गलत तथ्य देने पर एसपी-डीजीपी से हाइकोर्ट नाराज
झारखंड हाइकोर्ट के जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी की अदालत ने एक क्रिमिनल क्वैशिंग याचिका पर सुनवाई के दौरान राज्य के डीजीपी और हजारीबाग एसपी की ओर से गलत तथ्य देकर गुमराह करने के मामले को गंभीरता से लिया है.
वरीय संवाददाता (रांची).
झारखंड हाइकोर्ट के जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी की अदालत ने एक क्रिमिनल क्वैशिंग याचिका पर सुनवाई के दौरान राज्य के डीजीपी और हजारीबाग एसपी की ओर से गलत तथ्य देकर गुमराह करने के मामले को गंभीरता से लिया है. डीजीपी व एसपी के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू करने के पूर्व अदालत ने मामले को चीफ जस्टिस के समक्ष रखने का निर्देश दिया. अदालत ने कहा कि मामले (क्रिमिनल संख्या-3/2021) में स्वत: संज्ञान से अवमानना की प्रक्रिया शुरू की थी. उस मामले में इस अदालत द्वारा अपनायी गयी प्रक्रिया को हाइकोर्ट की खंडपीठ ने स्वीकार नहीं किया था और यह अदालत इस मामले में जल्दबाजी में आगे बढ़ना नहीं चाहती है, क्योंकि खंडपीठ को प्रक्रियात्मक दोष पर संदेह है और वर्तमान मामले में आगे बढ़ने से पहले उस बिंदु पर स्पष्टीकरण आवश्यक है. यह अदालत इस उलझन में है कि राजीव रंजन व सचिन कुमार से संबंधित अवमानना मामले (क्रिमिनल) संख्या-3/2021 में खंडपीठ के निर्णय के मद्देनजर क्या प्रक्रिया अपनायी जाये. अदालत ने ‘महिपाल सिंह राणा अधिवक्ता, प्रीतम पाल और सहदेव उर्फ सहदेव सिंह और विनय चंद्र मिश्रा’ के मामलों में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उदाहरण देते हुए कहा है कि अवमानना मामले (क्रिमिनल) संख्या-3/2021 में खंडपीठ के निर्णय पर बड़ी पीठ द्वारा विचार किये जाने की जरूरत है. इसलिए, यह अदालत रजिस्ट्री को अवमानना मामले में खंडपीठ के निर्णय को चीफ जस्टिस के समक्ष प्रस्तुत करने का निर्देश देती है. डब्ल्यूपी क्रिमिनल संख्या-139/2021 के संपूर्ण अभिलेखों सहित कागजात तथा अवमानना मामला (क्रिमिनल) संख्या- 3/2021 को उचित आदेश के लिए चीफ जस्टिस के समक्ष प्रस्तुत किया जा सकता है. निर्णय की प्रतीक्षा में इस वर्तमान मामले को लंबित रखा जाता है तथा पूर्व में दिये गये अंतरिम आदेश (निचली अदालत की कार्यवाही पर रोक) लागू रहेगा.प्रार्थी को फरार बताया, जबकि वह अदालत की शरण में है :
प्रार्थी की ओर से अधिवक्ता प्रवीण शंकर दयाल ने पक्ष रखते हुए अदालत को बताया कि प्रार्थी के बारे में पहले हजारीबाग के एसपी ने गलत तथ्य दिये. उसके बाद डीजीपी अजय कुमार सिंह की ओर से भी गलत तथ्य देकर अदालत को गुमराह करने का प्रयास किया गया है. प्रार्थी को फरार बताया है. यह अदालत की अवमानना है. अधिवक्ता श्री दयाल ने कहा कि प्रार्थी फरार नहीं है. वह अदालत की शरण में है. स्वयं पुलिस ने मामले में चार्जशीट दायर किया है, जिसमें कहा गया है कि आरोपी जमानत पर है, तो वह फरार कैसे है? अधिवक्ता ने अदालत को गुमराह करने के लिए डीजीपी व एसपी के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू करने का आग्रह किया. उल्लेखनीय है कि प्रार्थी मंसूर अंसारी ने क्रिमिनल क्वैशिंग याचिका दायर की है. उन्होंने निचली अदालत के आदेश को चुनौती दी गयी है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है