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झारखंड में कैसे संभव होगा कोल ट्रांजिशन, सरकार के समक्ष हैं ये चुनौतियां, रांची सहित इन जिलों पर होगा असर

भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था में कोयले के उपयोग को कम करने के लिए एक साहसिक कदम उठाया है. ग्लासगो में सीओपी 26 में भारत ने महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किये हैं.

अपनी धरती को बचाने के लिए पूरी दुनिया आज ग्रीन एनर्जी की ओर अग्रसर होना चाहती है. नवंबर के शुरुआती सप्ताह में ग्लासगो सम्मेलन में इस बात पर बहुत जोर दिया गया. भारत भी लगातार ग्रीन एनर्जी की बढ़ना चाहता है और इसके लिए आवश्यक कदम भी उठाये जा रहे हैं.

भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था में कोयले के उपयोग को कम करने के लिए एक साहसिक कदम उठाया है. ग्लासगो में सीओपी 26 में भारत ने महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किये हैं. अगर भारत इन प्रतिबद्धताओं को पूरा करता है तो उसे एक स्वच्छ हरित अर्थव्यवस्था की ओर अग्रसर होना होगा.

लेकिन सबसे बड़ी समस्या यह है कि अगर भारत स्वच्छ हरित अर्थव्यवस्था की ओर अग्रसर होता है तो उसे कई ऐसी समस्याओं का सामना करना पड़ेगा जो हजारों लोगों की जीविका पर सीधा असर डालने वाला होगा.

सरकार अगर देश के सबसे बड़े ऊर्जा के स्रोत कोयले के उपयोग को कम करती है, तो उसे लगभग 13 मिलियन लोगों के रोजगार की व्यवस्था करनी होगी जो पूरी तरह से कोयला और उससे संबंधित व्यवसायों पर जीते और खाते हैं.

नेशनल फाउंडेशन फॉर इंडिया (NFI) ने ऐसे ही लोगों और उनकी आजीविका से जुड़ी समस्याओं और निदान पर एक रिपोर्ट जारी किया है. इस रिपोर्ट के अनुसार अगर एनर्जी ट्रांजिशन होता है तो यह देश भर में गरीब समुदायों के जीवन और आजीविका को प्रभावित करेगा. ऐसे में सरकारों, संस्थाओं और नागरिक समाज को यह सुनिश्चित करना होगा कि यह संक्रमण उन लोगों को पीछे न छोड़े जो अब तक कोयले और कोयला से जुड़े उद्योगों में काम कर चुके हैं, क्योंकि अगर ऐसा होता है तो यह दोहरी मार होगी.

यह वर्ग सबसे अधिक असुरक्षित होता है और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का खामियाजा भी भुगतता है. एनएफआई ने अपनी रिपोर्ट में यह अध्ययन किया कि भारत में कितने रोजगार और आजीविका प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कोयले और कोयले से संबंधित क्षेत्रों से जुड़े हैं. देश अगर ग्रीन एनर्जी की ओर बढ़ता है तो यह जरूरी है कि वह करोड़ों ऐेसे लोगों की बदहाली की वजह ना बनें, जो कोयला आधारित उद्योगों से जुड़े हैं.

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भारत में कोल ट्रांजिशन एक कठिन और जटिल कार्य है. अनुमानित आंकड़ों के अनुसार 13 मिलियन से अधिक लोग कोयला खनन, परिवहन, बिजली, स्पंज आयरन, स्टील और ईंट क्षेत्रों में कार्यरत हैं. इससे इतर कार्यों को भी शामिल करें तो देश भर में 20 मिलियन लोग एनर्जी ट्रांजिशन से प्रभावित होंगे. इस एनर्जी ट्रांजिशन का सबसे अधिक प्रभाव जिन राज्यों पर पड़ने वाला है उनमें शामिल हैं-उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा और मध्य प्रदेश. झारखंड के 15 और पश्चिम बंगाल के कम से कम आधे जिले, ओडिशा और छत्तीसगढ़ के 30 प्रतिशत जिले कोल ट्रांजिशन से प्रभावित होंगे.

कोल ट्रांजिशन देश के सामने असली चुनौती है. पूरे क्षेत्रों और जिलों को स्थानांतरित करना, छोटे देशों के आकार की आबादी के लिए आजीविका के अवसर खोजना और हमारे विकास और जलवायु लक्ष्यों को पूरा करना. कोल ट्रांजिशन से प्रभावित लोगों का आंकड़ा इतना बड़ा है जो इस काम को अभूतपूर्व बनाता है.

कोल ट्रांजिशन से प्रभावित होने वाले झारखंड के जिले

कोल ट्रांजिशन से झारखंड के जो जिले प्रभावित हो रहे हैं और जहां इसका सबसे ज्यादा प्रभाव है, उनमें शामिल हैं-पाकुड़, पलामू, रांची और कोडरमा. जहां इससे कम प्रभाव दिखेगा वो है-देवघर और लातेहार. जहां कोल ट्रांजिशन का प्रभाव सबसे कम दिखेगा वो हैं- हजारीबाग, रामगढ़, गिरिडीह, सिंहभूम,गोड्डा, धनबाद, चतरा और बोकारो.

कोल ट्रांजिशन की समस्याओं को जो और भी ज्यादा चुनौतीपूर्ण बनाती है वह है कि भारतीय श्रम बाजार की स्थानिक विशेषताएं . प्रत्येक क्षेत्र में अनुबंध/ऑफ-रोल श्रमिकों की बड़ी उपस्थिति है, साथ ही उनका सामाजिक-आर्थिक प्रोफाइल भी कई बाधाएं खड़ी करता है. कुल श्रम का कम से कम 70 प्रतिशत ऑफ-रोल श्रम का हिस्सा है, जो परिवहन और ईंटों में क्रमशः 92 प्रतिशत और 80 प्रतिशत तक पहुंच गया है.

कोयला खनन में 30 प्रतिशत ऑन रोल श्रमिक हैं, तो 70 प्रतिशत ऑफ रोल हैं. ट्रांसपोर्ट के काम में मात्र 10 प्रतिशत आन रोल हैं, जबकि 90 प्रतिशत ऑफ रोल श्रमिक हैं. पावर सेक्टर में 25 प्रतिशत आन रोल तो 75 प्रतिशत ऑफ रोल श्रमिक हैं. भारत में मजदूरों का 81 प्रतिशत असंगठित क्षेत्रों में काम करता है. सरकार के पास इन मजदूरं के सामाजिक और आर्थिक स्थिति का कोई अधिकारिक आंकड़ा भी नहीं है.

Posted By : Rajneesh Anand

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