रांची : साहिबगंज अवैध खनन की जांच शुरू होते ही राज्य सरकार और प्रवर्तन निदेशालय के बीच कानूनी जंग छिड़ी. राज्य सरकार ने पुलिस जांच में ईडी के हस्तक्षेप की वैधानिकता को चुनौती दी. मुख्यमंत्री ने भी इडी की कार्रवाई और पीएमएलए के कानूनी प्रावधानों को कोर्ट में चुनौती दी. हालांकि सरकार इस कानूनी जंग में ईडी को मात देने में सफल नहीं हो सकी. ईडी ने बरहरवा टोल विवाद के सिलसिले में शंभु नंदन की शिकायत पर दर्ज प्राथमिकी को इसीआइआर के रूप में दर्ज कर साहिबगंज में अवैध खनन की जांच शुरू की. इसी दौरान इडी ने बरहरवा कांड के जांच अधिकारी सरफुद्दीन खान को पूछताछ के लिए समन जारी किया. वह पूछताछ के लिए हाजिर हुए. उन्होंने पूछताछ में यह स्वीकार किया कि बरहरवा टोल विवाद के सिलसिले में दर्ज प्राथमिकी की जांच सही ढंग से नहीं हुई है.
प्राथमिकी दर्ज होने के 22 घंटे के अंदर ही डीएसपी ने सुपरविजन नोट जारी कर इन दोनों प्रभावशाली अभियुक्तों पंकज मिश्रा और ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम को क्लिन चिट दे दी. वह सुपरविजन नोट में दिये गये दिशा-निर्देश के अनुसार ही जांच करने के लिए मजबूर है. जांच अधिकारी द्वारा निष्पक्ष रूप से जांच नहीं होने की बात स्वीकार करने के बाद इडी ने डीएसपी प्रमोद मिश्रा को समन जारी किया. इसके बाद ही ईडी और सरकार के बीच कानूनी जंग की शुरुआत हुई.
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सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर ईडी की कार्रवाई को चुनौती दी गयी. सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका बरहरवा कांड के जांच अधिकारी सरफुद्दीन खान और सुपरविजन नोट जारी करने वाले डीएसपी प्रमोद मिश्रा की ओर से दायर की गयी. इसमें यह सवाल उठाया गया कि इडी राज्य सरकार की जांच एजेंसी द्वारा की जा रही जांच में हस्तक्षेप कर रही है. वह राज्य की जांच एजेंसी से अपनी मर्जी के अनुसार जांच कराना चाहती है..
यह न्यायसंगत नहीं है. न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायाधीश एमएम सुंदरेश की पीठ में सरकार की इस याचिका की सुनवाई हुई. न्यायालय ने अपने वह संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर इस रिट पिटिशन को सुनने के पक्ष में नहीं है. याचिकाकर्ता चाहें तो इस मामले को लेकर हाइकोर्ट में जा सकते हैं. इस टिप्पणी के साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को निष्पादित कर दिया. इसके बाद इन दोनों पुलिस अधिकारियों ने हाइकोर्ट में याचिका दायर की. इसमें इडी द्वारा जारी किये गये समन को चुनौती दी गयी.
सुनवाई के दौरान यह तर्क पेश किये गया कि राज्य की एजेंसी द्वारा की गयी जांच के सिलसिले में पूछताछ के लिए संबंधित पुलिस अधिकारियों को समन करने का अधिकार प्रवर्तन निदेशालय(इडी) के पास नहीं है. मामले की सुनवाई मे इडी की ओर से इसका विरोध किया गया. मामले मे सुनवाई के बाद हाइकोर्ट ने याचिका निष्पादित कर दी, लेकिन पुलिस अधिकारियों को राहत नहीं दी. इससे प्रमोद मिश्रा को पूछताछ के लिए इडी के रांची स्थित क्षेत्रीय कार्यालय में हाजिर होने पड़ा.
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की ओर से भी इडी की कार्रवाई को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गयी. मुख्यमंत्री अवैध खनन के सिलसिले में जारी समन के आलोक में पूछताछ के लिए हाजिर हुए, लेकिन जमीन की खरीद बिक्री के सिलसिले में जारी समन का विरोध किया और उसे राजनीति से प्रेरित बताते हुए समन वापस लेने के लिए इडी को पत्र लिखा. साथ ही समन वापस नहीं लेने की स्थिति में कानूनी रास्ता अपनाने की बात कही. इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दायर कर इडी की कार्रवाई को चुनौती दी.
साथ ही पीएमएलए की धारा 50 और 63 को नागरिकों को मिले मौलिक अधिकार के खिलाफ बताया. पिटिशन में यह कहा गया कि इडी धारा 50 के तहत बयान दर्ज करने के लिए समन जारी करती है और धारा 19 के तहत गिरफ्तार कर लेती है. इसलिए समन पाने वाले पर गिरफ्तारी का डर बना रहता है. याचिका में यह भी कहा गया कि समन में इस बात का भी उल्लेख नहीं किया जाता है कि उसे गवाह या अभियुक्त के रूप में बुलाया जा रहा है. इसके अलावा इसीआइआर की कॉपी भी नहीं दी जाती है. यह संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है. न्यायाधीश अनिरुद्ध बोस और न्यायाधीश बेला एम त्रिवेदी की पीठ में याचिका की सुनवाई हुई. कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए हाइकोर्ट में याचिका दायर करने की अनुमति दी.