असिस्टेंट प्रोफेसर नियुक्ति मामले में विश्वविद्यालयों व जेपीएससी को जवाब दायर करने का निर्देश
मामला राज्य के विश्वविद्यालयों में बार-बार असिस्टेंट प्रोफेसरों की संविदा पर नियुक्ति का
वरीय संवाददाता, रांची़ झारखंड हाइकोर्ट के जस्टिस डॉ एसएन पाठक की अदालत ने राज्य के विश्वविद्यालयों में बार-बार असिस्टेंट प्रोफेसरों की संविदा पर नियुक्ति के मामले में दायर याचिका पर सुनवाई की. इस दौरान राज्य के 12 विश्वविद्यालयों के कुलपति, कुलसचिव, उच्च शिक्षा निदेशक आदि सशरीर उपस्थित हुए. अदालत ने सभी कुलपतियों से स्वीकृत पद के आलोक में असिस्टेंट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर व प्रोफेसर के रिक्त पद और नियुक्ति की जानकारी ली. रिक्तियों को भरने के लिए की जा रही कार्रवाई के संबंध में भी अदालत ने जानकारी मांगी. कई कुलपतियों ने अपने विश्वविद्यालय में सिर्फ असिस्टेंट प्रोफेसर के रिक्त पदों की ही जानकारी दी. यह भी बताया गया कि जेपीएससी को रिक्तियों को भरने के लिए अधियाचना भेजी गयी है, लेकिन छह वर्ष बीतने के बाद भी नियुक्ति प्रक्रिया शुरू नहीं की गयी है. इस पर अदालत ने कड़ी नाराजगी जताते हुए जेपीएससी के सचिव को हाजिर होने का निर्देश दिया. जेपीएससी सचिव उपस्थित हुए. उनकी ओर से बताया गया कि वर्तमान में जेपीएससी में अध्यक्ष का पद रिक्त है. कई अन्य महत्वपूर्ण परीक्षाएं ली जानी है. इसलिए असिस्टेंट प्रोफेसर आदि की नियुक्ति प्रक्रिया शुरू नहीं की जा सकी है. पक्ष सुनने के बाद अदालत ने सभी विश्वविद्यालयों को असिस्टेंट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर व प्रोफेसर के रिक्त पदों सहित नियुक्ति के लिए जेपीएससी को भेजी गयी अधियाचना के बारे में अद्यतन जानकारी शपथ पत्र के माध्यम से प्रस्तुत करने का निर्देश दिया. जेपीएससी को भी शपथ पत्र दायर करने को कहा. मामले की अगली सुनवाई 28 अक्तूबर को होगी. साथ ही अगली सुनवाई में कुलपतियों को सशरीर उपस्थिति से छूट प्रदान की. इससे पहले प्रार्थी की ओर से वरीय अधिवक्ता अजीत कुमार ने पक्ष रखा. वहीं जेपीएससी की ओर से अधिवक्ता संजय पिपरावाल व अधिवक्ता राकेश रंजन ने पैरवी की. उल्लेखनीय है कि प्रार्थी डॉ प्रसिला सोरेन व अन्य की ओर से याचिका दायर की गयी है. पिछली सुनवाई में जेपीएससी की ओर से बताया गया था कि वर्ष 2018 में विज्ञापन संख्या-4/2018 व 5/2018 के तहत विभिन्न विषयों में लगभग 500 से अधिक असिस्टेंट प्रोफेसरों की नियुक्ति की अनुशंसा की गयी है. वहीं राज्य के विश्वविद्यालयों द्वारा जवाब दाखिल नहीं किये जाने पर कोर्ट ने कुलपति, कुलसचिव सहित अन्य को सशरीर उपस्थित होने का निर्देश दिया था.
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