमंत युग का उदय हो गया है.
पार्टी की कमान कभी युवा विंग के अध्यक्ष रहे हेमंत सोरेन के पास थी. इसी हेमंत युग में झामुमो ने सत्ता का राज देखा. हेमंत के नेतृत्व में 2019 के विधानसभा चुनाव में झामुमो ने सबसे उत्कृष्ट प्रदर्शन किया. झामुमो को 30 सीटें मिलीं. जो कमाल शिबू सोरेन के काल में नहीं हुआ, उसे उनके पुत्र हेमंत सोरेन ने कर दिखाया. झामुमो के अंदर ही नहीं, झारखंड की राजनीति में एक युवा चेहरे की राजनीतिक धाक थी. विधानसभा चुनाव में झामुमो-कांग्रेस और राजद का गठबंधन बहुमत के मैजिक आंकड़े को पार कर 47 तक पहुंच गया. झारखंड की राजनीति में यह नयी संभावनाओं, नयी उम्मीदों और नये नेतृत्व का दौर था. विधानसभा चुनाव में 65 पार का नारा देनेवाली भाजपा 25 पर सिमट कर रह गयी और उसके मुख्यमंत्री रहे रघुवर दास को भी पूर्वी जमशेदपुर से हार का मुंह देखना पड़ा.
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हेमंत के नेतृत्व का जलवा राजनीति में चला. सरकार बनी और कांग्रेस-राजद भी सरकार में शामिल हुए. लेकिन दो साल के अंदर ही हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली सरकार विवादों से घिरती चली गयी. खुद मुख्यमंत्री पर माइंस लेने के आरोप लगे. सरकार के अफसरों, मुख्यमंत्री के करीबियों और सत्ता के गलियारे के ब्रोकर इडी और जांच एजेंसियों के हत्थे चढ़े. दो साल में ही सरकार का चेहरा भ्रष्टाचार के आरोपों से बदरंग होता चला गया. खनन, जमीन, मनरेगा, शराब नीति जैसे घोटाले सामने आने लगे. पूरी बहुमत लेकर आये हेमंत सोरेन सरकार की जड़ें हिलने लगे. एक नेतृत्व जिसने चुनावी राजनीति में अपनी हुनर, राजनीति ताकत दिखायी, वह प्रशासनिक मोर्चे पर विफल रहा.
झामुमो नेता और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपना राजनीतिक सफर पार्टी में युवा मोर्चा के अध्यक्ष के रूप में शुरू किया था. युवा मोर्चा के अध्यक्ष के रूप में बहुत राजनीतिक सक्रियता नहीं रही. तब दुर्गा सोरेन की झामुमो में पकड़ थी. वह शिबू सोरेन के बाद फैसला लेनेवाले लोगों में थे. दुर्गा सोरेन पार्टी में हार्ड लाइनर माने जाते थे. दुर्गा सोरेन की असामयिक मौत के बाद हेमंत सोरेन झामुमो की राजनीति के केंद्र में आये. कार्यकारी अध्यक्ष बने. राजनीतिक कैरियर की शुरुआत 2009-10 में राज्यसभा सदस्य के रूप में की.
हेमंत सोरेन ने झारखंड में दूसरी बार मुख्यमंत्री का पद संभाला था. राज्य में 11 सितंबर 2010 में भाजपा, झामुमो और आजसू गठबंधन की सरकार बनी. इस सरकार में वर्तमान केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा बतौर मुख्यमंत्री थे. हेमंत सोरेन उप मुख्यमंत्री बने. इस सरकार के गठन में तय हुआ था कि भाजपा-झामुमो आधी-आधी पारी संभालेंगे. सरकार में खटपट शुरू हुआ और झामुमो ने अपना समर्थन वापस ले लिया. झारखंड में कुछ दिनों के लिए राष्ट्रपति शासन लगा. 13 जुलाई को हेमंत सोरेन ने सरकार बनाने का दावा पेश किया. कांग्रेस, राजद और निर्दलीय के सहयोग से हेमंत सोरेन 13 जुलाई 2013 को पहली बार मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे. वह 23 दिसंबर 2014 तक लगभग 14 महीने के लिए पहली बार मुख्यमंत्री रहे. इसके बाद वह 2019 में झामुमो की 30 सीटों की बड़ी जीत के साथ पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनायी.
हेमंत सोरेन का राजनीतिक सफर उतार-चढ़ाव वाला रहा. हेमंत सोरेन 2009 का विधानसभा चुनाव पार्टी के बागी नेता स्टीफन मरांडी से हार चुके थे. हालांकि स्टीफन मरांडी फिलहाल झामुमो में ही हैं और महेशपुर से विधायक हैं. वर्ष 2014 में हेमंत सोरेन दुमका और बरहेट से चुनाव लड़े. दुमका से चुनाव हार गये, वहीं बरहेट से जीत कर आये. 2019 हेमंत सोरेन का साल रहा. खुद हेमंत सोरेन दुमका और बरहेट दोनों सीटों से जीते. एक साथ दो-दो सीटों से जीत कर उन्होंने सबको चौंकाया. हालांकि बाद में मुख्यमंत्री पद संभालने के बाद दुमका सीट त्याग दिया और यहां से उनके छोटे भाई बसंत सोरेन उपचुनाव जीत कर आये.