रांची : महात्मा गांधी के सच्चे अनुयायी झारखंड के टानाभगत स्वच्छता के ही पुजारी नहीं हैं, बल्कि ये तिरंगा की भी हर रोज पूजा करते हैं. खादी वाले तिरंगा के प्रति इनकी अगाध श्रद्धा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि तिरंगा की पूजा के बगैर ये अन्न-जल तक ग्रहण नहीं करते. सालोंभर सुबह-शाम तिरंगा की पूजा करने के बाद ही भोजन करते हैं महात्मा गांधी के अनन्य भक्त झारखंड के टानाभगत.
अंतरिक्ष युग में भी झारखंड के टानाभगत भले ही बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं, लेकिन गांधीगीरी इनके रग-रग में है. मिट्टी के खपरैल घरों में भी बड़ी ही सादगी से ये जीवन गुजार लेते हैं. इनकी तंगहाली देख आप तरस खा जायेंगे. आजादी की लड़ाई में अपना सर्वस्व न्योछावर करने के सात दशक बाद भी सत्य-अहिंसा के पुजारी टानाभगत महात्मा गांधी के बताये मार्गों पर चल रहे हैं.
सिर पर गांधी टोपी, बदन पर सफेद खादी कुर्ता-धोती, जनेऊ, हाथों में तिरंगा, शंख व घंट लिए झारखंड के टानाभगतों को आपने देखा होगा. स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस और गांधी जयंती पर इनके खिले चेहरे भी आपने देखे होंगे, लेकिन शायद ही आप इन साधारण चेहरों के पीछे के असाधारण देश प्रेम को देख सके होंगे. आपको भले ही यकीन न हो, लेकिन टानाभगतों के दिन की शुरुआत तिरंगे की पूजा से ही होती है.
झारखंड के टानाभगत रोजाना अपने घर के आंगन में बने पूजा धाम में तिरंगे की पूजा के बाद ही शुद्ध शाकाहारी भोजन शांत चित्त से करते हैं. ये बाहरी भोजन से परहेज करते हैं. अपने हाथ से भरा पानी पीते हैं. घर में बना भोजन करते हैं. गाय का दूध इन्हें अतिप्रिय है, लेकिन पैकेट दूध नहीं पीते. नशापान से कोसों दूर रहने वाले स्वच्छता के दूत टानाभगत अभी भी मिट्टी के खपरैल घरों में रह रहे हैं, लेकिन लिपाई-पुताई से चकाचक दीवारें और घर-आंगन की साफ-सफाई देख मन प्रसन्न हो जायेगा.
खेती-बारी और मजदूरी कर अपनी आजीविका चलाने वाले टानाभगत सुबह नींद खुलते ही धरती माता को प्रणाम करते हैं. नित्यक्रिया से निवृत होकर घर-आंगन की साफ-सफाई व रसोईघर में चूल्हे की लिपाई-पुताई के बाद स्नान कर वे शुद्धिकरण करते हैं. इसके लिए बर्तन में रखे पंचामृत (दुबला घास, हल्दी, तांबा, तुलसी और आम की पत्तियां) को पानी में मिलाकर अपने शरीर पर छिड़कते हैं.
पंचामृत पीकर हाथ-पांव धोने के बाद इसे न सिर्फ रसोईघर समेत पूरे घर में छिड़कते हैं, बल्कि घर के आंगन में बने पूजा धाम में तिरंगे की पूजा में भी इसका उपयोग करते हैं. तन-मन शुद्ध करने के बाद मिट्टी के चूल्हे पर भोजन पकता है. भोजन से पहले सुबह-शाम रोजाना तिरंगे की पूजा करने वाला ये इकलौता समुदाय है.
झारखंड में उरांव, मुंडा व खड़िया जनजाति से आने वाले टानाभगतों की जनसंख्या 20,518 है. राज्य के आठ जिले (रांची, खूंटी, गुमला, सिमडेगा, लोहरदगा, चतरा, लातेहार एवं पलामू) में 3,283 परिवार निवास करते हैं. महिला-पुरुष दोनों जनेऊ पहनते हैं. तन-मन की शुद्धता के लिए ये उपवास करते हैं.
राजधानी रांची से करीब 30 किलोमीटर दूर मांडर के झिरगा टानाभगत कहते हैं कि तिरंगा न सिर्फ उनकी आन-बान और शान है, बल्कि उनका धर्म भी है. सच कहिए तो सबकुछ है. महज तीसरी कक्षा तक पढ़े झिरगा बताते हैं कि तिरंगे की पूजा से ही उनका दिन शुरू होता है. वे सालोंभर रोजाना सुबह-शाम तिरंगे की पूजा कर भोजन करते हैं. वह कहते हैं कि सरकार उनकी सुध लेती, तो उनके जीवन स्तर में सुधार होता. टानाभगतों की जमीन का सर्वे कर बंटवारा कराने की मांग करते हैं.
राजधानी रांची से करीब 45 किलोमीटर दूर चान्हो के भुआल टानाभगत कहते हैं कि उनके पूर्वजों ने देश की आजादी के लिए सर्वस्व न्योछावर कर दिया था. उसी की शान तिरंगा उनका जीवन दर्शन है. वे हर रोज तिरंगा की पूजा करने के बाद ही दैनिक कार्यों की शुरुआत करते हैं. वे बताते हैं कि टानाभगत समुदाय का प्रतिनिधि विधानसभा या लोकसभा में होना चाहिए, ताकि टानाभगत समुदाय का कल्याण हो.
Posted By : Guru Swarup Mishra