झारखंड हाइकोर्ट ने रांची नगर निगम और राज्य के नगर निकायों में नक्शा पास करने के लिए 20 से 30 रुपये प्रति वर्गफीट अवैध राशि वसूली को गंभीरता से लिया है. जस्टिस एस चंद्रशेखर व जस्टिस रत्नाकर भेंगरा की खंडपीठ ने ‘प्रभात खबर’ के 29 नवंबर के अंक में ‘20-30 रुपये प्रति वर्गफीट चढ़ावा, तब पास होता है नक्शा’ शीर्षक से प्रकाशित खबर पर स्वत: संज्ञान लिया.
इस मामले को अपील याचिका (एलपीए-132/2012) के साथ टैग करने का निर्देश दिया. साथ ही रांची क्षेत्रीय विकास प्राधिकार (आरआरडीए) के उपाध्यक्ष व रांची नगर निगम के नगर आयुक्त को अगली सुनवाई के दौरान सशरीर उपस्थित रहने का निर्देश दिया. मामले की अगली सुनवाई एक दिसंबर को होगी.
इससे पूर्व खंडपीठ ने रांची नगर निगम व आरआरडीए के अधिवक्ताओं को बुला कर नक्शा स्वीकृति के लिए अवैध राशि की वसूली से संबंधित जानकारी मांगी. खंडपीठ ने जानना चाहा कि नक्शा पास करने के लिए कौन राशि की मांग करता है. उल्लेखनीय है कि भवनों के नक्शा स्वीकृति के लिए निर्धारित शुल्क के अलावा अवैध राशि की मांग की जाती है.
अवैध राशि नहीं देने पर नक्शा स्वीकृत नहीं किया जाता है. कई आपत्तियां लगा दी जाती हैं. नक्शा लंबित रहता है. छोटे मकान के लिए 30 से 50 हजार रुपये तथा अपार्टमेंट का नक्शा पास करने के लिए 20-30 रुपये प्रति वर्ग फीट राशि वसूली जाती है.
नक्शा मंजूरी प्रक्रिया की जांच की, मानवीय हस्तक्षेप न के बराबर
प्रभात खबर में 29 नवंबर को छपी खबर का संज्ञान लेते हुए भवन प्लान स्वीकृति से संबंधित प्रक्रिया की जांच की गयी. वर्तमान में भवन प्लान की स्वीकृति पूर्णत: ऑनलाइन पद्धति द्वारा सॉफ्टवेयर के माध्यम से की जाती है. इसमें किसी मानवीय हस्तक्षेप की गुंजाइश नहीं के बराबर है.
इस बात की भी निरंतर निगरानी की जाती है कि भवन प्लान आवेदन लंबित नहीं रहे और ससमय आवेदनों का निष्पादन सुनिश्चित किया जाये. रांची नगर निगम में वर्ष 2016 में ऑनलाइन पद्धति लागू किये जाने के बाद अब तक 5506 भवन प्लान आवेदित हुए हैं.
उसमें से 4512 भवन प्लान स्वीकृत किये जा चुके हैं. जो कि आवेदित भवन प्लान का 82 प्रतिशत है. भवन प्लान स्वीकृति के क्रम में छोटी-मोटी तकनीकी अड़चन, वह भी आर्किटेक्ट के स्तर पर, जब भी दृष्टिगत होती है, तत्काल उसका नियमानुसार निष्पादन सुनिश्चित किया जाता है. प्रभात खबर में प्रकाशित उक्त खबर सत्य प्रतीत नहीं होती है. इस खबर से अनावश्यक रूप से रांची नगर निगम की छवि धूमिल होती है एवं कर्तव्यनिष्ट कर्मियों के मनोबल को ठेस लगती है.
हमारी रिपाेर्ट पूरे राज्य के नगर निकायाें के संदर्भ में है, सिर्फ रांची नगर निगम के लिए नहीं. पर प्रभात खबर ने जिस गड़बड़ी की चर्चा की है, उससे रांची नगर निगम भी अछूता नहीं है. नगर आयुक्त का पक्ष है कि सारी व्यवस्था ऑनलाइन है, इसलिए गड़बड़ी की गुंजाइश नहीं है. प्रभात खबर उनके इस तर्क से सहमत नहीं है. प्रभात खबर ने इस रिपाेर्ट काे प्रकाशित करने के पहले अनेक भुक्तभाेगियाें से बात की थी. नक्शा जमा करने से लेकर पारित हाेने के बीच अनेक कर्मचारियाें-इंजीनियराें व अफसराें से भुक्तभाेगियाें का पाला पड़ता है.
अपवाद काे छाेड़ दें, ताे अधिकांश जगह बगैर पैसा दिये काम नहीं हाेता है. नगर आयुक्त ने खबर छपने पर तुरंत संज्ञान लिया और जांच की, यह स्वागत याेग्य है. पर इस जांच में जब तक भुक्तभाेगियाें से बात न हाे , असली सच नगर आयुक्त काे पता ही नहीं चलेगा. प्रभात खबर अपनी रिपाेर्ट पर कायम है. नगर आयुक्त से यह अपेक्षा करता है कि विस्तृत जांच करा कर गड़बड़ी काे दूर करने का प्रयास करें, ताकि झारखंड की आम जनता काे राहत मिले, तभी निगम की छवि बेहतर बन सकती है
अगली सुनवाई एक दिसंबर को
आरआरडीए उपाध्यक्ष और नगर आयुक्त को सशरीर उपस्थित रहने का दिया निर्देश