कोरोना संक्रमण के मुश्किल दौर में रेडियोलॉजी जांच इलाज में डॉक्टरों की पूरी मदद कर रहा है. डॉक्टर संक्रमितों के भर्ती होते ही हाइ रेज्यूलेशन सीटी स्कैन (एचआरसीटी) करा रहे हैं. इसके जरिये संक्रमित के शरीर में कोराेना वायरस के हल्के दुष्प्रभाव की भी जानकारी मिल जाती है. एचआसीटी में 99 फीसदी सही जानकारी मिल जाती है, इससे मरीजों के इलाज में सहूलियत होती है. वहीं, शुरुआती दौर में होनेवाली आरटीपीसीआर जांच में कोविड निमोनिया पकड़ मेंं नहीं आती है.
क्रिटिकल केयर विशेषज्ञों की मानें, तो जब संक्रमण पूरी तरह फैल जाता है, तब एक्सरे में उसका पता चलता है. जबकि, एचआरसीटी से फेफड़ा में हल्का संक्रमण या दुष्प्रभाव का भी पता लग जाता है. इससे डॉक्टर बिना देरी किये दवा शुरू कर देते हैं. इससे संक्रमितों को हाइ-फ्लो ऑक्सीजन या वेंटिलेटर पर रखना नहीं पड़ता है. डॉक्टरों का कहना है कि एचआसीटी के बाद दवाओं के जरिए कोरोना के दर्जनों संक्रमितों को गंभीर अवस्था में जाने से बचाया गया है.
डॉक्टरों का कहना है कि कोरोना से पहले दमा या सांस फूलने की समस्यावाले मरीजों के इलाज के लिए एचआरसीटी कराया जाता था. लेकिन, कोरोना काल में एचआसीटी से इलाज में काफी मदद मिल रही है. यह जांच थोड़ी महंगी है, लेकिन संक्रमितों को गंभीर अवस्था में जाने से बचा भी रही है. इससे मरीजों या उनके परिजनों का अन्य खर्च भी बच रहा है.
एचआरसीटी कोरोना संक्रमितों को गंभीर अवस्था में पहुंचने से बचाता है. फेफड़ा के दुष्प्रभाव की जानकारी आरटीपीसीआर जांच से नहीं मिल पाती है, लेकिन एचआरसीटी जांच मेें हल्का बदलाव भी पकड़ में आ जाता है. कोरोना संक्रमितों के इलाज में एचआसीटी काफी मददगार साबित हो रहा है.
– डॉ कौशल कुमार, क्रिटिकल केयर विशेषज्ञ, पल्स
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