रांची़ होड़ोपैथी एथनो मेडिसिन के प्रसिद्ध चिकित्सक पीटर पॉल हेंब्रोम का 28 नवंबर की शाम महेशमुंडा गिरिडीह में निधन हो गया. शुक्रवार को उनका महेशमुंडा में अंतिम संस्कार किया गया. पीटर पॉल हेंब्रोम ने परंपरागत आदिवासी चिकित्सा पद्धति होड़ोपैथी को एक व्यवस्थित रूप दिया. उन्होंने जंगल में पाये जानेवाले जड़ी-बूटियों पर शोध करने और उसके चिकित्सा में सफल प्रयोग किया. वे होड़ोपौथी एथनो मेडिसिन रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेंटर के संस्थापक और निदेशक थे. साथ ही पहाड़िया सेवा समिति से भी जुड़े थे. उन्होंने जड़ी-बूटियों के माध्यम से मलेरिया, कालाजार, डायबिटीज, हेपटाइटिस सहित अन्य बीमारियों का इलाज किया. इसके अलावा वे कैंसर और एचआइवी जैसी बीमारियों पर भी शोध कर रहे थे. पीपी हेंब्रोम ने महेशमुंडा में होड़ोपैथी एथनो बोटनिक गार्डेन, डिस्पेंसरी और लाइब्रेरी की स्थापना की. खुद की किताबें लिखी. इनमें आदिवासी औषध (होड़ोपैथी), जैविक विविधता, स्वास्थ्य अपने हाथ सहित अन्य पुस्तकें शामिल हैं. उन्हें 2004 में अमेरिका का जोन विलियम हार्सबर्गर पुरस्कार मिला. वे इंटरनेशनल सोसाइटी ऑफ एथनो बोटानिस्ट के आजीवन सदस्य भी रहे. पीपी हेंब्रोम का कार्यक्षेत्र बिहार, झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ का जनजातीय क्षेत्र रहा. उन्होंने कई कार्यशालाओं और सेमिनारों के जरिये होड़ोपैथी का प्रचार-प्रसार किया. उनके प्रयासों से ही चिकित्सा की इस विधा को एक नयी पहचान मिली. रेंज फॉरेस्ट अफसर के रूप में कैरियर की शुरुआत की : बता दें कि पीटर पॉल हेंब्रोंम का जन्म 15 मार्च 1929 में हुआ था. उन्होंने संयुक्त बिहार में 1955 में वन विभाग में रेंज फॉरेस्ट अफसर के रूप में अपने कैरियर की शुरुआत की. 1987 में वे रेंज फॉरेस्ट अफसर के पद से सेवानिवृत्त हुए. अपनी नौकरी के दिनों से ही उनमें जंगलों में घूमते हुए होड़ोपैथी को जानने-समझने की जिज्ञासा उत्पन्न हो गयी थी. स्वाध्याय, प्रयोग और शोध के जरिये उन्होंने इसमें दक्षता हासिल की थी. उनके निधन पर सामाजिक कार्यकर्ता वासवी किड़ो सहित एथनो मेडिसिन पर शोध करनेवाले लखनऊ के डॉ अनिल गोयल, केरल के डॉ राधाकृष्णन, बेंगलुरु के डॉ अरविंद सकलानी सहित अन्य ने शोक व्यक्त किया है.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है