Jharkhand news: यूं तो प्रदूषण और किसी प्रकार के इंफेक्शन से बचने के लिए मास्क का प्रयोग होता रहा है. अन्य देशों के साथ ही हमारे देश में काफी सालों से इसका उपयोग लोग करते आ रहे हैं. डॉक्टरों को ऑपरेशन थियेटर में ऐसा मास्क पहनें अधिकतर लोगों ने देखा होगा. बीते दो साल पहले जैसे ही कोरोना का दौर आया, पूरी दुनिया मास्क पहनें दिखीं. एक नहीं, कई प्रकार के मास्क. समय के साथ तो मार्केट में डिजाइनर मास्क भी देखे गये लोगों ने उनका भी इस्तेमाल किया. कोरोना संक्रमण से बचने और घर से बाहर निकलते समय लोगों को मास्क पहनने की अपील रिम्स के चिकित्सक डॉ प्रदीप भट्टाचार्य ने किया है.
डॉ भट्टाचार्य ने कहा कि इतिहास की ओर देखें, तो मास्क की कहानी हमें चिकित्सा और विज्ञान के कई घटनाओं में मिलती है. चीन में मंचूरिया महामारी के दौरान और उसके बाद स्पेनिश फ्लू के दौरान भी लोगों ने फेस मास्क का प्रयोग किया था. हालांकि, इस महामारी में 40 मिलियन से अधिक लोगों के प्रभावित होने की बात कही जाती है. उसके बाद दौर आता है साल 1919-20 और महामारी के रूप में दिखता है बॉम्बे फीवर. सभी महामारी में मास्क ने लोगों को काफी हद तक बचाया था.
कहा कि श्वसन तंत्र के सुरक्षा कवच के रूप में मास्क के महत्व को सभी ने स्वीकारा. यही कारण रहा है कि कोरोना महामारी के शुरुआत के साथ ही सभी ने मास्क पर जोर दिया. मास्क ने लोगों को संक्रमण की भयावहता से काफी हद तक बचाया है. इसकी बात वैज्ञानिक और डॉक्टर्स भी करते हैं.
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असल में मास्क एक सदी से अधिक समय से संक्रामक रोगों से लड़ने का एक प्रभावी उपकरण के रूप में अपनी उपयोगिता सिद्ध कर चुका है. कैंब्रिज के स्कॉलर इसे रोगनिरोधी उपकरण मानते हैं. हाल के सालों में हुई कई अध्ययनों में यह बात साबित हुई है कि मास्क कई तरीकों से जीवन बचाता है.
हीडलबर्ग में सर्जरी के लिए विख्यात डॉ मार्टिन किर्शनर ने पहली बार 1935 में फेस मास्क पहनने की आवश्यकता को संक्रमण से निपटने के लिए उपाय के रूप में वर्णित किया था. इसने कपड़े की अलग-अलग मोटाई वाले फेस मास्क पर शोध का मार्ग प्रशस्त किया. बाद में विभिन्न उद्देश्यों के लिए मास्क उपयोग में आने लगे. मसलन, एंटीवायरल, एंटीमाइक्रोबायल, एंटी गंध. इसमें सबसे खास बात यह भी है कि हर मास्क चेहरे पर अच्छी तरह से फिट होना चाहिए.
अलग अलग शोधों में यह बात सामने आयी है कि संक्रामक रोगों के वायरस और जीवाणु जो माइक्रोन से भी छोटे होते हैं, उनको रोकने में मास्क कारगर है. एक शोध रिपोर्ट में कहा गया है कि सिंगल लेयर मास्क की तुलना में मल्टी लेयर क्लॉथ मास्क अधिक प्रभावी होता है, जो 50-70 प्रतिशत तक छोटी बूंदों और कणों को रोकते हैं.
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हाल में कोरोना के दौर में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ऑक्यूपेशनल सेफ्टी एंड हेल्थ की एक रिपोर्ट आयी थी, जिसमें N 95 फेस मास्क को सबसे अधिक प्रभावी माना गया था. इसके बाद घरों से लगातार निकलने वाले और जोखिम वाले स्थानों की यात्रा करनेवालों ने इसे व्यवहार में लाया था. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि एन 95 फेस मास्क 95 प्रतिशत कणों को रोकने में कारगर है. भले ही यह मास्क थोड़ा महंगा है, बावजूद इसके लोगों ने इसका उपयोग किया.
Posted By: Samir Ranjan.