रांची (विशेष संवाददाता). बिरसा कृषि विवि द्वारा विकसित खरीफ फसल पंखिया सेम की नयी किस्म बिरसा कमरेंगा (आरडबल्यू बी-13) को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) ने जारी करने के लिए चिह्नित कर लिया है. इसका चयन बेहतर उपज क्षमता (14.29 क्विंटल प्रति हेक्टेयर), उच्च प्रोटीन उपलब्धता (30.29 प्रतिशत) और तेल की मात्रा (25.81 प्रतिशत) के आधार पर किया गया है. आइसीएआर के उप महानिदेशक (फसल विज्ञान) डॉ टीआर शर्मा की अध्यक्षता में गठित कमेटी ने इसके चयन संबंधी प्रस्ताव का अनुमोदन किया और राष्ट्रीय पहचान संख्या आइसी-156524 आवंटित किया. इसे पूर्वोत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों के लिए जारी करने के लिए चिन्हित किया गया है. पोटेंशियल क्रॉप संबंधी अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना के तहत लगभग एक दशक के शोध प्रयासों के बाद यह किस्म चिन्हित की गयी है. परियोजना के प्रधान वैज्ञानिक पौधा अनुवांशिकी विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ जयलाल महतो हैं. उन्होंने बताया कि आसानी से पैदा होने वाली पंखिया सेम अपने उच्च पोषक तत्व और निम्न कैलोरी के लिए जानी जाती है. इसे प्रायः मानसून प्रारंभ होने के समय जून-जुलाई में लगाया जाता है. यह फसल ज्यादातर जनजातीय समाज द्वारा अपने घर की बाड़ी में लगाया जाता है. इसकी खेती प्रमुख रूप से असम, मणिपुर, केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, झारखंड सहित आठ राज्यों में विशेष रूप से होती हैं. बिरसा कृषि विवि द्वारा विकसित खरीफ फसल पंखिया सेम की नयी किस्म बिरसा कमरेंगा (आरडबल्यू बी-13) को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) ने जारी करने के लिए चिह्नित कर लिया है. इसका चयन बेहतर उपज क्षमता (14.29 क्विंटल प्रति हेक्टेयर), उच्च प्रोटीन उपलब्धता (30.29 प्रतिशत) और तेल की मात्रा (25.81 प्रतिशत) के आधार पर किया गया है. आइसीएआर के उप महानिदेशक (फसल विज्ञान) डॉ टीआर शर्मा की अध्यक्षता में गठित कमेटी ने इसके चयन संबंधी प्रस्ताव का अनुमोदन किया और राष्ट्रीय पहचान संख्या आइसी-156524 आवंटित किया. इसे पूर्वोत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों के लिए जारी करने के लिए चिन्हित किया गया है. पोटेंशियल क्रॉप संबंधी अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना के तहत लगभग एक दशक के शोध प्रयासों के बाद यह किस्म चिन्हित की गयी है. परियोजना के प्रधान वैज्ञानिक पौधा अनुवांशिकी विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ जयलाल महतो हैं. उन्होंने बताया कि आसानी से पैदा होने वाली पंखिया सेम अपने उच्च पोषक तत्व और निम्न कैलोरी के लिए जानी जाती है. इसे प्रायः मानसून प्रारंभ होने के समय जून-जुलाई में लगाया जाता है. यह फसल ज्यादातर जनजातीय समाज द्वारा अपने घर की बाड़ी में लगाया जाता है. इसकी खेती प्रमुख रूप से असम, मणिपुर, केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, झारखंड सहित आठ राज्यों में विशेष रूप से होती हैं.
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