Jharkhand News: मानव तस्करी के शिकार बच्चे मूल अधिकार से भी हो जाते हैं वंचित : जस्टिस आनंद सेन
Human Trafficking in Jharkhand- झारखंड ज्यूडिशियल एकेडमी की ओर से एंटी ह्यूमैन ट्रैफिकिंग पर आयोजित राज्यस्तरीय न्यायिक संगोष्ठी को झारखंड हाइकोर्ट के जस्टिस आनंद सेन संबोधित कर रहे थे. इस दौरान उन्होंने कहा कि मानव तस्करी के शिकार से बच्चे मूल अधिकार से भी वंचित हो जाते हैं.
Human Trafficking in Jharkhand: मानव तस्करी मानवता के खिलाफ अपराध है. मानव तस्करी के शिकार लोगों को असहनीय पीड़ा होती है. जब उसमें पीड़ित महिलाएं व बच्चे होते हैं, तो आघात कई गुना बढ़ जाता है. तस्करी के शिकार बच्चे संविधान प्रदत्त मूल अधिकार से वंचित हैं. उन्हें मूल अधिकार भी नहीं मिल पाता है. मानव तस्करी के साथ-साथ तस्करी किये गये लोगों का शोषण करना भी एक दंडनीय अपराध है. उक्त बातें झारखंड हाइकोर्ट के जस्टिस आनंद सेन ने कही. वह शनिवार को झारखंड ज्यूडिशियल एकेडमी की ओर से एंटी ह्यूमैन ट्रैफिकिंग पर आयोजित राज्यस्तरीय न्यायिक संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे.
जस्टिस सेन ने कहा कि यह कितनी विडंबना है कि एक ओर हम निजता के अधिकार व इंटरनेट एक्सेस के अधिकार जैसे मुद्दों को मौलिक अधिकार के रूप में चर्चा कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर हम मानव तस्करी पर चर्चा कर रहे हैं. इसे रोकने में कानून प्रवर्तन एजेंसियों की भूमिका बहुत बड़ी है. जब तक उन्हें समय पर सही जानकारी नहीं मिलती, उनके लिए पीड़ित व मानव तस्करी के असली अपराधी को ट्रैक करना मुश्किल हो जाता है. शुरुआती चरण में ही पीड़ित की पहचान करना और उसे बचाना कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए एक वास्तविक चुनौती है. झारखंड में तस्करी के मामलों पर हाल के एक अध्ययन में यह पाया गया कि अवैध व्यापार करनेवाले पीड़ित के अपने पड़ोसी व रिश्तेदार थे. यह एक अतिरिक्त चुनौती है, क्योंकि अक्सर ऐसे मामलों में गवाह अपने परिवार के सदस्यों को बचाने के लिए मुकर जाते हैं.
झारखंड के लोगों का जीवन स्तर अच्छा नहीं है, यहां गरीबी है. वर्ष 2021 तक झारखंड में लगभग 60 प्रतिशत तस्करी पीड़ित 18 वर्ष से कम आयु के हैं. यहां लगभग आठ एंटी-ह्यूमैन ट्रैफिकिंग यूनिट हैं, जिसकी संख्या बढ़नी चाहिए. वैसे लोगों को अपने अधिकारों के बारे में भी पता नहीं है. कानूनी सेवा प्राधिकरण रोजगार को लेकर उनके अधिकारों के संबंध में शिक्षित कर सकते हैं. जस्टिस सेन ने कहा कि अवैध व्यापार अंतर्राज्यीय और अंतर्देशीय भी हो सकता है. जब पीड़ित सीमा पार जाता है, तो पीड़ित की पहचान करना व उसे बचाना और भी मुश्किल काम हो जाता है. भारत के कई हिस्सों में, सीमाओं के पार तस्करी बड़े पैमाने पर होती है. तस्करी के मामलों की जांच में विदेशी अधिकारियों की सहायता लेने के लिए कानून प्रवर्तन एजेंसियां दंड प्रक्रिया संहिता की धारा-166ए की मदद ले सकती हैं. पीड़िता को कोर्ट में पेश करना भी एक चुनौती है. इससे पूर्व झारखंड ज्यूडिशियल एकेडमी के निदेशक सुधांशु कुमार शशि ने स्वागत भाषण दिया.
सभी को मिल कर काम करना होगा
सेवानिवृत्त आइपीएस पीएम नायर ने कहा कि मानव तस्करी से संबंधित अपने पहले एनकाउंटर के बारे में बताया जो पलामू में हुआ था. मानव तस्करी को खत्म करने के लिए सभी को मिलकर काम करना होगा.
झारखंड में सजा की दर अधिक
एसोसिएट प्रोफेसर डॉ सरफराज अहमद खान ने कहा कि झारखंड में सजा की दर सबसे अधिक है. डॉ खान ने अनैतिक तस्करी (निषेध) अधिनियम, 1956 को लागू करने और यौन शोषण आदि जैसे अनैतिक उद्देश्यों के लिए तस्करी के मामलों से निपटने के लिए इसे सख्ती से लागू करने की बात कही.
मुआवजा दान नहीं, पीड़ित का अधिकार है
सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता रविकांत ने बताया कि तस्करी की सुनवाई की लंबी प्रक्रिया के दौरान गवाह मुकर जाते हैं. इसके अलावा, मुआवजा आसानी से नहीं दिया जाता है. मुआवजा जल्दी नहीं दिया जाता है. यह याद रखना चाहिए कि मुआवजा दान नहीं है, यह पीड़ित का अधिकार है. प्रेरणा मुंबई के निदेशक डॉ प्रवीण पाटकर ने बताया कि कैसे उनके संगठन प्रेरणा ने कई वर्षों तक महिलाओं की तस्करी के खिलाफ काम किया है. मौके पर झारखंड हाइकोर्ट के जस्टिस एस चंद्रशेखर, जस्टिस राजेश कुमार, जस्टिस अंबुज नाथ, जस्टिस नवनीत कुमार, जस्टिस प्रदीप कुमार श्रीवास्तव सहित न्यायिक अधिकारी समेत कई संगठनों के प्रतिनिधि उपस्थित थे.
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न्यायिक अधिकारी संवेदनशील हों
जस्टिस सेन ने कहा कि न्यायपालिका भी इस प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण हितधारक है. निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करना उनका कर्तव्य है, ताकि पीड़ित को न्याय मिल सके. न्यायिक अधिकारियों को पीड़ितों द्वारा दिये गये बयानों की बारीकी से जांच करनी चाहिए और अकेले चार्जशीट से प्रभावित हुए बिना तदनुसार आरोप तय करना चाहिए. न्यायिक अधिकारियों को भी पीड़ित की मानसिक स्थिति और उस आघात के प्रति संवेदनशील होना चाहिए, जिससे पीड़िता गुजरी है. अदालत को यह सुनिश्चित करना है कि पीड़िता की गरिमा सभी चरणों में बनी रहे. कहा िक पीड़ितों की पहचान करने व उन्हें बचाने में जितना अधिक समय लगता है, उनका पुनर्वास भी उतना ही कठिन होता है.