E-कचरा क्या है और इससे कैसे निबटा जा सकता है? झारखंड में हर साल निकलता है इतना टन, जानें इसके नुकसान
इलेक्ट्रॉनिक कचरा हमारे पर्यावरण के लिए घातक है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के 2020-21 के आंकड़ों के अनुसार झारखंड से प्रत्येक वर्ष 660 मीट्रिक टन ई-कचरा रिसाइकल किया जा रहा है, लेकिन एक बड़ा हिस्सा हर वर्ष डंप भी हो रहा है.
Ranchi News: अधिकतर लोग अपने मोबाइल फोन या टेलीविजन सेट का निपटान कैसे करते हैं? आमतौर पर हम शुरुआती तौर पर इसे कबाड़ी को बेच देते हैं. फिर ये कबाड़ीवाले जरूरी सामान को छांटकर बाकी को फेंक देते हैं. यही फेंका हुआ इलेक्ट्रॉनिक कचरा हमारे पर्यावरण के लिए घातक है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के 2020-21 के आंकड़ों के अनुसार झारखंड से प्रत्येक वर्ष 660 मीट्रिक टन ई-कचरा रिसाइकल किया जा रहा है, लेकिन एक बड़ा हिस्सा हर वर्ष डंप भी हो रहा है. क्याेंकि अनुमान है कि देशभर में कुल ई-कचरे के सिर्फ 15 फीसदी हिस्से का ही निबटान हो पाता है. रांची शहर में एक संगठित रिसाइकलर प्रत्येक माह करीब 25 टन से अधिक ई-कचरा इकट्ठा कर रहा है, वहीं असंगठित कबाड़ी का व्यापार करनेवाले तीन गुना अधिक ई-कचरा संग्रह कर रहे हैं.
स्थायी रूप से नष्ट नहीं हो रहा इलेक्ट्रॉनिक कचराइलेक्ट्रॉनिक उपकरण इस्तेमाल के बाद यदि खराब हो जाते हैं, तो यही ई-कचरा का रूप ले लेते हैं. इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जैसे -टीवी, मोबाइल, टैब, कंप्यूटर, लैपटॉप, केबल वायर, सीपीयू, यूपीएस, पीसीबी किट, बैटरी, मदर बोर्ड, रेफ्रिजरेटर, एयर कंडीशनर, माइक्रोओवन, प्रिंटर, इयर फोन, चार्जर, सर्किट बोर्ड, पेनड्राइव समेत अन्य खराब होने पर ई-वेस्ट का रूप ले रहे हैं. इन्हें तैयार करने के बाद संबंधित कंपनी के पास इसे स्थायी रूप से नष्ट करने का कोई विकल्प नहीं है.
विश्व में लगभग 600 लाख मीट्रिक टन ई-वेस्ट तैयार हो रहा है. वर्ष 2005 में भारत में ई-वेस्ट की कुल मात्रा 1.47 लाख मीट्रिक टन थी जो वर्ष 2012 में बढ़कर लगभग आठ लाख मीट्रिक टन हो गयी है. भारत में ई-वेस्ट की मात्रा लगातार बढ़ रही है.
मोबाइल फोन में क्या-क्या29% एवीएस-पीसी पॉलिकार्बोनेट/ एकीलोनिट्राइल स्टाइरेन जैसे थर्मोप्लास्टिक
03% लोहा का उपयोग
08% दूसरे प्लास्टिक
10% सिलिकन प्लास्टिक
15% तांबा और अन्य अवयव
16% सेरामिक का उपयोग
10% दूसरे धातु का इस्तेमाल
09% इपोक्सी शामिल
कृषि मौसम विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ रमेश कुमार ने कहा कि ई-कचरा को जब तोड़ा या फेंका जाता है तब इनसे मर्करी, लेड, ग्लास, जिंक, जस्ता, क्रोनियम, टंगस्टन जैसे अन्य हानिकारक तत्व निकलते हैं. ये तत्व हवा और पानी के माध्यम से शरीर में पहुंचते हैं और हमें बीमार करते हैं. ये तत्व जमीन में मिलकर मिट्टी की उर्वरक क्षमता को भी नष्ट कर रहे हैं. साथ ही मिट्टी में घुलकर पोषक तत्वों के साथ पैदा होने वाले अनाज में मिलकर शरीर को नुकसान पहुंचाते हैं. इससे लिवर और किडनी से जुड़ी समस्या होती है़ कैंसर, लकवा जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ता है.
Also Read: Jharkhand News: करोड़ों रुपये की लागत से बन रहे सड़क निर्माण कार्य को नक्सलियों ने कराया बंद, जानें वजह राज्य में सिर्फ दो रिसाइकलिंग सेंटरझारखंड में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से मान्यता प्राप्त दो ही ई-वेस्ट रिसाइकलिंग सेंटर हैं. एक हेसल रांची में है, तो दूसरा चंदनकियारी बोकारो में. रांची के सेंटर से प्रत्येक वर्ष 300 मीट्रिक टन इ-वेस्ट और बोकारो से 360 मीट्रिक टन इ-वेस्ट को रिसाइकल किया जाता है़ रांची के कबाड़ी डॉट कॉम के निदेशक शुभम जायसवाल कहते हैं : वह सिर्फ रांची से प्रत्येक माह 25 टन से अधिक ई-कचरा इकट्ठा करते हैं. वहीं, प्लास्टिक की मात्रा करीब 180 टन है.
ई-वेस्ट से बनाये डेकोरेटिव आइटम ओएमजी बुक ऑफ रिकॉर्ड में नाम दर्जएक ओर जहां ई-वेस्ट (E-waste) का निष्पादन चिंता का विषय बना हुआ है. वहीं, साईं विहार कॉलोनी, रातू रोड निवासी सुजाता ने ई-वेस्ट, प्लास्टिक की बोतल, न्यूज पेपर समेत अन्य कबाड़ से 75 डेकोरेटिव क्राफ्ट आइटम तैयार किये हैं. साथ ही ओएमजी बुक ऑफ रिकॉर्ड में अपनी जगह भी बना ली है. सुजाता ने कहा कि ओएमजी बुक ऑफ रिकॉर्ड ने आजादी के अमृत महोत्सव के दौरान प्रतियोगिता आयोजित किया था. इसके बाद वेस्ट आइटम से क्राफ्ट बनाने में जुट गयी. 75 आइटम तैयार होने पर ऑनलाइन इंट्री की और सबसे कम समय में कबाड़ से रचनात्मक प्रयोग का रिकॉर्ड हासिल किया.
रिपोर्ट : अभिषेक रॉय, रांची