आज से ठीक 5 दिन बाद यानी 9 अगस्त को पूरी दुनिया में विश्व आदिवासी दिवस मनाया जायेगा. इस दिन आदिवासियों के रहन-सहन, प्रकृति के साथ उनके मेल-जोल की तारीफ होगी. आदिवासी नेताओं की उपलब्धियों, जल-जंगल-जमीन के बारे में उनकी समझ, उनके विचारों का बखान होगा. आदिवासी मनीषियों को याद करने के लिए साल में एक-दो मौके ही आते हैं. भगवान बिरसा मुंडा को छोड़ दें, तो किसी और आदिवासी वीर या वीरांगना को देश भर में याद तक नहीं किया जाता. झारखंड की धरती ने बिरसा मुंडा के अलावा सिदो-कान्हू, चांद-भैरव, फूलो-झानो और न जाने कितने लड़ाके दिये, जिन्होंने अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिये. झारखंड के अलग-अलग हिस्सों में कई वीर-वीरांगनाएं हुईं, जिन्होंने अभूतपूर्व काम किये, लेकिन इतिहास के पन्नों में उनके कार्यों को आज तक दर्ज नहीं किया गया. एजेलीना तिग्गा देश की पहली महिला आदिवासी सांसद होने के बावजूद गुमनाम नेताओं, स्वतंत्रता सेनानियों की लिस्ट में हैं.
भारत की पहली आदिवासी महिला सांसद एंजेलीना तिग्गा
सुशीला समद अगर भारत की पहली आदिवासी महिला हिंदी विदुषी थीं, तो एंजेलीना तिग्गा को देश की पहली महिला आदिवासी सांसद होने का गौरव प्राप्त है. वह भी उच्च सदन यानी राज्यसभा की सदस्य थीं. हालांकि, उनका कार्यकाल बहुत बड़ा नहीं रहा. महज दो साल के लिए ही वह राज्यसभा की सदस्य रहीं. लेकिन, राज्यसभा के पास अपनी इस पहली महिला आदिवासी सांसद के बारे में कई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है.
रांची के पत्थलकुदवा की रहने वालीं थीं एंजेलीना तिग्गा
रांची के पत्थलकुदवा की एंजेलीना तिग्गा का जन्म 3 अगस्त 1909 को हुआ. वह उरांव समुदाय से थीं. कहा जाता है कि प्रखर वक्ता और प्रभावशाली महिला नेता एंजेलीना तिग्गा में संगठन खड़ा करने की अद्भुत क्षमता थी. आजादी के पहले और आजादी के बाद उन्होंने आदिवासी महिलाओं में राजनीतिक चेतना जगाने में अहम भूमिका निभायी. आदिवासी महासभा को मजबूती प्रदान करने में भी उनकी सक्रिय भूमिका थी.
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उन्होंने बड़ी संख्या में महिलाओं को आदिवासी महासभा से जोड़ा. कई मुद्दों पर जनआंदोलन किये. उनके इन क्रिया-कलापों से तत्कालीन बिहार सरकार बेहद खफा हुई. बिहार सरकार ने एंजेलीना तिग्गा के खिलाफ कई केस दर्ज करवाये. इसमें लोगों को भड़काने, सरकार के खिलाफ आंदोलन करने समेत कई अलग-अलग केस थे. लेकिन, एंजेलीना तिग्गा ने जनता की आवाज उठाना बंद नहीं किया. अपनी पूरी क्षमता के साथ जनता के साथ खड़ी रहीं और उनके मुद्दों को और जोर-शोर से उठाया.
40 से 60 के दशक के बीच कई आंदोलन किये
बता दें कि एंजेलीना तिग्गा ने 1940 से 1960 तक कई आंदोलनों का नेतृत्व किया. कई मुद्दों पर सरकार के खिलाफ मोर्चाबंदी की. 1939 में वह आदिवासी महिला संघ की अध्यक्ष बन चुकीं थीं. इसके बाद उनकी संगठनात्मक क्षमता के अन्य लोग भी कायल हो गये. आदिवासी महासभा में उनकी नेतृत्व क्षमता को देखते हुए ही उन्हें एग्जीक्यूटिव कमेटी ऑफ बिहार काउंसिल ऑफ वीमेन का सदस्य बनाया गया. एजेंलीना तिग्गा 3 अप्रैल 1952 से 2 अप्रैल 1954 तक झारखंड पार्टी की राज्यसभा सांसद रहीं.
Also Read: Jaipal Singh Munda Quotes: मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा की जयंती पर यहां देखें उनके अनमोल वचनराज्यसभा की वेबसाइट पर एंजेलीना की जन्म की तारीख भी गलत
इस प्रखर आदिवासी महिला नेता के बारे में आज भी बहुत ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है. राज्यसभा के पास भी उसकी पहली आदिवासी महिला सदस्य एंजेलीना तिग्गा के बारे में सटीक जानकारी तक उपलब्ध नहीं है. यहां तक कि उनके जन्मदिन की तारीख भी गलत है. राज्यसभा की साइट पर आप सदस्यों की सूची खंगालेंगे, तो पायेंगे कि इस लिस्ट में एंजेलीना का नाम तो है, लेकिन 1952 से 1954 तक सांसद रहीं तत्कालीन बिहार की इस आदिवासी नेता की जन्मतिथि गलत अंकित है. साइट पर उनकी जन्मतिथि 1 जनवरी 1970 बतायी गयी है.
1953 में डीवीसी के श्रमिकों की हड़ताल का मुद्दा उठाया
एजेंलीना तिग्गा ने संसद में कई बार सवाल पूछे. संसद के पांचवें सत्र में उन्होंने 24 दिसंबर 1953 को डीवीसी में कर्मचारियों की हड़ताल का मुद्दा राज्यसभा में उठाया था. उनके सवालों का मौखिक उत्तर दिया गया. इससे पहले 16 दिसंबर रांची की बेटी ने भारत में ब्रेल प्रिंटिंग मशीन से संबंधित सवाल पूछा था. इसका भी उन्हें मौखिक जवाब उच्च सदन में मिला था. संभवत: राज्यसभा की किसी कमेटी में उनको जगह नहीं मिली थी, क्योंकि राज्यसभा की वेबसाइट पर इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी गयी है. प्राइवेट मेंबर्स बिल भी उन्होंने पेश नहीं किया.
एंजेलीना तिग्गा के सवाल और मंत्री के जवाब
दामोदर वैली कॉर्पोरेशन के कामगारों की हड़ताल पर श्रीमती एंजेललीना तिग्गा ने 24 दिसंबर 1953 को उच्च सदन में जो सवाल किये और सिंचाई एवं ऊर्जा विभाग के डिप्टी मिनिस्टर जेएसएल हाथी से उनको जो जवाब मिला, वो इस प्रकार हैं:-
क्या सिंचाई एवं ऊर्जा मंत्री ये बतायेंगे कि क्या यह सच है कि दामोदर वैली कॉर्पोरेशन के कोनार डैम का निर्माण करने वाली एक कंपनी के 1,000 से अधिक कामगार हड़ताल पर हैं. अगर ऐसा है, तो यह भी बतायें कि इसकी वजह क्या है?
जी हां. 23 नवंबर से 28 नवंबर 1953 तक हड़ताल हुई. श्रमिकों की मांग है कि दिहाड़ी मजदूरों को भी वेतनभोगी श्रमिकों के समान बोनस दिया जाये. अपनी इसी मांग के समर्थन में वे लोग हड़ताल पर चले गये.
क्या उनमें विस्थापित लोग भी शामिल हैं?
नहीं महोदय. इसके बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है.
क्या ये लोग राशनिंग एरिया से आते हैं?
मेरी समझ में ये लोग स्थानीय हैं और आसपास के इलाके के रहने वाले हैं.
क्या डीवीसी जैसी योजनाओं के लिए काम करने वाले कांट्रैक्टर पर सरकार का कोई नियंत्रण है, ताकि उनके अधीन काम करने वाले बड़ी संख्या में गरीब लोगों को परेशानी न हो?
डीवीसी के अधिकारियों ने इस मामले में बेहतर काम किया है. उन्होंने कांट्रैक्टर के साथ वार्ता की और श्रमिकों की मांगों को पूरा किया. श्रमिकों को डेढ़ महीने की दिहाड़ी के हिसाब से बोनस का भुगतान कर दिया गया है.