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झारखंड के ये नेता आपातकाल के खिलाफ निकले थे सड़क पर, विधायक सीपी सिंह ने तो छोड़ दी थी इंटर की परीक्षा

1975 में जब देश में आपातकाल लगा था उस वक्त झारखंड के कई नेता इसके खिलाफ सड़क पर उतरे थे. रांची के विधायक सीपी सिंह ने तो जयप्रकाश नरायण के आह्वान पर इंटर की परीक्षा छोड़ दी थी.

रांची : 25 जून 1975 की वह काली रात. भारत के लोकतंत्र का काला अध्याय. वो देश में असंतोष का काल था. पूरा देश आक्रोशित था. गुजरात से लेकर बिहार तक छात्र-नौजवान आक्रोशित थे. इंदिरा गांधी की सत्ता डोल रही. आंदोलन राज्यों की सीमा लांघ, दिल्ली पहुंच रहा था. 25 जून की मध्य रात्रि इंदिरा गांधी की सरकार ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी. लोगों के मौलिक अधिकार छीन लिये गये, प्रेस पर सेंशरशीप लग गया. इधर आंदोलन और तीव्र हुआ. आंदोलनकारी जेल में ठूंसे जा रहे थे. लोकनायक जयप्रकाश नारायण की अगुवाई में इंदिरा गांधी के खिलाफ आंदोलन तीव्र हुआ. कई युवा आंदोलन में कूदे. आज भी जयप्रकाश नारायण के उन लड़ाकों के जेहन में आपातकाल की यादें हैं. प्रस्तुत है, इससे संबंधित रिपोर्ट.

सीपी सिंह ने जेपी के आदेश पर नहीं दी थी इंटर की परीक्षा

छात्र आंदोलन हवा तब के एकीकृत बिहार तक पहुंची थी. बिहार आंदोलन का केंद्र था. वर्तमान में झारखंड के नेता भी जयप्रकाश के आह्वान के बाद आंदोलन में कूदे. रांची विधायक सीपी सिंह की अहम भूमिका रही थी. उन्होंने बताया कि जब वह मारवाड़ी कॉलेज से इंटर की पढ़ाई कर रहे थे, तब उन सभी छात्रों को जयप्रकाश नारायण जी के द्वारा आदेश मिला था कि कोई भी छात्र अपनी परीक्षाएं न दे. उनके आदेश का पालन करते हुए उनमें से किसी भी छात्र ने अपनी परीक्षाएं नहीं दी थी. 26 जनवरी 1976 को इन्हें गिरफ्तार किया गया था. रात भर कोतवाली थाने में रखा गया था. इसके ठीक बाद उन्हें जेल भेज दिया गया था. जेल जाने के बाद इन्होंने देखा कि कई आंदोलनकारी पहले से जेल में मौजूद थे. जेल से निकलने के बाद भी उन्हें परीक्षा देने की अनुमति नहीं मिली. जिसकी वजह से इनका एक वर्ष बर्बाद हो चुका था. इन्हें 30 जुलाई 1976 को जेल से छोड़ गया. इसके ठीक बाद यह फिर से आंदोलन से जुड़ गये, जिस वजह से दोबारा गिरफ्तार होते-होते बचे. श्री सिंह ने बताया कि चारों तरफ दहशत का माहौल था. जिसके कारण जेल में कोई भी व्यक्ति मिलने तक नहीं आता था, इस डर से कि उनकी पहचान कर ली जायेगी और वह भी गिरफ्तार कर लिया जायेगा.

(रांची से इंटर्न ऋषिता भारती व अदिति राज)

अधिवक्ता स्वरूप चंद्र ने छात्र आंदोलन का संभाला था मोर्चा

हजारीबाग के स्वरूप चंद्र जैन समाजवादी विचारों से प्रभावित थे. उन्होंने 1974 के आंदोलन में बढ़- चढ़ कर भाग लिया, वे छात्रों के साथ आंदोलन करते हुए गिरफ्तार हुए. 1974 का छात्र आंदोलन पूरे देश में चल रहा था. हजारीबाग आंदोलन का गवाह था. कई छात्र नेता इस आंदोलन में उभरे थे. स्वरूप चंद्र जैन उसके सर्वाधिक सक्रिय छात्र नेता के रूप में थे. आज उस आंदोलन को बीते लगभग पांच दशक हो गये. स्वरूप चंद जैन जेपी आंदोलन को अपने जीवन के टर्निंग प्वाईंट मानते थे. उनके जीवन के कई ऐतिहासिक पक्ष जेपी आंदोलन से जुडे हैं. एक अधिवक्ता होते हुए इस आंदोलन में शरीक होकर हजारीबाग के शहर में आंदोलन काे लेकर होनेवाली विभिन्न गतिविधियों में हिस्सा लेते थे. स्वरूप चंद जैन इस आंदोलन से जुडने के संबंध में बताया : सन 1974 में जब बिहार में छात्र आंदोलन आरंभ हुआ उस समय मैं वकालत के पेश से जुड़ा था. मैं स्वयं इस आंदोलन में पूरी निष्ठा एवं समर्पण के साथ कूद पड़ा. मैं 1974 में प्रथम मीसा के तहत सेंट्रल जेल हजारीबाग में बंद था, क्योंकि सक्रियता से भाग लिया. 15 माह बाद 1977 में मुझे जनता दल के जीत के बाद रिहा किया गया था.
(हजारीबाग से जमालउद्दीन)

डॉ राजेंद्र प्रसाद के पुत्र भी हजारीबाग जेल में बंद थे

संपूर्ण क्रांति यानी जेपी आंदोलन से पलामू अछूता नहीं रहा था. समाजवादी नेता तारकेश्वर आजाद की माने तो उनके जैसे कई लोगों ने इस आंदोलन को गति दी थी. समाजवादी नेता श्री आजाद ने जेपी आंदोलन की चर्चा करते हुए बताया कि यह मूल रूप से छात्र आंदोलन था. 18 मार्च 1974 को बिहार के पटना से यह आंदोलन शुरू हुआ. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस आंदोलन को कुचलने के लिए आंदोलनकारियों के खिलाफ जुल्म अत्याचार शुरू किया. सरकार के निर्देश पर पुलिस प्रशासन ने आंदोलनकारियों पर लाठीचार्ज जैसी निंदनीय कार्रवाई की और उन्हें गिरफ्तार कर जेल में बंद कर दिया गया. उन्होंने बताया कि 1974 में उन्हें अन्य साथियों के साथ हजारीबाग जेल में बंद कर दिया गया था. उस समय हजारीबाग जेल में देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद के बड़े पुत्र मृत्युंजय प्रसाद, कर्पूरी ठाकुर, सच्चिदानंद सिंह, प्रमोद शुक्ला, इंदर सिंह नामधारी सहित पलामू के कई आंदोलनकारी छात्र जेल में बंद थे. आंदोलन के दौरान देश ने आपातकाल को भी देखा. 1975 में केंद्र सरकार ने देश में आपातकाल लागू किया. इस दौरान उन्हें अन्य आंदोलनकारियों के साथ डालटनगंज जेल में 19 माह तक रखा गया.
(मेदिनीनगर से चंद्रशेखर सिंह)

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